Wednesday 10 December 2014

मानव शारीर

(मानव का शरीर रचना विज्ञान से अनुप्रेषित)


वयस्क मानव (स्त्री तथा पुरूष) के शरीर की संरचना (morphology) का वैज्ञानिक अध्ययन, मानव शरीर रचना विज्ञान या मानव शारीरिकी (human anatomy) के अन्तर्गत किया जाता है।
मानव शरीर कई तन्त्रों से बना है। तंत्र, कई अंगों से मिलकर बनते हैं। अंग, भिन्न-भिन्न प्रकार के ऊतकों से बने होते हैं। ऊतक, कोशिकाओं से बने होते हैं।



 वयस्क
वयस्क (या बालिग) शब्द के तीन भिन्न अर्थ होते है।
पहला: यह एक पूर्ण विकसित व्यक्ति को दर्शाता है,
दूसरा: यह एक पौधे या जानवर को भी इंगित करता है जिसने पूर्ण विकास कर लिया हो (बडा़ हो गया हो) तीसरा: किसी काम के लिये व्यक्ति ने एक कानूनी उम्र प्राप्त कर ली हो (जैसे भारत मे व्यस्क प्रमाणपत्र मिली फिल्म को देखने के लिये व्यक्ति को १८ वर्ष का होना अनिवार्य है)। यह नाबालिग का विलोम होता है।

वयस्कता को जीव विज्ञान, मनोवैज्ञानिक वयस्क विकास, कानून, व्यक्तिगत चरित्र, या सामाजिक स्थिति के संदर्भ में परिभाषित किया जा सकता है। वयस्कता के यह विभिन्न पहलु अक्सर असंगत और विरोधाभासी होते हैं। एक व्यक्ति जीव विज्ञान के अनुसार एक वयस्क, हो सकता है और उसके शारीरिक और व्यवहार संबंधी लक्षण भी वयस्को वाले हो सकते हैं लेकिन फिर भी उसे बच्चा माना जाएगा, क्योकि उसने एक कानूनी उम्र नहीं प्राप्त की है। इसके विपरीत एक व्यक्ति कानूनी तौर पर एक वयस्क हो सकता है भले ही उसमे वयस्क चरित्र को परिभाषित करने वाली परिपक्वता और जिम्मेदारी का कोई भी लक्षण ना हो।



तन्त्रिका तन्त्र
जिस तन्त्र के द्वारा विभिन्न अंगों का नियंत्रण और अंगों और वातावरण में सामंजस्य स्थापित होता है उसे तन्त्रिका तन्त्र (Nervous System) कहते हैं। तंत्रिकातंत्र में मस्तिष्क, मेरूरज्जु और इनसे निकलनेवाली तंत्रिकाओं की गणना की जाती है। तन्त्रिका कोशिका, तन्त्रिका तन्त्र की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। तंत्रिका कोशिका एवं इसकी सहायक अन्य कोशिकाएँ मिलकर तन्त्रिका तन्त्र के कार्यों को सम्पन्न करती हैं। इससे प्राणी को वातावरण में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त होती है। मनुष्य में सुविकसित तन्त्रिका तन्त्र पाया जाता है।







तंत्रिकातंत्र के भाग
स्थिति एवं रचना के आधार पर तन्त्रिका तन्त्र के दो मुख्य भाग किये जाते हैं-

  • कपालीय तंत्रिकाएँ (Cranial nerves)
  • मेरुरज्जु की तंत्रिकाएँ (Spinal nerves)

कार्यात्मक वर्गीकरण

  • Pyramidal arrangement
  • Extrapyramidal system
मस्तिष्क और मेरूरज्जु, केंद्रीय तंत्रिकातंत्र कहलाते हैं। ये दोनों शरीर के मध्य भाग में स्थित हैं। इनमें वे केंद्र भी स्थित हैं, जहाँ से शरीर के भिन्न भिन्न भागों के संचालन तथा गति करने के लिये आवेग (impulse) जाते हैं तथा वे आवेगी केंद्र भी हैं, जिनमें शरीर के आभ्यंतरंगों तथा अन्य भागों से भी आवेग पहुँचते रहते हैं। दूसरा भाग परिधि तंत्रिकातंत्र (peripheral Nervous System) कहा जाता है। इसमें केवल तंत्रिकाओं का समूह है, जो मेरूरज्जु से निकलकर शरीर के दोनों ओर के अंगों में विस्तृत है। तीसरा आत्मग तंत्रिकातंत्र (Autonomic Nervous System) है, जो मेरूरज्जु के दोनों ओर गंडिकाआं की लंबी श्रंखलाओं के रूप में स्थित है। यहाँ से सूत्र निकलकर शरीर के सब आभ्यंतरांगों में चले जाते हैं और उनके समीप जालिकाएँ (plexus) बनाकर बंगों में फैल जो हैं। यह तंत्र ऐच्छिक नहीं प्रत्युत स्वतंत्र है और शरीर के समस्त मुख्य कार्यो, जैसे रक्तसंचालन, श्वसन, पाचन, मूत्र की उत्पत्ति तथा उत्सर्जन, निस्रावी ग्रंथियों में स्रावों (हॉरमोनों की उत्पत्ति) के निर्माण आदि क संचालन करता है। इसके भी दो विभाग हैं, एक अनुकंपी (sympathetic) और दूसरा परानुकंपी (parasympathetic)।
ऊतक
ऊतक (tissue) किसी जीव के शरीर में कोशिकाओं के ऐसे समूह को कहते हैं जिनकी उत्पत्ति एक समान हो तथा वे एक विशेष कार्य करती हो। अधिकांशतः ऊतको का आकार एंव आकृति एक समान होती है। परंतु कभी कभी कुछ उतकों के आकार एंव आकृति मे असमानता पाई जाती है, मगर उनकी उत्पत्ति एंव कार्य समान ही होते हैं।

