Monday 2 January 2012

खूब लड़ी मर्दानी...

खूब लड़ी मर्दानी...

रानी लक्ष्मीबाई (१९ नवम्बर १८३५ - १७ जून १८५८)
आज से डेढ़ सौ साल पहले उस वीरांगना ने अपना पार्थिव शरीर छोडा था। जिनसे देशहित में सहायता की उम्मीद थी उनमें से बहुतों ने साथ में या पहले ही जान दे दी। जब नाना साहेब, तांतिया टोपे, रानी लक्ष्मी बाई, और खान बहादुर आदि खुले मैदान में अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे तब तांतिया टोपे ने इस बात को समझा कि युद्ध में सफल होने के लिए उन्हें ग्वालिअर जैसे सुरक्षित किले की ज़रूरत है। अंग्रेजों के वफादार सिंधिया ने अपनी तोपों का मुंह रानी की सेना की ओर मोड़ दिया परन्तु अंततः आज़ाद्शाही सेना ने किले पर कब्ज़ा कर लिया। सिंधिया ने भागकर आगरा में अंग्रेजों की छावनी में शरण ली। युद्ध चलता रहा। बाद में १७ जून १८५८ को रानी वीरगति को प्राप्त हुईं। ध्यान देने की बात है कि मृत्यु के समय इस वीर रानी की आयु सिर्फ़ २३ वर्ष की थी।

रानी की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने तांतिया टोपे को पकड़ लिया। विद्रोह को कुचल दिया गया और तांतिया को दो बार फांसी चढाया गया। स्वतन्त्रता सेनानियों के परिवारजन दशकों तक अँगरेज़ और सिंधिया के सिपाहियों से छिपकर दर-बदर भटकते रहे। रानी के बारे में सुभद्रा कुमारी चौहान के गीत "बुंदेले हरबोलों के मुंह..." से बेहतर श्रद्धांजलि तो क्या हो सकती है? अपनी वीरता से रानी लक्ष्मीबाई ने फ़िर से यह सिद्ध किया कि अन्याय से लड़ने के लिए महिला होना या कम आयु कोई भी बाधा नहीं है।

ज्ञातव्य हो कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज में पहली महिला रेजिमेंट का नामकरण रानी लक्ष्मीबाई के सम्मान में किया था।

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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* 1857 की मनु - झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
* झांसी की रानी रेजिमेंट
* सुभद्रा कुमारी चौहान
* यह सूरज अस्त नहीं होगा
* खुदीराम बासु
* रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी
* The Rani of Jhansi - Time Specials

श्रद्धांजलि के सुमन
सुभद्रा कुमारी चौहान के गीत "बुंदेले हरबोलों के मुंह..." से

रानी गई सिधार, चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र थी कुल तेईस की, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आई बन स्वतंत्रता नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जाओ रानी याद रखेंगे हम कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनाशी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी,
तेरा स्मारक तू होगी तू खुद अमिट निशानी थी। 

कैंसर का आनंद

"कैसी विडंबना थी कि जब मौत अपना मुँह
खोले मेरे सामने खड़ी थी मैं वास्तव में पहली बार
जिंदगी जीने की शुरुआत कर रहा था।"
Cancer ka Anand

Cancer Karan Aur Nivaran
Accupressure aur Swasthya Jivan

एक्यूप्रेशर और स्वस्थ जीवन

                                             एक्यूप्रेशर और स्वस्थ जीवन
एक्यूप्रेशर एक सरल, प्रभावकारी एवं सुरक्षित चिकित्सा-पद्धति है। इसके अंतर्गत शरीर को दर्द, तनाव, थकान, पीड़ा एवं रोग से मुक्ति प्रदान करने के लिए उपकरण से कुछ विशेष प्रतिबिंब (रिफ्लेक्स) बिंदुओं पर दबाव डाला जाता है। इस पद्धति का विशेष लाभ यह है कि इसका प्रयोग घर में किया जा सकता है और इससे कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है, तथापि इसे सभी रोगों के उपचार के लिए रामबाण न समझा जाए, क्योंकि कोई भी चिकित्सा-पद्धति सभी रोगों में समान रूप से प्रभावकारी नहीं होती है। यही बात एक्सूप्रेशर पर भी लागू होती है। किंतु जो रोग शरीर के विभिन्न अंगों के गलत ढंग से कार्य करने के कारण उत्पन्न हुआ है, उसके निदान में यह पद्धति अत्यंत उपयोगी है। यदि इसका समुचित प्रयोग किया जाए तो इससे कई पुराने रोगों का उपचार संभव है, जो अन्यथा ठीक नहीं होते।

एक्यूप्रेशर में उन बिंदुओं का निर्धारण आसान है जिन पर दबाव डालने की आवश्यकता होती है। हालाँकि यह कार्य देखने में सरल लगता है, किंतु स्वयं प्रयोग करने में जोखिम भी है। हम इसे जोखिम इसलिए कहते हैं, क्योंकि कई बार उपचार में विंलब होने से रोग जटिल हो जाता है। इससे रोग दीर्घकालीन अवधि तक कायम रहता है अथवा समय पर जीवन-रक्षक उपचार नहीं हो पाता। हालाँकि ऐसी दुर्घटनाएँ यदा-कदा ही होती हैं, तथापि सावधानी के रूप में रोग की सही पहचान होने के उपरांत ही इस पुस्तक में सन्निहित दिशा-निर्देशों का प्रयोग किया जाना चाहिए, आपातकालीन स्थिति में जब रोगी चिकित्सक के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा हो अथवा जब उसे अस्पताल में भरती कराने ले जाया जा रहा हो, उस समय भी प्राथमिक चिकित्सा के रूप में प्रेशर दिया जा सकता है।

भूमिका


जब कोई व्यक्ति बीमार होता है तो वह रोग के उपचार हेतु चिकित्सा विज्ञान की शरण में जाता है। व्यक्ति अपनी आवश्यकता एवं आस्था के अनुरूप एलोपैथी, होम्योपैथी, आयुर्वैदिक, यूनानी अथवा अन्य किसी चिकित्सा-प्रणाली की शरण में जाता है। इस संदर्भ में यह जानना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि किसी खास चिकित्सा प्रणाली के प्रभाव अथवा उपयोगिता को दूसरे की तुलना में कम करके आँकने से कोई लाभ नहीं। जैसा कि पहले स्पष्ट किया जा चुका है, व्यक्ति अपनी आवश्यकता के अनुरूप चिकित्सा- पद्धति अपनाता है, अतः रोगी को रोग की तीव्रता एवं प्रकृति के साथ-साथ अपनी आस्था के अनुरूप चिकित्सा-पद्धित का चयन करना चाहिए।

एक्यूप्रेशर प्राचीनतम प्रभावी चिकित्सा-पद्धतियों में से एक है। यह पूर्णतया प्राकृतिक उपचार पर आधारित है। चूँकि इस उपचार-पद्धति के अंतर्गत रोगी को कोई दवा नहीं दी जाती है, इसलिए इससे कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता है। इससे दूसरा लाभ यह है कि रोगी को कोई भी दवा नहीं दिए जाने के कारण इसका किसी अन्य चिकित्सा-पद्धति के प्रति विरोध भी नहीं है। उदाहरणस्वरूप, आंशिक रूप से स्वस्थ होने तक रोगी एक्यूप्रेशर के साथ-साथ किसी अन्य चिकित्सा पद्घति के द्वारा भी इलाज करवा सकता है, तत्पश्चात् जैसे-जैसे स्वास्थ्य-लाभ होता जाए, संबद्ध चिकित्सक के परामर्श से ओषधि की मात्रा कम की जा सकती है।

इस पद्धति को स्वीकार करने एवं लागू करने के पीछे सामान्य सिद्धांत यह है कि मनुष्य के शरीर में सभी रोगों के निवारण की जीवनी शक्ति स्वतः विद्यमान है। आवश्यकता केवल इस बात की है कि सम्पूर्ण उर्जा को सक्रिय करके उसे समुचित दिशा दी जाए। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक्यूप्रेशर के माध्यम से उपचार करते समय रिफ्लेक्सोलॉजी के सिद्धांत का उपयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि शरीर के अधिकांश महत्वपूर्ण अंगों के प्रतिबिंब केंद हथेलियों एवं तलवों में पाए जाते हैं। इन प्रतिबिंब केंद्रों को प्रतिक्रिया बिंदु’ भी कहा जाता है। जब कोई व्यक्ति किसी रोगी से पीड़ित रहता है तो प्रभावित अंग से संबंधित बिंदु संवेदनशील हो जाता है और उसे दबाने पर दर्द होता है।

इस पद्धति से उपचार के चमत्कारी परिणामों को देखते हुए चिकित्सा की अन्य पद्धतियों के नियमित अभ्यासकर्ताओं ने भी एक्यूप्रेशर में रुचि लेते हुए इसका प्रयोग शुरू कर दिया है। इस पद्धति का अनुसरण करने पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता, क्योंकि इसके अंतर्गत न तो ओषधि की आवश्यकता होती है और न ही किसी प्रकार की शल्य चिकित्सा की जाती है। एक्यूप्रेशर के माध्यम से उपचार का अन्य लाभ यह है कि यह न केवल रोग-निवारक है अपितु आरोग्यकर भी है। सप्ताह में दो दिन घर बैठे 20-25 मिनट प्रतिदिन विशिष्ट प्रतिबिंब केंद्रों पर प्रेशर देने से बिना पैसा खर्च किए रोग-निवारण हेतु आप संपूर्ण एक्यूप्रेशर प्रक्रिया अपना सकते हैं। प्रारंभ में यह उचित होगा कि किसी एक्यूप्रेशर चिकित्सक के मार्गदर्शन में कम-से-कम एक सप्ताह एक अभ्यास किया जाए, ताकि अभ्यासकर्ता प्रतिबिंब बिंदुओं की पहचान करना सीख सके। नए लोगों के लिए यह जानना आवश्यक है कि किन बिंदुओं पर दबाव दिया जाए, कितना दबाव दिया जाए और कितनी देर तक दबाव दिया जाए।

जब कोई व्यक्ति किसी रोग से पीड़ित होता है तो प्रभावित अंग से संबंधित प्रतिबिंब केंद्र अथवा उस मध्याहृ रेखा पर पड़ने वाला प्रतिबिंब बिंदु अत्यंत संवेदनशील हो जाता है। जब हम इन प्रतिबिंब बिंदुओं पर दबाव डालते हैं तो इनमें से कुछ बिंदु बहुत दर्द करने लगते हैँ। यहाँ तक कि इनसे स्पर्श होने पर भी रोगी को चुभन जैसा दर्द होता है। रोगी को यह अनुभूति होती है जैसे किसी ने वहाँ कोई कील अथवा काँच का टुकड़ा चुभों दिया हो।

इस प्रकार जिन बिंदुओं के स्पर्श मात्र से असामान्य रूप से दर्द होता है, दबाव डालने के लिए वही बिंदु उपयुक्त होता है। ऐसे बिंदुओं की पहचान तलवे एवं हथेली में करना श्रेयस्कर होगा। नवप्रशिक्षित लोगों के लिए दबाव डालने से पूर्व ऐसे बिंदुओं पर कलम से निशान लगाना उचित रहेगा। कुछ ही दिनों के अंदर ऐसा लगेगा कि दर्द की चुभन अब नहीं रही अथवा बहुत कम हो गई है। इसका तात्पर्य यह है कि संबंधित अंग ठीक से काम करने लगा है। यहाँ यह कहना उचित होगा कि एक्यूप्रेशर तकनीक न सिर्फ रोग-निवारक एवं आरोग्यकर है, अपितु एक सीमा तक रोग निदान करने वाली भी है। एक बार जब रोग की सही पहचान हो जाती है तो एक्यूप्रेशर पद्धति के अंतर्गत उसका उपचार सुचारु रूप से किया जा सकता है।

भाग-1

एक्यूप्रेशर एवं एक्यूपंक्चर में अंतर


ऐसा कहा जाता है कि एक्यूप्रेशर एवं एक्यूपंक्चर दोनों चिकित्सा-पद्धतियाँ चीनी तकनीक पर आधारित हैं। दोनों प्रतिबिंब-शास्त्र (रिफ्लेक्सोलॉजी) का अनुसरण करती हैं, किंतु इन दोनों के बीच मूल अंतर उपचार की विधि का है। एक्यूप्रेशर में दबाव उँगली अथवा अँगूठे, कठोर रबर, प्लास्टिक या लड़की से बने उपकरण जिसे प्रायः जिमि’ कहते हैं अथवा रोलर की सहायता से दिया जाता है। इसके अंतर्गत प्रभावित क्षेत्र जहाँ प्रतिबिंब बिंदु स्थित हैं वहाँ रोलिंग द्वारा उत्तेजना प्रदान की जाती है। एक्यूपंक्चर में विभिन्न बिंदुओं पर सुई चुभोई जाती है और निम्न शक्ति-युक्त विद्युत तरंगों को प्रवाहित कर अथवा अन्य उन्नत पद्धतियों का उपयोग कर उत्तेजना प्रदान की जाती है।

ऐसा महसूस किया गया है कि अधिकांश लोग एक्यूपंक्चर की तुलना में एक्यूप्रेशर के माध्यम से उपचार कराना अधिक पसंद करते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि एक्यूप्रेशर की तुलना में एक्यूपंक्चर महँगी एवं क्लिष्ठ चिकित्सा-पद्धति है। इस बात का हमेशा ध्यान रखना पड़ता हैकि प्रशिक्षित एक्यूपंक्चर विशेषज्ञ से ही उपचार कराया जाए। चूँकि सुई चुभोने की प्रक्रिया में बहुत ही सावधानी रखनी पड़ती है। दूसरी ओर, एक्यूप्रेशर बहुत ही सरल प्रक्रिया है। लोग घर बैठे इसे अपना सकते हैं। अतः आर्थिक रूप से भी यह एक सस्ती पद्घति है। सामान्य समझ-बूझवाला व्यक्ति भी घर बैठे इसे अपना सकता है, हालाँकि प्रारंभ में किसी के मार्गदर्शन में ही इस पद्धति को अपनाना चाहिए। इसमें न तो सुई चुभोई जाती है और न ही विद्युत तरंग प्रवाहित की जाती है और न ही कोई दवाई दी जाती है।...

1857 की मनु - झांसी की रानी लक्ष्मीबाई

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मणिकर्णिका दामोदर ताम्बे (रानी लक्ष्मी गंगाधर राव)
(१९ नवम्बर १८३५ - १७ जून १८५८)

मात्र 23 वर्ष की आयु में प्राणोत्सर्ग करने वाली झांसी की वीर रानी लक्ष्मी बाई के जन्मदिन पर अंतर्जाल से समय समय पर एकत्र किये गये कुछ चित्रों और पत्रों के साथ ही सेनानी कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की ओजस्वी कविता के कुछ अंश:

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी - 1850 में फोटोग्राफ्ड 

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,

जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
युद्धकाल में रानी लिखित पत्र 

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
युद्धकाल में रानी लिखित पत्र

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।

ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी का पत्र डल्हौज़ी के नाम

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
मनु के विवाह का निमंत्रण पत्र

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
अमर चित्र कथा का मुखपृष्ठ्

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।

घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झांसी की रानी की आधिकारिक मुहर 
रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,

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सम्बन्धित कड़ियाँ
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मजाक-मजाक में

मजाक-मजाक में

       आजकल जिधर देखो सिक्वेल की भरमार है। सिक्वेल तो पहले भी आते रहे, लेकिन अधिक चर्चा में कुछेक दिन से ही आए हैं। सिक्वेल का हाल यह है कि किसी ने तीसरे चरण में जाकर मारखाई तो किसी की शुरुआत ही खराब हो गई। उसके बाद सिक्वेल का ख्वाब ही दिल से निकाल दिया।
      आजकल डॉन-2 बड़ी चर्चा में है। शायद इस बार डॉन का स्टेंडर्ड बढ़ गया है। हो सकता है इस बार पूरी दुनिया की पुलिस उसकी खबर कर रही हो। 14 अप्रैल 1978 को रिलीज हुई अमिताभ बच्चन की डॉन का जादू आज भी बरकरार है कि शाहरुख खान की दोनों डॉन हिट हो गई। फिल्मों की सफलता ने उसे कम से कम सफल डॉन तो बना ही दिया। धूम-2, मर्डर-2 जैसे सिक्वेल भी सफल हो गए।
      सिक्वेल की सफलता के दौर में अन्ना अनशन का सिक्वेल फेल हो गया। खेल में तालियां बजें, किलकारियां लगे, थोड़ा हला हो तो खेलने वचालों का हौशला बढ़ता है। जब कोई ताली बजाने वाला न हो तो खेलने का क्या औचित्य? कोई तारीफ करने वाला नहीं हो तो संवरने का क्या फायदा?
     मूल अनशन और उसका पहला सिक्वेल तो बहद सफल रहा, लेकिन दूसरा सिक्वेल गच्चा खा गया। अप्रैल में अन्ना का अनशन शुरू हुआ तो देश ने हाथों-हाथ लिया। सरकार के हाथ-पांव फूल गए। नौ अप्रैल को अनशन तुड़वाया।
      एक बार शतक लग जाए तो बार-बार बैटिंग करने को दिल चाहता है। नेताओं ने तो न सुधरने की कमस खाई हुई थी। नतीजन बाबा रामदेव ने भी योग क्रियाएं तेज कर दीं। पांच जून 2011 को दिल्ली के रामलीला मैदान में आ डटे। बाबा का शो अन्ना के अनशनल से भी हिट जा रहा था। रात को अचानक बादल गरजे और रामलीला मैदान में बिजली गिर गई। बिजली तो स्वभाव से ही चपला होती है और ऐसे ही उसको गिराने वाले। अपनी गलती कहां मानने वाले थे। मीन-मेख निकालते हुए बाबा रामदेव कोक कटघरे में ला खड़ा किया। इस देश में सच बोलना भी तो गुनाह है? शायद यही बात बाबा को समझ नहीं आई।
     जब कोई हलचल नहीं हुई तो टीम अन्ना ने 20 अगस्त 2011 को दिल्ली के उसी रामलीला मैदान में अन्ना अनशन-2 रिलीज कर दिया। साठ साल से सोए कुंभकर्ण जागने लगे। शो देखने और दिखाने वाले पहली रामलीला से सबक ले चुके थे। भीड़ इतनी उमड़ी कि इस बार न बिजली में गिरने की हिम्मत हुई और न ही गिराने वालों की।  अन्ना अनशन का सिक्वेल सुपर-डुपर हिट हो गया। बिजली गिराने वाले चिंचौरियां करते हुए शो खत्म कराने में जुट गए। बेशर्म तो नहीं सोचता, अंत में ईज्जतदार को ही सोचना पड़ता है। खैर, 28 अगस्त 2011 को शो समाप्त हो गया।
     लाज की उम्मीद उस इन्सान से की जाती है जिसे कुछ शर्म बची हो। फरहान अख्तर के डॉन-2 बनाने की चर्चा होने लगी। सरकार ने ऐसे हालात पैदा कर दिए कि अन्ना टीम को 27 दिसंबर को तीन दिन के लिए अन्ना अनशन-3 रिलीज करना पड़ा। डॉन-2 ऊपर और अनशन-3 नीचे। अन्ना को शो निर्धारित समय सीमा से एक दिन पहले ही खत्म करना पड़ा। लोग दिल बहलाने के लिए डॉन-2 देखने वाली भीड़ का हिस्सा तो बनी, लेकिन देश को भूल गए। अनशन-3 समाप्त हुआ तो अगले ही दिन सरकार ने अपनी असलियत दिखा दी। जिसके खून में बेवफाई हो उसे वफा कहां से आती? लोकपाल बिल अटक गया।
     लहरों से उरकर कभी नौका पार नहीं होती और कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। अगर सिक्वेल न निकलते तो शायद लोकपाल बिल आज भी उसी जगह पड़ा होता जहां सालों से पड़ा था। फ्लॉप शो पर ना तुम निराश हो बाबा और ना तुम अन्ना। मौसम सदा एक जैसा नहीं रहता। हर शो फ्लॉप नहीं होता। दोनों मिलकर शो करो। इस बार सफलता की गारंटी पक्की। अब तक सब चलता था क्योंकि हम चलने देते थे? लेकिन अब नहीं चलेगा क्योंकि हम नहीं चलने देंगे।

सोशल साइट्स पर पाबंदी अनुचित

Saturday, December 10, 2011

सोशल साइट्स पर पाबंदी अनुचित

      दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने सोशल साइट्स पर पाबंदी लगाने का बयान देकर नई बहस छेड़ दी है। सोशल साइट्स को सेंसर करना आज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीनने जैसा है। पढ़ी-लिखी आबादी का बड़ा वर्ग इन साइट्स पर वीडियो, तस्वीरें, विचार, संदेश आदि एक दूसरे से शेयर करते हैं। ये संदेश कितने लोगों से संबंध रखते हैं इसकी गिनती करना भी संभव नहीं है।
    सवाल यह है कि पहले कभी सोशल साइट्स को सेंसर करने की बात नहीं की गई। फिर अब अचानक इसकी क्या आवश्यकता पड़ गई?  दूरसंचार मंत्री के मुताबिक सोशल साइट्स पर अश्लील व आपत्तिजनक सामग्री को दिखाया जाता है। अगर ऐसा है भी तो पहले से ही काननू मौजूद हैं। ऑनलाइन मानहानि, अश्लील इलेक्ट्रोनिक जानकारी के प्रसारण व प्रकाशन पर रोक आदि दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखे गएहैं। 11 अप्रैल 2011 से तो सूचना प्रौद्योगिकी कानून भी लागू हो चुका है। इसके तहत किसी भी मीडिया कंपनी को अश्लील या आपत्तिजनक सामग्री मिलती है तो उसे 36 घंटे में हटाना अनिवार्य किया हुआ है। इतने प्रावधान होने के बाद भी साइट्स को सेंसर करना अनुचित है। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून ने भी सोशल साइट्स पर पाबंदी को अनुचित बताया है।
    सोशल साइट्स को सेंसर करने का सरकार का कदम आपातकाल की याद दिलाता है। अभिव्यक्ति पर रोक 1975 से 1977 तक आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने लगाई थी जिसके परिणाम मीडिया और राजनीति अच्छी तरह से जानते हैं और झेल भी चुके हैं।
    किसी भी प्रकार की अनुचित, अश्लील, भड़काऊ या अपमानजनक सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण दोनों ही खतरनाक हैं। देशहित में ऐसी सामग्री  पर रोक लगाना उचित है। लेकिन प्रसारण की पूरी व्यवस्था पर पूरी तरह रोक लगाना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है।
    देश में भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी आदि को लेकर यूपीए सरकार के खिलाफ गहरा रोष है। कांग्रेस को साइट्स पर विचारों के संप्रेषण से कोई एतराज नहीं बल्कि ऐतराज तो सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर की जा रही टिप्पणियों से है।
    सोशल साइट्स पर किसी व्यवस्था के खिलाफ विचार या संदेश व्यक्त करना ठीक वैसे है जैसे धरना अथवा प्रदर्शन कर किसी के खिलाफ विरोध दर्ज कराना। अगर सरकार लोगों से उनका  अधिकार छीन लेगी तो बाकि अधिकारों को देना और ना देना लगभग एक जैसा हो जाएगा।
    इस मुद्दे का एक अन्य पहलू यह भी है कि साइट्स को सेंसर करने का मामला प्रेक्टिकल रूप सें अव्यवहारिक है। दुनिया भर में सोशल साइट्स का संचालन करने वाली कंपनियां अकेले भारत में क्यों सेंसर करेंगी? सबसे बेहतर कदम सेल्फ-सेंसरशिप है। इंटरनेट यूजर्स सावधानी से सोशल साइट्स का प्रयोग करें और किसी भी तस्वीर, संदेश, विचार आदि शेयर करने से पहले सोचें की इससे किसी की भावनाएं आहत तो नहीं हो रही।

मोस्ट वांटेड कौन?

                                            मोस्ट वांटेड कौन?

    यह प्रश्न जितना रोचक है उतना ही गंभीर कि मोस्ट वांटेंड कौन है। ओसामा बिन लादेन और सद्दाम हुसैन तो गुजरे जमाने की बातें हो चुकी हैं। दाउद अब्राहम अब भी पकड़ से बाहर है। लेकिन वह मोस्ट वांटेड जैसी इमेज नहीं रखता। मुंबई बम धमाकों को अर्सा हो चुका है। अब तो देश की पुलिस भी मौके-बेमौके ही याद करती है कि उसे दाउद को भी पकडऩा है। हमारे मित्र इतने अच्छे है कि उनके यहां दाउद खुले में सैर करता है, रिश्तेदारियां निभाता है और जब पूछा जाता है तो जवाब मिलता है कि दाउद तो वहां आया ही नहीं।
    अरे छोडि़ए, हम मोस्ट वांटेड को ढूंढ़ रहे थे। भक्तों की संख्या देखकर एक बार तो भगवान भी मोस्ट वांटेड लगते हैं। भारत बड़ा हिप्पोके्रटिक देश है। यह बात कहने वाले बहुत मिलेंगे कि प्रभु प्राप्ति ही जीवन का ध्येय है। साथ ही यह कहते भी नहीं भूलते कि भगवान को आज तक किसी ने नहीं देखा है। यह बात दूसरी है कि यहां हर दूसरा साधु भगवान से मीटिंग कराने की गारंटी लेता मिलेगा। हमारी शरण मेें आओ भगवान की प्राप्ति बहुत आसानी से होगी। जितनी देर चाहो बातें करना। देश में भगवान से मिलाने वाले इतनी अधिक संख्या में हैं कि भगवान को मोस्ट वांटेड की कैटेगिरी में रखना गलत प्रतीत होता है।
    मोस्ट वांटेड कौन है? इसे जानने के लिए दिमाग के तमाम घोड़े पूरी स्पीड से दौड़ा लिए, पर मोस्ट वांटेड का पता फिर भी नहीं लगा। घोड़े थक गए तो सर्वे का सहारा लिया। लोगों ने अपने-अपने हिसाब से मोस्ट वांटेड की सूची मुझे सौंप दी। सबका मोस्ट वांटेड अलग-अलग था।
    एक दिन इंटरव्यू के लिए बस स्टैंड पर इंतजार कर रहा था। काफी देर तक बस नहीं आई तो रिक्शा पर ही चलने में भलाई समझी। मैं इंटरव्यू के ख्यालों में गुम था कि रिक्शावाले का मोबाइल गूंजा। रिक्शावाले भी मोबाइल रखने लगे हैं। यह सोचकर खुशी हुई कि देश प्रगति के रास्ते पर अनवरत अग्रसर हो रहा है।
    बीच-बीच में रिक्शावाला अंग्रेजी के शब्द भी बोल रहा था। पता चला रिक्शावाला अच्छा पढ़ा-लिखा था। अपने समय का कॉलेज टॉपर था। नौकरी नहीं मिली। पापी पेट का सवाल है। लिहाजा रिक्शा खींचना ही शुरू कर दिया। मैंने उसकी शिक्षा के बारे में क्या पूछ लिया उसकी दुखती रग पर पांव रख दिया हो जैसे। कोई विभाग ऐसा नहीं था जहां उसने नौकरी के लिए आवेदन न किया हो। नौकरी नहीं मिली तो किसी बाप ने अपनी बेटी देने की जहमत नहीं उठाई।
    रिक्शावाला बोल उठा, अगर नौकरी मिल गई होती तो मेरी जिंदगी का रुख और दु:ख कुछ और होता। नौकरी नहीं तो शादी नहीं, सुना तो दिमाग में फिर से मोस्ट वांटेड वाला विचार आया। ये दोनों ही मोस्ट वांटेड हैं। नौकरी और छोकरी। रास्ते में गल्र्स कॉलेज के पास लड़कों की भीड़ मंडरा रहीं थी। आगे पहुंचा तो पता चला दो पोस्ट के लिए दो हजार से अधिक ने आवेदन किया था।

प्रेग्नेंसी

                                                      प्रेग्नेंसी


 
एक महिला के जीवन में प्रेग्नेंसी से खूबसूरत अहसास और कोई नहीं होता। मगर, इस खूबसूरत अहसास के साथ एक बदसूरत चीज भी जुड़ी रहती है, वो है-स्ट्रेचमार्क्स। स्ट्रेचमार्क्‍स का अर्थ प्रेग्नेंसी के बाद कमर और पेट की त्वचा मुर्झाना और ढीली-सी पड़ जाना होता है।

इससे आपका व्यक्तित्व प्रभावित होता है। यह जरूरी नहीं है कि स्ट्रेचमार्क्‍स की समस्या हर गर्भवती महिला को हो, मगर जिन महिलाओं को यह परेशानी होती है। उन्हें अपने कपड़े पहनने के तरीकों तक में बदलाव लाना पड़ता है। तो जानिए स्ट्रेचमार्क्‍स और उससे छुटकारा पाने के तरीकों के बारे में...