मानव ऊतक मुख्यत: पाँच प्रकार के होते हैं:
    उपकला, संयोजी ऊतक, स्केलेरस ऊतक, पेशी ऊतक तथा तंत्रिका ऊतक।

उपकला
यह ऊतक शरीर को बाहर से ढँकता है तथा समस्त खोखले अंगों को भीतर से भी ढँकता है। रुधिरवाहिनियों के भीतर ऐसा ही ऊतक, जिसे अंत:स्तर कहते हैं, रहता है। उपकला के भेद ये हैं -
    (क) साधारण,
    (ख) स्तंभाकार,
    (ग) रोमश,
    (घ) स्तरित,
    (च) परिवर्तनशील, तथा
    (छ) रंजककणकित ।

संयोजी ऊतक (Connective tissue)
यह ऊतक एक अंग को दूसरे अंग से जोड़ने का काम करता है। यह प्रत्येक अंग में पाया जाता है। इसके अंतर्गत
    (क) रुधिर ऊतक,
    (ख) अस्थि ऊतक,
    (ग) लस ऊतक तथा
    (घ) वसा ऊतक आते हैं।
रुधिर ऊतक के, लाल रुधिरकणिका तथा श्वेत रुधिरकणिका, दो भाग होते हैं। लाल रुधिरकणिका ऑक्सीजन का आदान प्रदान करती है तथा श्वेत रुधिरकणिका रोगों से शरीर की रक्षा करती है। मानव की लाल रुधिरकोशिका में न्यूक्लियस नहीं रहता है।
अस्थि ऊतक का निर्माण अस्थिकोशिका से, जो चूना एवं फ़ॉस्फ़ोरस से पूरित रहती है, होता है। इसकी गणना हम स्केलेरस ऊतक में करेंगे,
लस ऊतक लसकोशिकाओं से निर्मित है। इसी से लसपर्व तथा टॉन्सिल आदि निर्मित हैं। यह ऊतक शरीर का रक्षक है। आघात तथा उपसर्ग के तुरंत बाद लसपर्व शोथयुक्त हो जाते हैं।
वसा ऊतक दो प्रकार के होते हैं : एरिओलर तथा एडिपोस।
इनके अतिरिक्त (1) पीत इलैस्टिक ऊतक, (2) म्युकाइड ऊतक, (3) रंजक कणकित संयोजी ऊतक, (4) न्युराग्लिया आदि भी संयोजी ऊतक के कार्य, आकार, स्थान के अनुसार भेद हैं।

स्केलेरस ऊतक
यह संयोजी तंतु के समान होता है तथा शरीर का ढाँचा बनाता है। इसके अंतर्गत अस्थि तथा कार्टिलेज आते हैं। कार्टिलेज भी तीन प्रकार के होते हैं :
    हाइलाइन,
    फाइब्रो-कार्टिलेज, तथा
    इलैस्टिक फाइब्रो-कार्टिलेज या पीत कार्टिलेज।
मानव शरीर में २०६ अस्थिया होती है

पेशी ऊतक
इसमें लाल पेशी तंतु रहते हैं, जो संकुचित होने की शक्ति रखते हैं।
    रेखांकित या ऐच्छिक पेशी ऊतक वह है जो शरीर को नाना प्रकार की गतियां कराता है,
    अनैच्छिक या अरेखांकित पेशी ऊतक वह है जो आशयों की दीवार बनाता है तथा
    हृत् पेशी (cardiac muscle) ऊतक रेखांकित तो है, परंतु ऐच्छिक नहीं है।

तंत्रिका ऊतक
इसमें संवेदनाग्रहण, चालन आदि के गुण होते हैं। इसमें तंत्रिका कोशिका तथा न्यूराग्लिया रहता है। मस्तिष्क के धूसर भाग में ये कोशिकाएँ रहती हैं तथा श्वेत भाग में न्यूराग्लिया रहता है। कोशिकाओं से ऐक्सोन तथा डेंड्रॉन नाक प्रर्वध निकलते हैं। नाना प्रकार के ऊतक मिलकर शरीर के विभिन्न अंगों (organs) का निर्माण करते हैं। एक प्रकार के कार्य करनेवाले विभिन्न अंग मिलकर एक तंत्र (system) का निर्माण करते हैं।


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