स्ट्रेचमार्क्स के कारण

- प्रेग्नेंसी के दौरान त्वचा जब ज्यादा खिंचती है तो स्ट्रेचमार्क्‍स बनने लगते हैं। ज्यादातर महिलाओं को गर्भावस्था की तिमाही में स्ट्रेचमार्क्‍स होते हैं। स्ट्रेचमार्क्‍स होने का कारण है उन टिश्यू का फट जाना जो कि त्वचा को खिंचने में मदद करते हैं।

- स्ट्रेचमार्क्‍स होना इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपकी त्वचा में खिंचने की कितनी क्षमता है। अगर आप यह पता लगाना चाहती हैं कि आपको स्ट्रेचमार्क्‍स होंगे या नहीं तो अपनी मां से पूछें कि उन्हें हुए थे या नहीं। क्योंकि स्ट्रेचमार्क्‍स आनुवांशिक होते हैं।

- कई बार हार्मोनक इंबैलेंस की वजह से भी स्ट्रेचमार्क्‍स होने लगते हैं। तो कई महिलाओं को वातावरण में आए बदलावों के चलते रिएक्शन के रूप मे स्ट्रेचमाक्र्स होने लगते हैं।

- जिन महिलाओं की त्वचा रूखी व बेजान होती है, उन्हें स्ट्रेचमार्क्‍स होने के चांसेस ज्यादा होते हैं।

स्ट्रेचमार्क्‍स से बचाव

- ज्यादातर महिलाओं का मानना होता है कि क्रीम और लोशन का प्रयोग करके वे स्ट्रेचमार्क्‍स से बचाव कर सकती हैं। मगर इनके अलावा भी आजकल बाजार में कई ऐसे प्रोडक्ट्स मौजूद हैं, जिनसे आपकी त्वचा अच्छे से मॉश्चराइज होती है।

- जब आप स्ट्रेचमार्क्‍स क्रीम या लोशन अपने पेट पर लगा रही होती हैं तो उस समय आप अप्रत्यक्ष रूप से अपने बेबी को मसाज दे रही होती हैं।

- स्ट्रेचमार्क्‍स से बचने का सबसे आसान तरीका है डॉक्टर द्वारा सुझाया गया वजन बढ़ाना। आमतौर पर डॉक्टर्स महिलाओं को 10-12 किलो वजन बढ़ाने के लिए सलाह देते हैं। मगर, कई महिलाएं ज्यादा वजन बढ़ा लेती हैं, जिससे स्ट्रेचमार्क्‍स बनते हैं।

कैसे हटाएं स्ट्रेचमार्क्‍स

- स्ट्रेचमार्क्‍स होने पर ज्यादा परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि समय के साथ स्ट्रेचमार्क्‍स फेड होने लगते हैं। डिलेवरी के 12-14 महीनों के बाद ये कम हो जाते हैं।

- अगर आपके स्ट्रेचमार्क्‍स हद से ज्यादा बदसूरत लगते हैं, तो आपको डर्मेटोलॉजिस्ट से कंसल्ट करना चाहिए। आप डिलेवरी के तुरंत बाद ही डॉक्टर से कंसल्ट करें अन्यथा ये स्ट्रेचमार्क्‍स को साफ नहीं कर पाते।

- कई महिलाओं को स्तनपान करवाने से स्तन पर स्ट्रेचमार्क्‍स होने लगते हैं और वे इनसे निजात पाने के लिए किसी भी क्रीम का इस्तेमाल करने लगती हैं। यह गलत है, इससे फीडिंग पर प्रभाव पड़ सकता है।

- अगर कई लोशन और इलाज के बाद भी आपके स्ट्रेचमार्क्‍स ठीक नहीं हो रहे हों तो आप लेजर ट्रीटमेंट करवाएं। मगर, इससे पहले डॉक्टर्स से कंसल्ट जरूर करें।

घरेलू उपचार

- स्ट्रेचमार्क्स से छुटकारा पाने के लिए अगर आप घरेलू उपचार अपनाना चाहती हैं तो हर रोज एक्सरसाइज करें। खासकर बैली (पेट) एक्सरसाइज, ताकि पेट और कमर के आसपास की मांसपेशियां फिट रहें।

- ऐसे आहार का सेवन करें जिसमें विटामिन ई और विटामिन सी भरपूर मात्रा में हों क्योंकि ये टिश्यू और कोशिका निर्माण की प्रक्रिया को तेज करते हैं।

- स्ट्रेचमार्क्‍स वाले हिस्से में हर रोज विटामिन ई युक्त तेल से अच्छी तरह मसाज करें।

कढी खाने से सूजन घट जाती है

                                   कढी खाने से सूजन घट जाती है


 
अगर आप गठिया या अर्थराइटिश के दर्द से परेशान हैं तो अपने खाने का मेन्यू बदलें। शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया है कि कढी जोडों के दर्द में भी राहत देती है। कढी खाने से सूजन घट जाती है और कोहनी दुरूस्त हो जाती है।

लंदन के नॉटिंघम विश्वद्यालय और जर्मनी के मैक्समिलियंस युनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने भारतीय कढियों के एक महत्वपूर्ण तत्व करकूमिन की शिनाख्त की है जो जोड में स्त्रायु सूजन को रोकता है।

करकूमिन हल्दी से बनती है। इसका इस्तेमाल स्त्रायु बीमारी के दौरान सूजन फैलाने वाली जैविक यांत्रिकी को कम करने के लिए किया जा सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन से जोड के दर्द के लिए इलाज का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

सोना महंगा, पर ख़रीदारों पर असर नहीं

                              सोना महंगा, पर ख़रीदारों पर असर नहीं

सोने का दाम भले ही आसमान छू रहा हो, लेकिन ख़रीदार इस बेशक़ीमती धातु को ख़रीदने के लिए बाज़ारों की ओर खिंचे चले आ रहे हैं.
दिल्ली के करोल बाग़ में सुनार की ज़्यादातर दुकानों पर भीड़ देखने को मिली, जहां ख़रीदार अपनी बचत राशि को दिल खोल कर सोने पर लुटा रहे थे.
सोने के बढ़ते दामों से लोगों में भले ही ख़रीदारों में थोड़ी मायूसी भी छाई हो, लेकिन सुनारों की चांदी हो गई है.
लोग या तो निवेश के नज़रिए से सोने की ख़रीदारी कर रहे हैं या फिर इस डर से कि कहीं आने वाले दिनों में सोना और महंगा न हो जाए.
हम भले ही महंगाई की वजह से अपने राशन में कटौती कर सकते हैं, लेकिन जब बात सोने की आती है तो इसे ख़रीदने में हम पीछे नहीं हटते. पिछले पांच महीनों में सोना 19,000 से 26,000 के स्तर पर पहुंच गया है, लेकिन फिर भी सोने की ख़रीददारी मज़बूत है. ख़ासतौर पर सोना महिलाओं के दिल के बहुत क़रीब है, तो ऐस में कहां ख़रीददारी कम हो सकती है?
सुनार की दुकान पर आए एक ख़रीददार
मनदीप सिंह नाम के एक सुनार का कहना था कि सोने के दाम भले ही कितने भी बढ़ें, ख़रीदार इस धातु से ख़ुद को अलग नहीं कर पाता.
उन्होंने कहा, “सोने के दाम में बढ़त का हमारे व्यापार पर सकारात्मक असर पड़ा है क्योंकि लोगों का सोचना है कि इससे पहले सोने के दाम और बढ़ जाएं, उन्हें आज ही भविष्य के लिए ख़रीददारी कर लेनी चाहिए. जिस तरह से वैश्विक बाज़ारों में अफ़रा-तफ़री मची है, उसे देख कर तो लगता नहीं कि सोने का दाम नीचे गिरेगा. साथ ही इस धातु में ज़्यादा निवेश के कारण भी इसके दाम में बढ़ोतरी ही होगी.”
भारत में सोने का दाम रातों-रात तीन प्रतिशत बढ़ कर 26,198 रुपए प्रति दस ग्राम के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है.
सोमवार को वैश्विक बाज़ारों में मची खलबली के बीच सोने का दाम 25,000 प्रति दस ग्राम पर पहुंच गया था.

'महिलाओं के दिल से जुड़ा'

कुछ लोग निवेश के लिए सोना ख़रीद रहे हैं, तो कुछ शादी-ब्याह के लिए.
सोना एक ऐसा धातु है जिसके बिना भारत में लगभग हर त्यौहार अधूरा सा है.
अगले महीने से शादियों का मौसम की शुरुआत होने वाली है और ऐसे में लोगों के पास सोना ख़रीदने के अलावा कोई चारा नहीं है. फिर चाहे दाम आसमान क्यों न छू रहे हों.
सोना ख़रीदने आई एक महिला ने कहा, “हालांकि मेरी बेटी की शादी नवंबर में है, लेकिन सोने की लगातार बढ़ती हुई क़ीमत को देखते हुए मैंने फ़ैसला किया कि मुझे आज ही ख़रीदारी कर लेनी चाहिए. क्या मालूम नवंबर तक ये धातु क्या रंग दिखाए.”
सोने का दाम भविष्य में बढ़ेगा ही बढ़ेगा. इसलिए बढ़ते दामों की वजह से मुझे लगा कि मुझे आज ही सोना ख़रीदना चाहिए, ताकि भविष्य में उसे बेच कर मैं अच्छा मुनाफ़ा कमा सकूं.
सोना ख़रीदने आई एक युवती
जहां कुछ लोगों को ‘मजबूरी’ में सोना ख़रीदना पड़ रहा है, तो वहीं कुछ लोगों की भविष्य में निवेश के नज़रिए से इस धातु में दिलचस्पी बन रही है.
सोने के बिस्कुट ख़रीदने आई एक युवती का कहना था, “सोने का दाम भविष्य में बढ़ेगा ही बढ़ेगा. इसलिए बढ़ते दामों की वजह से मुझे लगा कि मुझे आज ही सोना ख़रीदना चाहिए, ताकि भविष्य में उसे बेच कर मैं अच्छा मुनाफ़ा कमा सकूं.”
तो वहीं एक युवक ख़रीदार ने कहा कि भारतीय लोगों पर बढ़ते दामों का कोई असर नहीं पड़ेगा, “हम भले ही महंगाई की वजह से अपने राशन में कटौती कर सकते हैं, लेकिन जब बात सोने की आती है तो इसे ख़रीदने में हम पीछे नहीं हटते. पिछले पांच महीनों में सोना 19,000 से 26,000 के स्तर पर पहुंच गया है, लेकिन फिर भी सोने की ख़रीदारी मज़बूत है. ख़ासतौर पर सोना महिलाओं के दिल के बहुत क़रीब है, तो ऐस में कहां ख़रीदारी कम हो सकती है?”
ख़रीदारों की बात सुन कर इस बात की पुष्टि की जा सकती है कि भारतीय लोग विश्व में सोने के सबसे बड़े खरीदार हैं और सोना ख़रीदने में सबसे बड़े दिलदार भी.

सिगरेट औरतों के लिए ज़्यादा घातक

                               सिगरेट औरतों के लिए ज़्यादा घातक

एक शोध से पता चला है कि धूम्रपान से महिलाओं में पुरुषों की तुलना में दिल का दौरा पड़ने की संभावना काफ़ी बढ़ जाती है.यह शोध अमरीका स्थित वैज्ञानिकों ने सिंगापुर, नॉर्वे और तुर्की जैसे कई देशों में किया है.
लॉन्सेट पत्रिका में प्रकाशित लेख में इसका कोई कारण नहीं बताया गया है लेकिन ये संकेत दिए गए हैं कि महिलाएं सिगरेट से निकलने वाले विषाक्त रसायनों को पुरुषों की तुलना में ज़्यादा आत्मसात करती हैं.
यही कारण है कि सिगरेट पीने वाली महिलाओं में पुरुषों का तुलना में फेफड़े का कैंसर होने की संभावना भी अधिक होती है.
बहुत पहले से ही यह स्पष्ट हो चुका है कि धूम्रपान से दिल का दौरा पड़ने का ख़तरा बढ़ जाता है. लोकिन करीब पच्चीस लाख लोगों पर शोध करने के बाद ये बात पहली बार सामने आई है कि महिलाओं पर इसका असर पुरुषों की तुलना में ज़्यादा पड़ता है.
शोध के अनुसार धूम्रपान से महिलाओं को पुरुषों की तुलना में दिल की बीमारी होने की संभावना पच्चीस फ़ीसदी ज़्यादा होती है.
अब शायद तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रमों को महिलाओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए ख़ासकर उन देशों में जहाँ युवा महिलाओं में धूम्रपान करने का चलन बढ़ रहा है.

स्वतंत्रता दिवस

स्वतंत्रता दिवस

स्वतंत्रता दिवस

आजादी के बाद से हमारे देश में राजनीतिक पार्टियों, राजनेताओं व नौकरशाहों के चरित्र और नैतिक मूल्यों में लगातार गिरावट ने दर्शाया है कि धृतराष्ट्र का कुर्सी प्रेम किन-किन विचित्र खेलों को जन्म देता है। चुनाव लड़ना अब हिंसा, धन और बाहुबल का खेल होकर रह गया है।


हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं में अपराधियों की भरमार होती जा रही है। क्या यही बापू के सपनों का भारत है? मंत्री, अफसर, धन्नासेठ सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। कुल मिलाकर देश का भविष्य इन्हीं के हाथों में कैद होता जा रहा है।

'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा', के नारे, और संकल्प को साकार करने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसा दूसरा नेता आजादी के बाद देश में न होना दुर्भाग्य की बात है। अपने अतीत से सबक नहीं लेने वाले देशों का इतिहास ही नहीं, भूगोल भी बदल जाता है। आज देश में धीरे-धीरे ही सही आजादी के पहले की स्थिति येन-केन-प्रकारेण निर्मित होती दिख रही है।

लेकिन, सत्ता में काबिज राजनेताओं की आंखों पर राजनीतिक स्वार्थ की पट्टी बंधी हुई है। वे तो बस अपना घर भरने और कुर्सी बचाने में ही अपनी शक्ति लगा रहे हैं। वहीं, विपक्षी राजनेताओं का एक सूत्री कार्यक्रम है कि उन्हें सत्ता कैसे हासिल हो?

इन दो पाटों के बीच में आम जनता पिस रही है और मां भारती खून के आंसू बहा रही है। वो बिलख-बिलख कर कह रही हैं कि कहां हैं मेरे प्यारे महात्मा गांधी, बच्चों के चाचा जवाहरलाल नेहरू, आजादी के दीवाने सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह ....? जिन्होंने मुझे अंग्रेजों की कैद से तो आजादी दिला दी, लेकिन अपनों के हाथों घुट-घुटकर जीने को छोड़ दिया।

अरे, मेरे बच्चों कोई तो मेरे इन लालों के आदर्शों पर चलो, उनके स्वप्नों को साकार करो। जीवनभर उनके बताए मार्गों पर नहीं चल सकते तो दो-चार कदम ही बढ़ो। इतने में ही मेरा मान-सम्मान बढ़ सकेगा और मेरे ऊपर आए नक्सलवाद, आतंकवाद, दंगा, महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा, धर्म, भाषा व क्षेत्रवाद की मुसीबतें टल जाएंगी।

देशवासियों के सामने एक प्रश्न यह भी है कि आखिर हम क्यों पी रहे हैं, पानी खरीदकर? प्रकृति प्रदत्त हवा, पानी पर तो सभी का समान अधिकार है। फिर कौन लोग हैं जो पानी बेच रहे हैं? लोग आखिर क्यों खरीद रहे हैं,पानी ? सरकार क्या कर रही हैं। जीने के लिए दो जून की रोटी की जरूरत तो सभी को है, लिहाजा कुछ लोग गरीबी, भुखमरी, तंगहाली के चलते तो कुछ पैसे कमाने की खातिर खून बेचने, खरीदने का धंधा कर रहे हैं।

अब पानी का व्यवसाय फल-फूल रहा है। ऐसी स्थिति में वह दिन दूर नहीं जब सांस लेने के लिए हवा खरीदनी पड़ेगी? आखिर लोग विरोध क्यों नहीं करते?

देश में प्रजातंत्र है। सरकार जनता की है। जनता के लिए है, और जनता ने ही चुनी है। तो फिर ऐसी सरकार की जरूरत क्यों है, जिनके राज में पानी खरीद कर पीना पड़े, शुद्ध हवा भी न मिले, दो जून की रोटी के लिए खून बेचना पड़े? अगर समय रहते केंद्र और राज्य सरकारों की आंखें नहीं खोली गईं तो वह दिन दूर नहीं जब सांस लेने के लिए भी अनुमति लेनी पड़ेगी?

अब देश में ऐसी कौन सी चीज बची है जो नहीं बिकतीं? स्वयंभू धर्माचारी, राजनेता, अधिकारी, कर्मचारी, व्यापारी, उद्योगपति बिके हुए हैं, पुलिस व कथित तौर पर न्यायाधीश पर भी बिकने का आरोप है।

ऐसे हालात में क्या देश का कोई नागरिक गर्व से यह कह सकता है कि वह देवताओं की भूमि भारतवर्ष में रहता है, जहां धर्म, कर्म, नैतिकता ही प्रधान रही क्या यह बलिदानी भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाषचंद्र बोस जैसे शूरवीर की भूमि है, महात्मा गांधी, महावीर, नानक, गौतम बुद्ध, कबीर जैसे संत-महात्माओं की कर्मभूमि है?

जरा सोचिए! कहते हैं एक व्यक्ति से बड़ा परिवार, परिवार से ब़ड़ा समाज और समाज से बड़ा देश होता है। विपत्ति के समय परिवार के लिए खुद को, समाज के लिए परिवार को और देश के लिए समाज को कुर्बान कर देना चाहिए। लेकिन, आज देश में ऐसा होते कहीं दिखाई नहीं देता? उल्टे ऐसे लोग हैं जो स्वयं को परिवार, समाज और देश से बड़ा समझने लगे हैं।

यदि ऐसा नहीं होता तो कोई राजनेता भ्रष्ट न होता, अधिकारी-कर्मचारी ईमानदार व कर्तव्यपरायण होते, व्यापारी, उद्योगपति देश की संपत्ति नहीं लूटते और जनता सरकारी संपत्ति की समुचित सुरक्षा करते, बात-बेबात पर आगजनी, तोड़फोड़ कभी न करते।

विकास के नारे लगाने वाले लोग क्या पैसे की चकाचौंध में अंधे हो गए हैं? जिन्हें लाखों भूखे, नंगे, अशिक्षित, भिखारी, गंदी बस्तियों व झोपड़पट्टियों में रहने वाले लोग, जंगलों में निवासरत आदिवासियों की दशा दिखाई नहीं देती। क्या ये भारत के वासी नहीं है?

समाज सेवा का क्षेत्र हो या धर्म-अध्यात्म अथवा राजनीति का, चारों ओर अवसरवादी, सत्तालोलुप, आसुरी वृत्ति के लोग ही दिखाई देते हैं। शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र, जहां कभी सेवा के उच्चतम आदर्शों का पालन होता था, आज व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के केंद्र बन गए हैं। व्यापार में तो सर्वत्र कालाबाजारी, चोर बाजारी, बेईमानी, मिलावट, टैक्सचोरी आदि ही सफलता के मूलमंत्र समझे जाते हैं। त्याग, बलिदान, शिष्टता, शालीनता, उदारता, ईमानदारी, श्रमशक्ति का सर्वत्र उपहास उड़ाया जाता है। गरीबी और महंगाई आज देश की विकट समस्या है।

गरीबी का अर्थ समाज की क्षमताओं और विचारों के अनुरूप जीवनस्तर और जीवन-प्रणाली से वंचित होना है। गरीबी निवारण का अर्थ है लोगों को ऐसा जीवनस्तर और जीवन-प्रणाली प्रदान करना जिससे वे सामाजिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक जीवन में संयुक्त रूप से सहभागिता प्राप्त कर सकें।

क्या यह सही नहीं है कि आज देश में आजादी की क्रांति की भांति ही एक और बगावत की सख्त जरूरत है। ताकि, भ्रष्टाचार, बेईमानी, बेरोजगारी, हिंसा, अशिक्षा, असमानता, गरीबी, महंगाई, आतंकवाद, नक्सलवाद का अंत हो सके। भारत माता की इस पीड़ा को कौन समझेगा?

रक्षाबंधन का पर्व

रक्षाबंधन का पर्व

सावन के रिमझिम मौसम के साथ ही भारत में त्योहारों की रंग-बिरंगी श्रृंखला आरंभ हो जाती है। यह त्योहार रिश्तों की खूबसूरती को बनाए रखने का बहाना होते हैं। यूं तो हर रिश्ते की अपनी एक महकती पहचान होती है। भाई-बहन का रिश्ता एक भावभीना अहसास जगाता है। रक्षाबंधन का पर्व इसी रेशमी रिश्ते की पवित्रता का प्रतीक है।
यह रिश्ता जीवन के विविध उतार-चढ़ाव से गुजरते हुए भी एक गहरे, बहुत गहरे अहसास के साथ हमेशा ताजातरीन और जीवंत बना रहता है। मन के किसी कच्चे कोने में बचपन से लेकर युवा होने तक की, स्कूल से लेकर बहन के बिदा होने तक की और एक-दूजे से लड़ने से लेकर एक-दूजे के लिए लड़ने तक की असंख्य स्मृतियाँ परत-दर-परत रखी होती है। बस, भाई-बहन के फुरसत में मिलने भर की देर है, यादों के शीतल छींटे पड़ते ही अतीत के केसरिया पन्नों से चंदन-बयार उठने लगती है। एक ऐसी सौंधी-सुगंधित सुवास जो मन के साथ-साथ पोर-पोर महका देती है।

सुहाना बचपन : सहज मनोविज्ञान
भाई का नन्हा-सा दिल पहली बार जब छोटी-सी गुलाबी-गुलाबी बहन को देखता है तब अनजानी, अजीब-सी अनुभूतियों से भर उठता है। थोड़ी-सी जिम्मेदारी, थोड़ी-सी चिंता, थोड़ा-सा प्यार, थोड़ी-सी खुशी, थोड़ी-सी जलन, थोड़ा-सा अधिकार ऐसी ही मिलीजुली भावनाओं के साथ भाई-बहन का बचपन गुलजार होता है।

मनोविज्ञान कहता है, अक्सर बड़े भाई-बहन अपने नवागत भाई या बहन को लेकर असुरक्षित महसूस करते हैं। वह मन ही मन खुद को उपेक्षित और अवांछित भी समझ सकते हैं। यहां परिवार और परवरिश दोनों की अहम भूमिका होती है। घर के बड़े हंसी-मजाक में भी कभी बच्चे को यह अहसास ना कराएं कि नए बच्चे के आगमन से उसकी अहमियत कम हो जाएगी। इस उम्र में बैठा उनका यह डर ग्रंथि बनकर रिश्तों की डोर कमजोर कर सकता है। भाई और बहन के बीच स्वस्थ रिश्ते की बुनियाद रखने की जिम्मेदारी माता-पिता की होती है।

खासकर भाई अगर बड़ा है तो उसे नई बहन के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए शिक्षा दें कि यह नन्ही जान उसके साथ खेलने और पढ़ने के लिए लाई गई है। उसके अकेलेपन को दूर करने के लिए उसे भेजा गया है। जैसे-जैसे वह बड़ी होगी उसकी खुशियों का सबब बनेगी।

अगर बहन बड़ी है तो उसे यह अहसास दिलाएं कि छोटा भाई आने से उसको मिलने वाले प्यार में कमी नहीं होगी ना व्यवहार में बदलाव आएगा। लड़कियां यूं भी मानसिक रूप से इस मामले में मजबूत होती है उन्हें बस इतना भर बताया जाना चाहिए कि इस छोटे प्राणी को अभी ज्यादा देखभाल की जरूरत है।

भाई-बहन के रिश्ते के मनोविज्ञान का बस इतना ही सच है कि उन्हें स्वस्थ वातावरण में बिना किसी भेदभाव के खिलने-खेलने-पनपने का अवसर दीजिए। प्यार की सौगात से तो ईश्वर ने स्वयं उन्हें नवाजा है आप उन्हें उस प्यार को महकाने की खुशनुमा भावनात्मक बगिया दीजिए।

नटखट बचपन : नन्ही शैतानियां
याद कीजिए अपने बचपन की शरारतें। क्या भाई-बहन के बिना वे इतनी मोहक और मासूम हो सकती थी? नहीं ना? ठीक इसी तरह आज के बचपन को भी खुलकर जीने दीजिए। बचपन की मयूरपंखी स्मृतियां उनके भविष्य की भी मुस्कान बने इसलिए बहुत जरूरी है कि बड़ा भाई अपनी छुटकी बहन के उल्टे-सीधे नाम रखें, बहुत जरूरी है कि दोनों साथ-साथ उछले-कूदे, गिरे-पड़े, धमाधम धिंगामुश्ती करें। जरूरी है कि पेड़ पर चढ़े और मिट्टी में सने, जरूरी है कि एक दूसरे के खिलौनों को तोड़े-छुपाए।
सोचिए अगर आपने यह सब उन्हें नहीं करने दिया तो कल बड़े होकर वे क्या याद करेंगे? यह कि मेरा बस्ता तुम्हारे बस्ते से ज्यादा भारी था, या यह कि मैंने तुमसे ज्यादा कोचिंग ली, या यह कि कंप्यूटर का माउस तुमने तोड़ा था और मार मुझे पड़ी थ‍ी। इन यादों में बचपन तो होगा लेकिन टूटते-बिखरते अनारों से ठहाके नहीं होंगे, बेसाख्ता फूट पड़ती हंसी के फव्वारे नहीं होंगे, मीठी चुटकियां नहीं होगी, चटपटी सुर्खियां नहीं होंगी।

इन बातों में वह बचपन होगा जो नटखट लम्हों और भोली नादानियों से जुदा होगा। इसलिए सभी नन्हे भाई-बहन को हर पल साथ में ही तीखी-मीठी नोकझोंक के साथ गुजारने दीजिए। उनके रिश्तों के अमलतास हमेशा खिले रहेंगे।

त्योहार के बहाने : रिश्ते नए-पुराने
आज सारे त्योहार तकनीक और आधुनिकता की भेंट चढ़ गए हैं। रक्षाबंधन का त्योहार भी अछूता नहीं रहा। लेकिन इसके बावजूद सबसे बड़ी बात यह है कि रिश्तों की गर्माहट, आंच, तपन या उष्मा कुछ भी कह लीजिए, वह बरकरार है। आज भी भाई का मन अपनी बहन के लिए उतना ही पिघलता है, आज भी बहन का प्यार भाई के लिए उतना ही मचलता है। यह बात और है कि तरीके बदल गए हैं, भावाभिव्यक्तियां बदल गई हैं, अंदाज बदल गए हैं मगर अहसास वही है।

चाहे इंटरनेट पर अदृश्य राखी पहुंचे या मोबाइल पर कोई भावुक-सा मैसेज चमके, चाहे हाथों में 'प्यारे भैया' का टैग लगी राखी हो या लिफाफे में पसीने की कमाई से भीगा शगुन हो। यह प्यारा रिश्ता अपनी गहराई और गंभीरता नहीं भूल सकता।

भावुकता की लहर में यही पंक्तियां उभरती है :

बहनें चिड़‍िया धूप की, दूर गगन से आए
हर आंगन मेहमान-सी, पकड़ो तो उड़ जाए।
 
 

कैंसर

कैंसर

कैंसर का नाम सुनते ही कुछ बरसों पहले तक मन में एक डर सा पैदा हो जाता था। वजह, इस बीमारी का लाइलाज होना। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब न सिर्फ कैंसर का इलाज मुमकिन है, बल्कि ठीक होने के बाद सामान्य रुप से जिंदगी को जीना कोई मुश्किल बात नहीं। शर्त यही है कि शुरुआती स्टेज पर बीमारी की पहचान हो जाए और फिर उसका मुकम्मल इलाज कराया जाए। वैसे, अगर कुछ चीजों से बचें और लाइफस्टाइल को सुधार लें तो कैंसर के शिकंजे में आने की आशंका भी काफी कम हो जाती है। कैंसर से बचाव और जांच के विभिन्न पहलुओं पर पेश है अनुराधा की स्पेशल रिपोर्ट-

हमारे देश में पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर सबसे आम है। इसके बाद पेट और मुंह के कैंसर आते हैं। महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले सबसे ज्यादा हैं। इसके बाद बच्चेदानी के मुंह के (सर्वाइकल) कैंसर का नंबर आता है।ब्रिटिश ऐक्ट्रिस जेड गुडी की सर्वाइकल कैंसर से मौत ने एक बार फिर इस बीमारी को केंद्र में ला दिया है। कुछ बरसों पहले तक कैंसर सबसे जानलेवा बीमारी माना जाता था, लेकिन अब कैंसर का इलाज मुमकिन है। हालांकि इसके लिए वक्त पर बीमारी की जांच और सही इलाज जरूरी है।

कैसे होता है कैंसर
हमारे शरीर की सबसे छोटी यूनिट (इकाई) सेल (कोशिका) है। शरीर में 100 से 1000 खरब सेल्स होते हैं। हर वक्त ढेरों सेल पैदा होते रहते हैं और पुराने व खराब सेल खत्म भी होते रहते हैं। शरीर के किसी भी नॉर्मल टिश्यू में जितने नए सेल्स पैदा होते रहते हैं, उतने ही पुराने सेल्स भी खत्म होते जाते हैं। इस तरह संतुलन बना रहता है। कैंसर में यह संतुलन बिगड़ जाता है। उनमें सेल्स की बेलगाम बढ़ोतरी होती रहती है।गलत लाइफस्टाइल और तंबाकू, शराब जैसी चीजें किसी सेल के जेनेटिक कोड में बदलाव लाकर कैंसर पैदा कर देती हैं। आमतौर पर जब किसी सेल में किसी वजह से खराबी आ जाती है तो खराब सेल अपने जैसे खराब सेल्स पैदा नहीं करता। वह खुद को मार देता है। कैंसर सेल खराब होने के बावजूद खुद को नहीं मारता, बल्कि अपने जैसे सेल बेतरतीब तरीके से पैदा करता जाता है। वे सही सेल्स के कामकाज में रुकावट डालने लगते हैं। कैंसर सेल एक जगह टिककर नहीं रहते। अपने मूल अंग से निकल कर शरीर में किसी दूसरी जगह जमकर वहां भी अपने तरह के बीमार सेल्स का ढेर बना डालते हैं और उस अंग के कामकाज में भी रुकावट आने लगती है। इन अधूरे बीमार सेल्स का समूह ही कैंसर है। ट्यूमर बनने में महीनों, बरसों, बल्कि कई बार तो दशकों लग जाते हैं। कम-से-कम एक अरब सेल्स के जमा होने पर ही ट्यूमर पहचानने लायक आकार में आता है।

कैसे बचें कैंसर से
1. तंबाकू से रहें दूर- हमारे देश में पुरुषों में 48 फीसदी और महिलाओं में 20 फीसदी कैंसर की इकलौती वजह तंबाकू है। स्मोकिंग करने वालों के अलावा उसका धुआं लेनेवालों (पैसिव स्मोकर्स) और प्रदूषित हवा में रहनेवालों को भी कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। तंबाकू या पान मसाला चबाने वालों को मुंह का कैंसर ज्यादा होता है। तंबाकू में 45 तरह के कैंसरकारी तत्व पाए जाते हैं। पान-मसाले में स्वाद और सुगंध के लिए दूसरी चीजें मिलाई जाती हैं, जिससे उसमें कार्सिनोजेन्स (कैंसर पैदा करनेवाले तत्व) की तादाद बढ़ जाती है। गुटखा (पान मसाला) चाहे तंबाकू वाला हो या बिना तंबाकू वाला, दोनों नुकसान करता है। हां, तंबाकू वाला गुटखा ज्यादा नुकसानदायक है। गुटखे में मौजूद सुपारी और कत्था भी सेफ नहीं हैं।

2. शराब से करें परहेज- रोज ज्यादा शराब पीना, खाने की नली, गले, लिवर और ब्रेस्ट कैंसर को खुला न्योता है। ड्रिंक में अल्कोहल की ज्यादा मात्रा और साथ में तंबाकू का सेवन कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ा देता है।

3. सही डाइट लें- अनुमान है कि कैंसर से होनेवाली 30 फीसदी मौतों को सही खानपान के जरिए रोका जा सकता है।

4.नॉन वेज खाने से बचें- इंटरनैशनल यूनियन अगेंस्ट कैंसर (यूआईसीसी) ने स्टडी में पाया कि ज्यादा चर्बी खानेवाले लोगों में ब्रेस्ट, प्रोस्टेट, कोलोन और मलाशय (रेक्टम) के कैंसर ज्यादा होते हैं। जर्मनी में 11 साल तक चली स्टडी में पाया गया कि वेज खाना खानेवाले लोगों को आम लोगों के मुकाबले कैंसर कम हुआ। कैंसर सबसे कम उन लोगों में हुआ, जिन्होंने 20 साल से नॉन-वेज नहीं खाया था। मीट को हजम करने में ज्यादा एंजाइम और ज्यादा वक्त लगता है। ज्यादा देर तक बिना पचा खाना पेट में एसिड और दूसरे जहरीले रसायन बनाते हैं, जिनसे कैंसर को बढ़ावा मिलता है। फलों और सब्जियों में काफी एंटी-ऑक्सिडेंट होते हैं, जो कैंसर पैदा करनेवाले रसायनों को नष्ट करने में अहम भूमिका अदा करते हैं। शाकाहार में मौजूद विविध विटामिन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और कैंसर सेल्स फल-फूल कर बीमारी नहीं पैदा कर पाते। पेजवेर्टिव और प्रोसेस्ड फूड कम खाएं। तेज आंच पर देर तक पकी चीजें कम खाएं।

5. एक्स-रे ज्यादा न कराएं- एक्स-रे, रेडियोथेरपी आदि हमारे शरीर में पहुंच कर सेल्स की रासायनिक गतिविधियों की रफ्तार बढ़ा देते हैं, जिससे स्किन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि एक्स-रे और रेडियोथेरपी से काफी कम मात्रा में रेडिएशन निकलता है और नुकसान के मुकाबले इसके फायदे ज्यादा हैं।

6. कुछ खास तरह के वायरस और बैक्टीरिया से बचाव करें- ह्यूमन पैपिलोमा वायरस से सर्वाइकल कैंसर हो सकता है। इससे बचने के उपाय हैं - एक ही पार्टनर से संबंध व सफाई का ध्यान रखना। पेट में अल्सर बनानेवाले हेलिकोबैक्टर पाइलोरी से पेट का कैंसर भी हो सकता है, इसलिए अल्सर का इलाज वक्त पर करवाना जरूरी है।

7. ह़र्मोन थेरपी जरूरी होने पर ही लें- महिलाओं में मेनोपॉज़ के दौरान होनेवाली तकलीफों के लिए इस्ट्रोजन और प्रोजेस्टिन हॉरमोन थेरपी दी जाती है। हाल की स्टडी से पता चला है कि मेनोपॉजल हॉरमोन थेरपी से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। हॉरमोन थेरपी लेने के पहले इसके खतरों पर जरूर गौर कर लेना चाहिए।

8. धूप में ज्यादा देर रहने से बचें- सूरज से निकलने वाली अल्ट्रावॉयलेट किरणों से स्किन कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है। तेज धूप में कम कपड़ों में ज्यादा देर नहीं रहना चाहिए। धूप में निकलना ही हो तो पूरी बाजू के कपड़े, हैट और अल्ट्रावॉयलेट किरणें रोकने वाला चश्मा पहनना चाहिए। कम-से-कम 15 एसपीएफ वाला सनस्क्रीन भी लगाना चाहिए। वैसे, हम भारतीयों की स्किन में मेलानिन पिग्मेंट ज्यादा होता है, जो अल्ट्रावॉयलेट किरणों को रोकता है। इसी स्किन को कैंसर का खतरा कम होता है, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं होता। भारत में पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर सबसे आम है, जिसकी सबसे बड़ी वजह लंबे अरसे तक सिगरेट या बीड़ी पीना है। पैसिव स्मोकर्स को भी इसका खतरा बढ़ जाता है। इसलिए स्मोकिंग करनेवालों को साल में एक बार सीटी स्कैन करा लेना चाहिए ताकि बीमारी जल्द पकड़ में आ जाए।अपने देश में महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले सबसे ज्यादा हैं। इसे समय पर पकड़ने के लिए 40 साल की उम्र में पहली बार, 40 के बाद हर दो साल में एक बार और 50 के बाद हर साल मेमोग्राफी टेस्ट कराते रहना चाहिए।

कैंसर के शुरुआती लक्षण
1. भूख बेहद कम या बिल्कुल न लगना 2. याददाश्त में कमी, देखने-सुनने में दिक्कत, सिर में भारी दर्द 3. लगातार खांसी जो ठीक नहीं हो रही हो, थूक में खून आना या आवाज में खरखराहट 4. मुंह खोलने, चबाने, निगलने या खाना हजम करने में परेशानी 5. पाखाने या पेशाब में खून आना 6. बिना वजह खून या वजन में बेहद कमी 7. ब्रेस्ट या शरीर में किसी अन्य जगह स्थायी गांठ बनना या सूजन 8. किसी जगह से अचानक खून, पानी या मवाद निकलना 9. तिल या मस्से में बदलाव या किसी घाव का न भरना 10. कमर या पीठ में लगातार दर्द ।

खुद कैसे जांचें: अगर हम सचेत हों तो कई बार डॉक्टर से पहले ही खुद भी कैंसर का पता लगा सकते हैं। स्किन, ब्रेस्ट, मुंह और टेस्टिकुलर कैंसर का पता खुद अपनी जांच करके लगाया जा सकता है। स्किन की जांच - रोशनी वाली जगह में मिरर के सामने अपने पूरे शरीर की स्किन, नाखूनों के नीचे, खोपड़ी, हथेली, पैरों के तलवे जैसी छुपी जगहों का मुआयना करें। देखें कि कोई नया तिल, मस्सा या रंगीन चकता तो नहीं उभर रहा है। पुराने तिल/मस्से के आकार-प्रकार या रंग में बदलाव हो रहा हो। किसी जगह कोई असामान्य गिल्टी या उभार तो नहीं है। स्किन पर ऐसा कोई कट या घाव, जो ठीक होने के बजाय बढ़ रहा हो। मुंह की जांच - मुंह के कैंसर के लक्षण कैंसर होने के काफी पहले ही (प्रीकैंसरस स्टेज पर) दिखने लगते हैं।

मुंह की जांच हर दिन करनी चाहिए, खासतौर पर उन्हें जो किसी भी रूप में तंबाकू का सेवन करते हों, परमानंट ब्रसेल्स लगाते हों या गाल चबाने की आदत हो। हफ्ते में एक बार (वे जो तंबाकू का सेवन करते हों या परमानंट ब्रसेल्स लगाते हों) सुबह दांत साफ करने के बाद आईने के सामने नीचे दिए गए तरीके से मुंह का मुआयना करें :1. मुंह बंद रखकर उंगलियों के सिरों से पकड़कर दोनों होंठों को बारी-बारी से उठाएं और देखें। 2. दोनों होंठों को हटाकर दांतों को साथ रखकर मसूढ़ों को सावधानी से देखें। 3. मुंह को पूरा खोलकर तालू, गले के पास और जीभ के नीचे मुआयना करें। 4. गालों के भीतरी हिस्सों को भी ठीक से देखें। इन सभी जगहों पर देखें कि कहीं कोई घाव, छाला, सफेद या लाल चकता, गांठ या सूजन तो नहीं? मसूढ़ों से खून तो नहीं निकल रहा? क्या जीभ बाहर निकालने में कोई अड़चन महसूस होती है? इसके अलावा, आवाज में बदलाव, लगातार खांसी, निगलने में तकलीफ और गले में खराश पर भी ध्यान दें।

ब्रेस्ट कैंसर20 साल की उम्र से हर महिला को हर महीने पीरियड शुरू होने के 5-7 दिन के बीच किसी दिन (बुजुर्ग महिलाएं कोई एक तारीख तय कर लें) खुद ब्रेस्ट की जांच करनी चाहिए। ब्रेस्ट और निपल को आइने में देखिए। नीचे ब्रालाइन से ऊपर कॉलर बोन यानी गले के निचले सिरे तक और बगलों में भी अपनी तीन अंगुलियां मिलाकर थोड़ा दबाकर देखें। उंगलियों का चलना नियमित स्पीड और दिशाओं में हो। (यह जांच शॉवर में या लेट कर भी कर सकती हैं।)देखें कि ये बदलाव तो नहीं हैं।1. ब्रेस्ट या निपल के आकार में कोई असामान्य बदलाव2. कहीं कोई गांठ, जिसमें अक्सर दर्द न रहता हो। 3. कहीं भी स्किन में सूजन, लाली, खिंचाव या गड्ढे पड़ना, संतरे के छिलके की तरह छोटे-छोटे छेद या दाने बनना 4. एक ब्रेस्ट पर खून की नलियां ज्यादा साफ दिखना 5. निपल भीतर को खिंचना या उसमें से दूध के अलावा कोई भी लिक्विड निकलना 6. ब्रेस्ट में कहीं भी लगातार दर्द(नोट : जरूरी नहीं है कि इनमें से एक या अनेक लक्षण होने पर कैंसर हो ही। ऐसे में सलाह है कि डॉक्टर से जरूर राय लें।)

मशीनी जांच (इमेजिंग : फाइबर ऑप्टिक या मैटल की महीन लचीली नली को किसी खास अंग के भीतर डालकर उसके अंदरूनी हिस्सों को मॉनिटर पर देखा जाता है। इस नई तकनीक ने कैंसर की जांच को आसान बना दिया है। जांचे जाने वाले अंग के आकार-प्रकार के आधार पर यह मशीन कई तरह की होती है।

एंजियोग्रफी में किसी डाई को खून में डालकर फिर धमनी तंत्र को एक्स-रे प्लेट पर देखा जाता है।

सीटी स्कैन (कंप्यूटर असिस्टेड टोमोग्रफी) एक विशेष एक्स-रे तकनीक है, जिसमें संबंधित अंग की पतली-पतली तहों के कई एक्सरे लिए जाते हैं।

एमआरआई (मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग) में कैंसर की पहचान और उसके आकार और फैलाव की जांच के लिए विशेष ताकतवर चुंबक के जरिए शरीर के चित्र लिए जाते हैं और उन्हें मिलाकर पूरी तस्वीर बनाई जाती है।

रेडियो न्यूक्लाइड स्कैन में खून में रेडियो सक्रिय आइसोटॉप डाले जाते हैं। जिन जगहों पर ट्यूमर होता है, वहां इन आइसोटॉप्स का जमाव ज्यादा होता है, जो कि स्कैन में साफ दिखाई पड़ते हैं। हड्डियों, लिवर, किडनी, फेफड़ों आदि की जांच के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।

मेमोग्रफी से ब्रेस्ट कैंसर की जांच की जाती है। आम महिलाओं को 40 साल की उम्र में पहली बार, 40 के बाद हर दो साल में एक बार और 50 के बाद हर साल मेमोग्राफी करवाने की सलाह दी जाती है।

पेट स्कैन अपेक्षाकृत नई तकनीक है। इसमें शरीर के भीतर रेडियो सक्रिय डाई प्रविष्ट कराकर ज्यादा बारीकी से शरीर के भीतरी अंगों को कंप्यूटर के जरिए जांचा जा सकता है।

लैब में जांच : बायोप्सी - ठोस गांठों की जांच के लिए प्रभावित टिश्यू का एक टुकड़ा या कुछ सेल्स लेकर माइक्रोस्कोप से देखा जाता है कि वहां कैंसर है या नहीं। सेल्स खुरचकर जांच - मुंह, महिलाओं की प्रजनन नली, मूत्र नली आदि की जांच के लिए किसी चपटे उपकरण से सेल्स खुरच कर उन्हें माइक्रोस्कोप से जांचा जाता है।

पेप स्मियर - बच्चेदानी के कैंसर की पहचान और संभावना जांचने के लिए की जानेवाली यह सस्ती, सरल और पक्की जांच है। इसमें गर्भाशय में चपटा स्पैचुला डालकर सेल्स खुरचकर निकाले जाते हैं और उनकी जांच की जाती है। विवाह के तीन साल बाद से हर दो साल में यह जांच हर महिला को करवानी चाहिए।

एफएनएसी - इसमें बारीक सूई से गांठ की भीतरी तहों को बाहर निकाला जाता है और जांच की जाती है। बेहद छोटी या अस्पष्ट गांठों के लिए अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन गाइडेड एफएनएसी की जाती है।

खून की जांच - खून में ट्यूमर द्वारा छोड़े गए सेल्स पर मौजूद कुछ खास प्रोटीन यानी ट्यूमर मार्कर की रासायनिक जांच करके कैंसर की मौजूदगी शुरुआती स्टेज में ही जांची जा सकती है। ओवरी के कैंसर के लिए सीए 125, प्रोस्टेट के लिए पीएसए, पैंक्रियाटिक कैंसर के लिए सीए 19-9 आदि।

हालांकि कैंसर के अलावा भी कई वजहों से शरीर में इन प्रोटीनों की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे इसे कैंसर के लिए निश्चित जांच नहीं माना जा सकता।

ये भी जानें : - कैंसर छूत की बीमारी नहीं है, जो मरीज को छूने, उसके पास जाने, उसका सामान इस्तेमाल करने, उसका खून या शरीर की कोई चोट या जख्म छूने से हो सकती है। कैंसर डायबीटीज और हाई बीपी की तरह शरीर में खुद ही पैदा होनेवाली बीमारी है। यह किसी इन्फेक्शन से नहीं होती, जिसका इलाज एंटीबायोटिक्स से हो सकता है। जल्दी पता लगने और इलाज कराने पर यह ठीक हो सकता है। कैंसर के बाद भी सामान्य जिंदगी जी जा सकती है।

कैंसर दिनों या महीनों में नहीं होता। आमतौर पर इसकी गांठ बनने और किसी अंग में जमकर बैठने और विकसित होने में बरसों लगते है। लेकिन इसका पता हमें बहुत बाद में लगता है। ज्यादातर मामलों में कैंसर खानदानी बीमारी नहीं है। अनेक सहायक कारक मिलकर कैंसर की स्थितियां पैदा करते हैं। ज्यादातर मामलों में कैंसर की शुरुआत में दर्द बिल्कुल नहीं होता।

डॉक्टरों की गाइडलाइंस :
1. पेड़-पौधों से बनीं रेशेदार चीजें जैसे फल, सब्जियां व अनाज खाइए। 2. चर्बी वाले खानों से परहेज करें। मीट, तला हुआ खाना या ऊपर से घी-तेल लेने से बचना चाहिए। 3. शराब का सेवन करें तो सीमित मात्रा में। 4. खाना इस तरह पकाया और प्रीजर्व किया जाए कि उसमें कैंसरकारी तत्व, फफूंद व बैक्टीरिया आदि न पैदा हो सके। 5. खाना बनाते और खाते वक्त अतिरिक्त नमक डालने से बचें। 6. शरीर का वजन सामान्य से बहुत ज्यादा या कम न हो, इसके लिए कैलोरी खाने और खर्च करने में संतुलन हो। ज्यादा कैलोरी वाला खाना कम मात्रा में खाएं, नियमित कसरत करें। 7. विटामिंस और मिनरल्स की गोलियां संतुलित खाने का विकल्प कभी नहीं हो सकतीं। विटामिन और मिनरल की प्रचुरता वाली खाने की चीजें ही इस जरूरत को पूरा कर सकती हैं। 8. इन सबके साथ पर्यावरण से कैंसरकारी जहरीले पदार्थों को हटाने, कैंसर की जल्द पहचान, तंबाकू का सेवन किसी भी रूप में पूरी तरह खत्म करने, दर्द-निवारक और दूसरी दवाइयां खुद ही, बेवजह खाते रहने की आदत छोड़ें। 9. कैंसर की जल्दी पहचान और जल्द और पूरा इलाज ही इस बीमारी से छुटकारे की शर्तें हैं।

लाल, नीले, पीले और जामुनी रंग की फल-सब्जियां जैसे टमाटर, जामुन, काले अंगूर, अमरूद, पपीता, तरबूज आदि खाने से प्रोस्टेट कैंसर का खतरा कम हो जाता है। हल्दी ठीक सेल्स को छेड़े बिना ट्यूमर के बीमार सेल्स की बढ़ोतरी को धीमा करती है। हरी चाय स्किन, आंत ब्रेस्ट, पेट , लिवर और फेफड़ों के कैंसर को रोकने में मदद करती है। चाय की पत्ती अगर प्रोसेस की गई हो तो उसके ज्यादातर गुण गायब हो जाते हैं। सोया प्रॉडक्ट्स खाने से ब्रेस्ट और प्रोस्टेट कैंसर की आशंका घटती है। बादाम, किशमिश जैसे ड्राई फ्रूट्स खाने से कैंसर का फैलाव रुकता है। गोभी प्रजाति की सब्जियों जैसे कि पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली आदि में कैंसर को परे हटाने का गुण होता है। रोज लहसुन खाएं। इससे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है। रोज नींबू, संतरा या मौसमी में से कम-से-कम एक फल खाएं। इससे मुंह, गले और पेट के कैंसर की आशंका कम हो जाती है। जहां तक मुमकिन हो, ऑर्गेनिक फूड लें, यानी वे दालें, सब्जियां, फल जिन्हें उपजाने में पेस्टीसाइड और केमिकल खादें इस्तेमाल नहीं हुई हों। आलू चिप्स की जगह पॉप कॉर्न खाएं। पानी पर्याप्त मात्रा में पीएं। रोज 15 निट तक सूर्य की रोशनी में बैठें। रोज एक्सरसाइज करें। कैंसर का नाम सुनते ही कुछ बरसों पहले तक मन में एक डर सा पैदा हो जाता था। वजह, इस बीमारी का लाइलाज होना। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब न सिर्फ कैंसर का इलाज मुमकिन है, बल्कि ठीक होने के बाद सामान्य रुप से जिंदगी को जीना कोई मुश्किल बात नहीं। शर्त यही है कि शुरुआती स्टेज पर बीमारी की पहचान हो जाए और फिर उसका मुकम्मल इलाज कराया जाए। वैसे, अगर कुछ चीजों से बचें और लाइफस्टाइल को सुधार लें तो कैंसर के शिकंजे में आने की आशंका भी काफी कम हो जाती है। कैंसर से बचाव और जांच के विभिन्न पहलुओं पर पेश है अनुराधा की स्पेशल रिपोर्ट-

हमारे देश में पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर सबसे आम है। इसके बाद पेट और मुंह के कैंसर आते हैं। महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले सबसे ज्यादा हैं। इसके बाद बच्चेदानी के मुंह के (सर्वाइकल) कैंसर का नंबर आता है।ब्रिटिश ऐक्ट्रिस जेड गुडी की सर्वाइकल कैंसर से मौत ने एक बार फिर इस बीमारी को केंद्र में ला दिया है। कुछ बरसों पहले तक कैंसर सबसे जानलेवा बीमारी माना जाता था, लेकिन अब कैंसर का इलाज मुमकिन है। हालांकि इसके लिए वक्त पर बीमारी की जांच और सही इलाज जरूरी है।

कैसे होता है कैंसर
हमारे शरीर की सबसे छोटी यूनिट (इकाई) सेल (कोशिका) है। शरीर में 100 से 1000 खरब सेल्स होते हैं। हर वक्त ढेरों सेल पैदा होते रहते हैं और पुराने व खराब सेल खत्म भी होते रहते हैं। शरीर के किसी भी नॉर्मल टिश्यू में जितने नए सेल्स पैदा होते रहते हैं, उतने ही पुराने सेल्स भी खत्म होते जाते हैं। इस तरह संतुलन बना रहता है। कैंसर में यह संतुलन बिगड़ जाता है। उनमें सेल्स की बेलगाम बढ़ोतरी होती रहती है।गलत लाइफस्टाइल और तंबाकू, शराब जैसी चीजें किसी सेल के जेनेटिक कोड में बदलाव लाकर कैंसर पैदा कर देती हैं। आमतौर पर जब किसी सेल में किसी वजह से खराबी आ जाती है तो खराब सेल अपने जैसे खराब सेल्स पैदा नहीं करता। वह खुद को मार देता है। कैंसर सेल खराब होने के बावजूद खुद को नहीं मारता, बल्कि अपने जैसे सेल बेतरतीब तरीके से पैदा करता जाता है। वे सही सेल्स के कामकाज में रुकावट डालने लगते हैं। कैंसर सेल एक जगह टिककर नहीं रहते। अपने मूल अंग से निकल कर शरीर में किसी दूसरी जगह जमकर वहां भी अपने तरह के बीमार सेल्स का ढेर बना डालते हैं और उस अंग के कामकाज में भी रुकावट आने लगती है। इन अधूरे बीमार सेल्स का समूह ही कैंसर है। ट्यूमर बनने में महीनों, बरसों, बल्कि कई बार तो दशकों लग जाते हैं। कम-से-कम एक अरब सेल्स के जमा होने पर ही ट्यूमर पहचानने लायक आकार में आता है।

कैसे बचें कैंसर से
1. तंबाकू से रहें दूर- हमारे देश में पुरुषों में 48 फीसदी और महिलाओं में 20 फीसदी कैंसर की इकलौती वजह तंबाकू है। स्मोकिंग करने वालों के अलावा उसका धुआं लेनेवालों (पैसिव स्मोकर्स) और प्रदूषित हवा में रहनेवालों को भी कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। तंबाकू या पान मसाला चबाने वालों को मुंह का कैंसर ज्यादा होता है। तंबाकू में 45 तरह के कैंसरकारी तत्व पाए जाते हैं। पान-मसाले में स्वाद और सुगंध के लिए दूसरी चीजें मिलाई जाती हैं, जिससे उसमें कार्सिनोजेन्स (कैंसर पैदा करनेवाले तत्व) की तादाद बढ़ जाती है। गुटखा (पान मसाला) चाहे तंबाकू वाला हो या बिना तंबाकू वाला, दोनों नुकसान करता है। हां, तंबाकू वाला गुटखा ज्यादा नुकसानदायक है। गुटखे में मौजूद सुपारी और कत्था भी सेफ नहीं हैं।

2. शराब से करें परहेज- रोज ज्यादा शराब पीना, खाने की नली, गले, लिवर और ब्रेस्ट कैंसर को खुला न्योता है। ड्रिंक में अल्कोहल की ज्यादा मात्रा और साथ में तंबाकू का सेवन कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ा देता है।

3. सही डाइट लें- अनुमान है कि कैंसर से होनेवाली 30 फीसदी मौतों को सही खानपान के जरिए रोका जा सकता है।

4.नॉन वेज खाने से बचें- इंटरनैशनल यूनियन अगेंस्ट कैंसर (यूआईसीसी) ने स्टडी में पाया कि ज्यादा चर्बी खानेवाले लोगों में ब्रेस्ट, प्रोस्टेट, कोलोन और मलाशय (रेक्टम) के कैंसर ज्यादा होते हैं। जर्मनी में 11 साल तक चली स्टडी में पाया गया कि वेज खाना खानेवाले लोगों को आम लोगों के मुकाबले कैंसर कम हुआ। कैंसर सबसे कम उन लोगों में हुआ, जिन्होंने 20 साल से नॉन-वेज नहीं खाया था। मीट को हजम करने में ज्यादा एंजाइम और ज्यादा वक्त लगता है। ज्यादा देर तक बिना पचा खाना पेट में एसिड और दूसरे जहरीले रसायन बनाते हैं, जिनसे कैंसर को बढ़ावा मिलता है। फलों और सब्जियों में काफी एंटी-ऑक्सिडेंट होते हैं, जो कैंसर पैदा करनेवाले रसायनों को नष्ट करने में अहम भूमिका अदा करते हैं। शाकाहार में मौजूद विविध विटामिन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और कैंसर सेल्स फल-फूल कर बीमारी नहीं पैदा कर पाते। पेजवेर्टिव और प्रोसेस्ड फूड कम खाएं। तेज आंच पर देर तक पकी चीजें कम खाएं।

5. एक्स-रे ज्यादा न कराएं- एक्स-रे, रेडियोथेरपी आदि हमारे शरीर में पहुंच कर सेल्स की रासायनिक गतिविधियों की रफ्तार बढ़ा देते हैं, जिससे स्किन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि एक्स-रे और रेडियोथेरपी से काफी कम मात्रा में रेडिएशन निकलता है और नुकसान के मुकाबले इसके फायदे ज्यादा हैं।

6. कुछ खास तरह के वायरस और बैक्टीरिया से बचाव करें- ह्यूमन पैपिलोमा वायरस से सर्वाइकल कैंसर हो सकता है। इससे बचने के उपाय हैं - एक ही पार्टनर से संबंध व सफाई का ध्यान रखना। पेट में अल्सर बनानेवाले हेलिकोबैक्टर पाइलोरी से पेट का कैंसर भी हो सकता है, इसलिए अल्सर का इलाज वक्त पर करवाना जरूरी है।

7. ह़र्मोन थेरपी जरूरी होने पर ही लें- महिलाओं में मेनोपॉज़ के दौरान होनेवाली तकलीफों के लिए इस्ट्रोजन और प्रोजेस्टिन हॉरमोन थेरपी दी जाती है। हाल की स्टडी से पता चला है कि मेनोपॉजल हॉरमोन थेरपी से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। हॉरमोन थेरपी लेने के पहले इसके खतरों पर जरूर गौर कर लेना चाहिए।

8. धूप में ज्यादा देर रहने से बचें- सूरज से निकलने वाली अल्ट्रावॉयलेट किरणों से स्किन कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है। तेज धूप में कम कपड़ों में ज्यादा देर नहीं रहना चाहिए। धूप में निकलना ही हो तो पूरी बाजू के कपड़े, हैट और अल्ट्रावॉयलेट किरणें रोकने वाला चश्मा पहनना चाहिए। कम-से-कम 15 एसपीएफ वाला सनस्क्रीन भी लगाना चाहिए। वैसे, हम भारतीयों की स्किन में मेलानिन पिग्मेंट ज्यादा होता है, जो अल्ट्रावॉयलेट किरणों को रोकता है। इसी स्किन को कैंसर का खतरा कम होता है, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं होता। भारत में पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर सबसे आम है, जिसकी सबसे बड़ी वजह लंबे अरसे तक सिगरेट या बीड़ी पीना है। पैसिव स्मोकर्स को भी इसका खतरा बढ़ जाता है। इसलिए स्मोकिंग करनेवालों को साल में एक बार सीटी स्कैन करा लेना चाहिए ताकि बीमारी जल्द पकड़ में आ जाए।अपने देश में महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले सबसे ज्यादा हैं। इसे समय पर पकड़ने के लिए 40 साल की उम्र में पहली बार, 40 के बाद हर दो साल में एक बार और 50 के बाद हर साल मेमोग्राफी टेस्ट कराते रहना चाहिए।

कैंसर के शुरुआती लक्षण
1. भूख बेहद कम या बिल्कुल न लगना 2. याददाश्त में कमी, देखने-सुनने में दिक्कत, सिर में भारी दर्द 3. लगातार खांसी जो ठीक नहीं हो रही हो, थूक में खून आना या आवाज में खरखराहट 4. मुंह खोलने, चबाने, निगलने या खाना हजम करने में परेशानी 5. पाखाने या पेशाब में खून आना 6. बिना वजह खून या वजन में बेहद कमी 7. ब्रेस्ट या शरीर में किसी अन्य जगह स्थायी गांठ बनना या सूजन 8. किसी जगह से अचानक खून, पानी या मवाद निकलना 9. तिल या मस्से में बदलाव या किसी घाव का न भरना 10. कमर या पीठ में लगातार दर्द ।

खुद कैसे जांचें: अगर हम सचेत हों तो कई बार डॉक्टर से पहले ही खुद भी कैंसर का पता लगा सकते हैं। स्किन, ब्रेस्ट, मुंह और टेस्टिकुलर कैंसर का पता खुद अपनी जांच करके लगाया जा सकता है। स्किन की जांच - रोशनी वाली जगह में मिरर के सामने अपने पूरे शरीर की स्किन, नाखूनों के नीचे, खोपड़ी, हथेली, पैरों के तलवे जैसी छुपी जगहों का मुआयना करें। देखें कि कोई नया तिल, मस्सा या रंगीन चकता तो नहीं उभर रहा है। पुराने तिल/मस्से के आकार-प्रकार या रंग में बदलाव हो रहा हो। किसी जगह कोई असामान्य गिल्टी या उभार तो नहीं है। स्किन पर ऐसा कोई कट या घाव, जो ठीक होने के बजाय बढ़ रहा हो। मुंह की जांच - मुंह के कैंसर के लक्षण कैंसर होने के काफी पहले ही (प्रीकैंसरस स्टेज पर) दिखने लगते हैं।

मुंह की जांच हर दिन करनी चाहिए, खासतौर पर उन्हें जो किसी भी रूप में तंबाकू का सेवन करते हों, परमानंट ब्रसेल्स लगाते हों या गाल चबाने की आदत हो। हफ्ते में एक बार (वे जो तंबाकू का सेवन करते हों या परमानंट ब्रसेल्स लगाते हों) सुबह दांत साफ करने के बाद आईने के सामने नीचे दिए गए तरीके से मुंह का मुआयना करें :1. मुंह बंद रखकर उंगलियों के सिरों से पकड़कर दोनों होंठों को बारी-बारी से उठाएं और देखें। 2. दोनों होंठों को हटाकर दांतों को साथ रखकर मसूढ़ों को सावधानी से देखें। 3. मुंह को पूरा खोलकर तालू, गले के पास और जीभ के नीचे मुआयना करें। 4. गालों के भीतरी हिस्सों को भी ठीक से देखें। इन सभी जगहों पर देखें कि कहीं कोई घाव, छाला, सफेद या लाल चकता, गांठ या सूजन तो नहीं? मसूढ़ों से खून तो नहीं निकल रहा? क्या जीभ बाहर निकालने में कोई अड़चन महसूस होती है? इसके अलावा, आवाज में बदलाव, लगातार खांसी, निगलने में तकलीफ और गले में खराश पर भी ध्यान दें।

ब्रेस्ट कैंसर20 साल की उम्र से हर महिला को हर महीने पीरियड शुरू होने के 5-7 दिन के बीच किसी दिन (बुजुर्ग महिलाएं कोई एक तारीख तय कर लें) खुद ब्रेस्ट की जांच करनी चाहिए। ब्रेस्ट और निपल को आइने में देखिए। नीचे ब्रालाइन से ऊपर कॉलर बोन यानी गले के निचले सिरे तक और बगलों में भी अपनी तीन अंगुलियां मिलाकर थोड़ा दबाकर देखें। उंगलियों का चलना नियमित स्पीड और दिशाओं में हो। (यह जांच शॉवर में या लेट कर भी कर सकती हैं।)देखें कि ये बदलाव तो नहीं हैं।1. ब्रेस्ट या निपल के आकार में कोई असामान्य बदलाव2. कहीं कोई गांठ, जिसमें अक्सर दर्द न रहता हो। 3. कहीं भी स्किन में सूजन, लाली, खिंचाव या गड्ढे पड़ना, संतरे के छिलके की तरह छोटे-छोटे छेद या दाने बनना 4. एक ब्रेस्ट पर खून की नलियां ज्यादा साफ दिखना 5. निपल भीतर को खिंचना या उसमें से दूध के अलावा कोई भी लिक्विड निकलना 6. ब्रेस्ट में कहीं भी लगातार दर्द(नोट : जरूरी नहीं है कि इनमें से एक या अनेक लक्षण होने पर कैंसर हो ही। ऐसे में सलाह है कि डॉक्टर से जरूर राय लें।)

मशीनी जांच (इमेजिंग : फाइबर ऑप्टिक या मैटल की महीन लचीली नली को किसी खास अंग के भीतर डालकर उसके अंदरूनी हिस्सों को मॉनिटर पर देखा जाता है। इस नई तकनीक ने कैंसर की जांच को आसान बना दिया है। जांचे जाने वाले अंग के आकार-प्रकार के आधार पर यह मशीन कई तरह की होती है।

एंजियोग्रफी में किसी डाई को खून में डालकर फिर धमनी तंत्र को एक्स-रे प्लेट पर देखा जाता है।

सीटी स्कैन (कंप्यूटर असिस्टेड टोमोग्रफी) एक विशेष एक्स-रे तकनीक है, जिसमें संबंधित अंग की पतली-पतली तहों के कई एक्सरे लिए जाते हैं।

एमआरआई (मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग) में कैंसर की पहचान और उसके आकार और फैलाव की जांच के लिए विशेष ताकतवर चुंबक के जरिए शरीर के चित्र लिए जाते हैं और उन्हें मिलाकर पूरी तस्वीर बनाई जाती है।

रेडियो न्यूक्लाइड स्कैन में खून में रेडियो सक्रिय आइसोटॉप डाले जाते हैं। जिन जगहों पर ट्यूमर होता है, वहां इन आइसोटॉप्स का जमाव ज्यादा होता है, जो कि स्कैन में साफ दिखाई पड़ते हैं। हड्डियों, लिवर, किडनी, फेफड़ों आदि की जांच के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।

मेमोग्रफी से ब्रेस्ट कैंसर की जांच की जाती है। आम महिलाओं को 40 साल की उम्र में पहली बार, 40 के बाद हर दो साल में एक बार और 50 के बाद हर साल मेमोग्राफी करवाने की सलाह दी जाती है।

पेट स्कैन अपेक्षाकृत नई तकनीक है। इसमें शरीर के भीतर रेडियो सक्रिय डाई प्रविष्ट कराकर ज्यादा बारीकी से शरीर के भीतरी अंगों को कंप्यूटर के जरिए जांचा जा सकता है।

लैब में जांच : बायोप्सी - ठोस गांठों की जांच के लिए प्रभावित टिश्यू का एक टुकड़ा या कुछ सेल्स लेकर माइक्रोस्कोप से देखा जाता है कि वहां कैंसर है या नहीं। सेल्स खुरचकर जांच - मुंह, महिलाओं की प्रजनन नली, मूत्र नली आदि की जांच के लिए किसी चपटे उपकरण से सेल्स खुरच कर उन्हें माइक्रोस्कोप से जांचा जाता है।

पेप स्मियर - बच्चेदानी के कैंसर की पहचान और संभावना जांचने के लिए की जानेवाली यह सस्ती, सरल और पक्की जांच है। इसमें गर्भाशय में चपटा स्पैचुला डालकर सेल्स खुरचकर निकाले जाते हैं और उनकी जांच की जाती है। विवाह के तीन साल बाद से हर दो साल में यह जांच हर महिला को करवानी चाहिए।

एफएनएसी - इसमें बारीक सूई से गांठ की भीतरी तहों को बाहर निकाला जाता है और जांच की जाती है। बेहद छोटी या अस्पष्ट गांठों के लिए अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन गाइडेड एफएनएसी की जाती है।

खून की जांच - खून में ट्यूमर द्वारा छोड़े गए सेल्स पर मौजूद कुछ खास प्रोटीन यानी ट्यूमर मार्कर की रासायनिक जांच करके कैंसर की मौजूदगी शुरुआती स्टेज में ही जांची जा सकती है। ओवरी के कैंसर के लिए सीए 125, प्रोस्टेट के लिए पीएसए, पैंक्रियाटिक कैंसर के लिए सीए 19-9 आदि।

हालांकि कैंसर के अलावा भी कई वजहों से शरीर में इन प्रोटीनों की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे इसे कैंसर के लिए निश्चित जांच नहीं माना जा सकता।

ये भी जानें : - कैंसर छूत की बीमारी नहीं है, जो मरीज को छूने, उसके पास जाने, उसका सामान इस्तेमाल करने, उसका खून या शरीर की कोई चोट या जख्म छूने से हो सकती है। कैंसर डायबीटीज और हाई बीपी की तरह शरीर में खुद ही पैदा होनेवाली बीमारी है। यह किसी इन्फेक्शन से नहीं होती, जिसका इलाज एंटीबायोटिक्स से हो सकता है। जल्दी पता लगने और इलाज कराने पर यह ठीक हो सकता है। कैंसर के बाद भी सामान्य जिंदगी जी जा सकती है।

कैंसर दिनों या महीनों में नहीं होता। आमतौर पर इसकी गांठ बनने और किसी अंग में जमकर बैठने और विकसित होने में बरसों लगते है। लेकिन इसका पता हमें बहुत बाद में लगता है। ज्यादातर मामलों में कैंसर खानदानी बीमारी नहीं है। अनेक सहायक कारक मिलकर कैंसर की स्थितियां पैदा करते हैं। ज्यादातर मामलों में कैंसर की शुरुआत में दर्द बिल्कुल नहीं होता।

डॉक्टरों की गाइडलाइंस :
1. पेड़-पौधों से बनीं रेशेदार चीजें जैसे फल, सब्जियां व अनाज खाइए। 2. चर्बी वाले खानों से परहेज करें। मीट, तला हुआ खाना या ऊपर से घी-तेल लेने से बचना चाहिए। 3. शराब का सेवन करें तो सीमित मात्रा में। 4. खाना इस तरह पकाया और प्रीजर्व किया जाए कि उसमें कैंसरकारी तत्व, फफूंद व बैक्टीरिया आदि न पैदा हो सके। 5. खाना बनाते और खाते वक्त अतिरिक्त नमक डालने से बचें। 6. शरीर का वजन सामान्य से बहुत ज्यादा या कम न हो, इसके लिए कैलोरी खाने और खर्च करने में संतुलन हो। ज्यादा कैलोरी वाला खाना कम मात्रा में खाएं, नियमित कसरत करें। 7. विटामिंस और मिनरल्स की गोलियां संतुलित खाने का विकल्प कभी नहीं हो सकतीं। विटामिन और मिनरल की प्रचुरता वाली खाने की चीजें ही इस जरूरत को पूरा कर सकती हैं। 8. इन सबके साथ पर्यावरण से कैंसरकारी जहरीले पदार्थों को हटाने, कैंसर की जल्द पहचान, तंबाकू का सेवन किसी भी रूप में पूरी तरह खत्म करने, दर्द-निवारक और दूसरी दवाइयां खुद ही, बेवजह खाते रहने की आदत छोड़ें। 9. कैंसर की जल्दी पहचान और जल्द और पूरा इलाज ही इस बीमारी से छुटकारे की शर्तें हैं।

लाल, नीले, पीले और जामुनी रंग की फल-सब्जियां जैसे टमाटर, जामुन, काले अंगूर, अमरूद, पपीता, तरबूज आदि खाने से प्रोस्टेट कैंसर का खतरा कम हो जाता है। हल्दी ठीक सेल्स को छेड़े बिना ट्यूमर के बीमार सेल्स की बढ़ोतरी को धीमा करती है। हरी चाय स्किन, आंत ब्रेस्ट, पेट , लिवर और फेफड़ों के कैंसर को रोकने में मदद करती है। चाय की पत्ती अगर प्रोसेस की गई हो तो उसके ज्यादातर गुण गायब हो जाते हैं। सोया प्रॉडक्ट्स खाने से ब्रेस्ट और प्रोस्टेट कैंसर की आशंका घटती है। बादाम, किशमिश जैसे ड्राई फ्रूट्स खाने से कैंसर का फैलाव रुकता है। गोभी प्रजाति की सब्जियों जैसे कि पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली आदि में कैंसर को परे हटाने का गुण होता है। रोज लहसुन खाएं। इससे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है। रोज नींबू, संतरा या मौसमी में से कम-से-कम एक फल खाएं। इससे मुंह, गले और पेट के कैंसर की आशंका कम हो जाती है। जहां तक मुमकिन हो, ऑर्गेनिक फूड लें, यानी वे दालें, सब्जियां, फल जिन्हें उपजाने में पेस्टीसाइड और केमिकल खादें इस्तेमाल नहीं हुई हों। आलू चिप्स की जगह पॉप कॉर्न खाएं। पानी पर्याप्त मात्रा में पीएं। रोज 15 निट तक सूर्य की रोशनी में बैठें। रोज एक्सरसाइज करें। कैंसर का नाम सुनते ही कुछ बरसों पहले तक मन में एक डर सा पैदा हो जाता था। वजह, इस बीमारी का लाइलाज होना। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब न सिर्फ कैंसर का इलाज मुमकिन है, बल्कि ठीक होने के बाद सामान्य रुप से जिंदगी को जीना कोई मुश्किल बात नहीं। शर्त यही है कि शुरुआती स्टेज पर बीमारी की पहचान हो जाए और फिर उसका मुकम्मल इलाज कराया जाए। वैसे, अगर कुछ चीजों से बचें और लाइफस्टाइल को सुधार लें तो कैंसर के शिकंजे में आने की आशंका भी काफी कम हो जाती है। कैंसर से बचाव और जांच के विभिन्न पहलुओं पर पेश है अनुराधा की स्पेशल रिपोर्ट-

हमारे देश में पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर सबसे आम है। इसके बाद पेट और मुंह के कैंसर आते हैं। महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले सबसे ज्यादा हैं। इसके बाद बच्चेदानी के मुंह के (सर्वाइकल) कैंसर का नंबर आता है।ब्रिटिश ऐक्ट्रिस जेड गुडी की सर्वाइकल कैंसर से मौत ने एक बार फिर इस बीमारी को केंद्र में ला दिया है। कुछ बरसों पहले तक कैंसर सबसे जानलेवा बीमारी माना जाता था, लेकिन अब कैंसर का इलाज मुमकिन है। हालांकि इसके लिए वक्त पर बीमारी की जांच और सही इलाज जरूरी है।

कैसे होता है कैंसर
हमारे शरीर की सबसे छोटी यूनिट (इकाई) सेल (कोशिका) है। शरीर में 100 से 1000 खरब सेल्स होते हैं। हर वक्त ढेरों सेल पैदा होते रहते हैं और पुराने व खराब सेल खत्म भी होते रहते हैं। शरीर के किसी भी नॉर्मल टिश्यू में जितने नए सेल्स पैदा होते रहते हैं, उतने ही पुराने सेल्स भी खत्म होते जाते हैं। इस तरह संतुलन बना रहता है। कैंसर में यह संतुलन बिगड़ जाता है। उनमें सेल्स की बेलगाम बढ़ोतरी होती रहती है।गलत लाइफस्टाइल और तंबाकू, शराब जैसी चीजें किसी सेल के जेनेटिक कोड में बदलाव लाकर कैंसर पैदा कर देती हैं। आमतौर पर जब किसी सेल में किसी वजह से खराबी आ जाती है तो खराब सेल अपने जैसे खराब सेल्स पैदा नहीं करता। वह खुद को मार देता है। कैंसर सेल खराब होने के बावजूद खुद को नहीं मारता, बल्कि अपने जैसे सेल बेतरतीब तरीके से पैदा करता जाता है। वे सही सेल्स के कामकाज में रुकावट डालने लगते हैं। कैंसर सेल एक जगह टिककर नहीं रहते। अपने मूल अंग से निकल कर शरीर में किसी दूसरी जगह जमकर वहां भी अपने तरह के बीमार सेल्स का ढेर बना डालते हैं और उस अंग के कामकाज में भी रुकावट आने लगती है। इन अधूरे बीमार सेल्स का समूह ही कैंसर है। ट्यूमर बनने में महीनों, बरसों, बल्कि कई बार तो दशकों लग जाते हैं। कम-से-कम एक अरब सेल्स के जमा होने पर ही ट्यूमर पहचानने लायक आकार में आता है।

कैसे बचें कैंसर से
1. तंबाकू से रहें दूर- हमारे देश में पुरुषों में 48 फीसदी और महिलाओं में 20 फीसदी कैंसर की इकलौती वजह तंबाकू है। स्मोकिंग करने वालों के अलावा उसका धुआं लेनेवालों (पैसिव स्मोकर्स) और प्रदूषित हवा में रहनेवालों को भी कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। तंबाकू या पान मसाला चबाने वालों को मुंह का कैंसर ज्यादा होता है। तंबाकू में 45 तरह के कैंसरकारी तत्व पाए जाते हैं। पान-मसाले में स्वाद और सुगंध के लिए दूसरी चीजें मिलाई जाती हैं, जिससे उसमें कार्सिनोजेन्स (कैंसर पैदा करनेवाले तत्व) की तादाद बढ़ जाती है। गुटखा (पान मसाला) चाहे तंबाकू वाला हो या बिना तंबाकू वाला, दोनों नुकसान करता है। हां, तंबाकू वाला गुटखा ज्यादा नुकसानदायक है। गुटखे में मौजूद सुपारी और कत्था भी सेफ नहीं हैं।

2. शराब से करें परहेज- रोज ज्यादा शराब पीना, खाने की नली, गले, लिवर और ब्रेस्ट कैंसर को खुला न्योता है। ड्रिंक में अल्कोहल की ज्यादा मात्रा और साथ में तंबाकू का सेवन कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ा देता है।

3. सही डाइट लें- अनुमान है कि कैंसर से होनेवाली 30 फीसदी मौतों को सही खानपान के जरिए रोका जा सकता है।

4.नॉन वेज खाने से बचें- इंटरनैशनल यूनियन अगेंस्ट कैंसर (यूआईसीसी) ने स्टडी में पाया कि ज्यादा चर्बी खानेवाले लोगों में ब्रेस्ट, प्रोस्टेट, कोलोन और मलाशय (रेक्टम) के कैंसर ज्यादा होते हैं। जर्मनी में 11 साल तक चली स्टडी में पाया गया कि वेज खाना खानेवाले लोगों को आम लोगों के मुकाबले कैंसर कम हुआ। कैंसर सबसे कम उन लोगों में हुआ, जिन्होंने 20 साल से नॉन-वेज नहीं खाया था। मीट को हजम करने में ज्यादा एंजाइम और ज्यादा वक्त लगता है। ज्यादा देर तक बिना पचा खाना पेट में एसिड और दूसरे जहरीले रसायन बनाते हैं, जिनसे कैंसर को बढ़ावा मिलता है। फलों और सब्जियों में काफी एंटी-ऑक्सिडेंट होते हैं, जो कैंसर पैदा करनेवाले रसायनों को नष्ट करने में अहम भूमिका अदा करते हैं। शाकाहार में मौजूद विविध विटामिन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और कैंसर सेल्स फल-फूल कर बीमारी नहीं पैदा कर पाते। पेजवेर्टिव और प्रोसेस्ड फूड कम खाएं। तेज आंच पर देर तक पकी चीजें कम खाएं।

5. एक्स-रे ज्यादा न कराएं- एक्स-रे, रेडियोथेरपी आदि हमारे शरीर में पहुंच कर सेल्स की रासायनिक गतिविधियों की रफ्तार बढ़ा देते हैं, जिससे स्किन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि एक्स-रे और रेडियोथेरपी से काफी कम मात्रा में रेडिएशन निकलता है और नुकसान के मुकाबले इसके फायदे ज्यादा हैं।

6. कुछ खास तरह के वायरस और बैक्टीरिया से बचाव करें- ह्यूमन पैपिलोमा वायरस से सर्वाइकल कैंसर हो सकता है। इससे बचने के उपाय हैं - एक ही पार्टनर से संबंध व सफाई का ध्यान रखना। पेट में अल्सर बनानेवाले हेलिकोबैक्टर पाइलोरी से पेट का कैंसर भी हो सकता है, इसलिए अल्सर का इलाज वक्त पर करवाना जरूरी है।

7. ह़र्मोन थेरपी जरूरी होने पर ही लें- महिलाओं में मेनोपॉज़ के दौरान होनेवाली तकलीफों के लिए इस्ट्रोजन और प्रोजेस्टिन हॉरमोन थेरपी दी जाती है। हाल की स्टडी से पता चला है कि मेनोपॉजल हॉरमोन थेरपी से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। हॉरमोन थेरपी लेने के पहले इसके खतरों पर जरूर गौर कर लेना चाहिए।

8. धूप में ज्यादा देर रहने से बचें- सूरज से निकलने वाली अल्ट्रावॉयलेट किरणों से स्किन कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है। तेज धूप में कम कपड़ों में ज्यादा देर नहीं रहना चाहिए। धूप में निकलना ही हो तो पूरी बाजू के कपड़े, हैट और अल्ट्रावॉयलेट किरणें रोकने वाला चश्मा पहनना चाहिए। कम-से-कम 15 एसपीएफ वाला सनस्क्रीन भी लगाना चाहिए। वैसे, हम भारतीयों की स्किन में मेलानिन पिग्मेंट ज्यादा होता है, जो अल्ट्रावॉयलेट किरणों को रोकता है। इसी स्किन को कैंसर का खतरा कम होता है, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं होता। भारत में पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर सबसे आम है, जिसकी सबसे बड़ी वजह लंबे अरसे तक सिगरेट या बीड़ी पीना है। पैसिव स्मोकर्स को भी इसका खतरा बढ़ जाता है। इसलिए स्मोकिंग करनेवालों को साल में एक बार सीटी स्कैन करा लेना चाहिए ताकि बीमारी जल्द पकड़ में आ जाए।अपने देश में महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले सबसे ज्यादा हैं। इसे समय पर पकड़ने के लिए 40 साल की उम्र में पहली बार, 40 के बाद हर दो साल में एक बार और 50 के बाद हर साल मेमोग्राफी टेस्ट कराते रहना चाहिए।

कैंसर के शुरुआती लक्षण
1. भूख बेहद कम या बिल्कुल न लगना 2. याददाश्त में कमी, देखने-सुनने में दिक्कत, सिर में भारी दर्द 3. लगातार खांसी जो ठीक नहीं हो रही हो, थूक में खून आना या आवाज में खरखराहट 4. मुंह खोलने, चबाने, निगलने या खाना हजम करने में परेशानी 5. पाखाने या पेशाब में खून आना 6. बिना वजह खून या वजन में बेहद कमी 7. ब्रेस्ट या शरीर में किसी अन्य जगह स्थायी गांठ बनना या सूजन 8. किसी जगह से अचानक खून, पानी या मवाद निकलना 9. तिल या मस्से में बदलाव या किसी घाव का न भरना 10. कमर या पीठ में लगातार दर्द ।

खुद कैसे जांचें: अगर हम सचेत हों तो कई बार डॉक्टर से पहले ही खुद भी कैंसर का पता लगा सकते हैं। स्किन, ब्रेस्ट, मुंह और टेस्टिकुलर कैंसर का पता खुद अपनी जांच करके लगाया जा सकता है। स्किन की जांच - रोशनी वाली जगह में मिरर के सामने अपने पूरे शरीर की स्किन, नाखूनों के नीचे, खोपड़ी, हथेली, पैरों के तलवे जैसी छुपी जगहों का मुआयना करें। देखें कि कोई नया तिल, मस्सा या रंगीन चकता तो नहीं उभर रहा है। पुराने तिल/मस्से के आकार-प्रकार या रंग में बदलाव हो रहा हो। किसी जगह कोई असामान्य गिल्टी या उभार तो नहीं है। स्किन पर ऐसा कोई कट या घाव, जो ठीक होने के बजाय बढ़ रहा हो। मुंह की जांच - मुंह के कैंसर के लक्षण कैंसर होने के काफी पहले ही (प्रीकैंसरस स्टेज पर) दिखने लगते हैं।

मुंह की जांच हर दिन करनी चाहिए, खासतौर पर उन्हें जो किसी भी रूप में तंबाकू का सेवन करते हों, परमानंट ब्रसेल्स लगाते हों या गाल चबाने की आदत हो। हफ्ते में एक बार (वे जो तंबाकू का सेवन करते हों या परमानंट ब्रसेल्स लगाते हों) सुबह दांत साफ करने के बाद आईने के सामने नीचे दिए गए तरीके से मुंह का मुआयना करें :1. मुंह बंद रखकर उंगलियों के सिरों से पकड़कर दोनों होंठों को बारी-बारी से उठाएं और देखें। 2. दोनों होंठों को हटाकर दांतों को साथ रखकर मसूढ़ों को सावधानी से देखें। 3. मुंह को पूरा खोलकर तालू, गले के पास और जीभ के नीचे मुआयना करें। 4. गालों के भीतरी हिस्सों को भी ठीक से देखें। इन सभी जगहों पर देखें कि कहीं कोई घाव, छाला, सफेद या लाल चकता, गांठ या सूजन तो नहीं? मसूढ़ों से खून तो नहीं निकल रहा? क्या जीभ बाहर निकालने में कोई अड़चन महसूस होती है? इसके अलावा, आवाज में बदलाव, लगातार खांसी, निगलने में तकलीफ और गले में खराश पर भी ध्यान दें।

ब्रेस्ट कैंसर20 साल की उम्र से हर महिला को हर महीने पीरियड शुरू होने के 5-7 दिन के बीच किसी दिन (बुजुर्ग महिलाएं कोई एक तारीख तय कर लें) खुद ब्रेस्ट की जांच करनी चाहिए। ब्रेस्ट और निपल को आइने में देखिए। नीचे ब्रालाइन से ऊपर कॉलर बोन यानी गले के निचले सिरे तक और बगलों में भी अपनी तीन अंगुलियां मिलाकर थोड़ा दबाकर देखें। उंगलियों का चलना नियमित स्पीड और दिशाओं में हो। (यह जांच शॉवर में या लेट कर भी कर सकती हैं।)देखें कि ये बदलाव तो नहीं हैं।1. ब्रेस्ट या निपल के आकार में कोई असामान्य बदलाव2. कहीं कोई गांठ, जिसमें अक्सर दर्द न रहता हो। 3. कहीं भी स्किन में सूजन, लाली, खिंचाव या गड्ढे पड़ना, संतरे के छिलके की तरह छोटे-छोटे छेद या दाने बनना 4. एक ब्रेस्ट पर खून की नलियां ज्यादा साफ दिखना 5. निपल भीतर को खिंचना या उसमें से दूध के अलावा कोई भी लिक्विड निकलना 6. ब्रेस्ट में कहीं भी लगातार दर्द(नोट : जरूरी नहीं है कि इनमें से एक या अनेक लक्षण होने पर कैंसर हो ही। ऐसे में सलाह है कि डॉक्टर से जरूर राय लें।)

मशीनी जांच (इमेजिंग : फाइबर ऑप्टिक या मैटल की महीन लचीली नली को किसी खास अंग के भीतर डालकर उसके अंदरूनी हिस्सों को मॉनिटर पर देखा जाता है। इस नई तकनीक ने कैंसर की जांच को आसान बना दिया है। जांचे जाने वाले अंग के आकार-प्रकार के आधार पर यह मशीन कई तरह की होती है।
एंजियोग्रफी में किसी डाई को खून में डालकर फिर धमनी तंत्र को एक्स-रे प्लेट पर देखा जाता है।

सीटी स्कैन (कंप्यूटर असिस्टेड टोमोग्रफी) एक विशेष एक्स-रे तकनीक है, जिसमें संबंधित अंग की पतली-पतली तहों के कई एक्सरे लिए जाते हैं।

एमआरआई (मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग) में कैंसर की पहचान और उसके आकार और फैलाव की जांच के लिए विशेष ताकतवर चुंबक के जरिए शरीर के चित्र लिए जाते हैं और उन्हें मिलाकर पूरी तस्वीर बनाई जाती है।

रेडियो न्यूक्लाइड स्कैन में खून में रेडियो सक्रिय आइसोटॉप डाले जाते हैं। जिन जगहों पर ट्यूमर होता है, वहां इन आइसोटॉप्स का जमाव ज्यादा होता है, जो कि स्कैन में साफ दिखाई पड़ते हैं। हड्डियों, लिवर, किडनी, फेफड़ों आदि की जांच के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।

मेमोग्रफी से ब्रेस्ट कैंसर की जांच की जाती है। आम महिलाओं को 40 साल की उम्र में पहली बार, 40 के बाद हर दो साल में एक बार और 50 के बाद हर साल मेमोग्राफी करवाने की सलाह दी जाती है।
पेट स्कैन अपेक्षाकृत नई तकनीक है। इसमें शरीर के भीतर रेडियो सक्रिय डाई प्रविष्ट कराकर ज्यादा बारीकी से शरीर के भीतरी अंगों को कंप्यूटर के जरिए जांचा जा सकता है।

लैब में जांच : बायोप्सी - ठोस गांठों की जांच के लिए प्रभावित टिश्यू का एक टुकड़ा या कुछ सेल्स लेकर माइक्रोस्कोप से देखा जाता है कि वहां कैंसर है या नहीं। सेल्स खुरचकर जांच - मुंह, महिलाओं की प्रजनन नली, मूत्र नली आदि की जांच के लिए किसी चपटे उपकरण से सेल्स खुरच कर उन्हें माइक्रोस्कोप से जांचा जाता है।

पेप स्मियर - बच्चेदानी के कैंसर की पहचान और संभावना जांचने के लिए की जानेवाली यह सस्ती, सरल और पक्की जांच है। इसमें गर्भाशय में चपटा स्पैचुला डालकर सेल्स खुरचकर निकाले जाते हैं और उनकी जांच की जाती है। विवाह के तीन साल बाद से हर दो साल में यह जांच हर महिला को करवानी चाहिए।

एफएनएसी - इसमें बारीक सूई से गांठ की भीतरी तहों को बाहर निकाला जाता है और जांच की जाती है। बेहद छोटी या अस्पष्ट गांठों के लिए अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन गाइडेड एफएनएसी की जाती है।

खून की जांच - खून में ट्यूमर द्वारा छोड़े गए सेल्स पर मौजूद कुछ खास प्रोटीन यानी ट्यूमर मार्कर की रासायनिक जांच करके कैंसर की मौजूदगी शुरुआती स्टेज में ही जांची जा सकती है। ओवरी के कैंसर के लिए सीए 125, प्रोस्टेट के लिए पीएसए, पैंक्रियाटिक कैंसर के लिए सीए 19-9 आदि।

हालांकि कैंसर के अलावा भी कई वजहों से शरीर में इन प्रोटीनों की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे इसे कैंसर के लिए निश्चित जांच नहीं माना जा सकता।

ये भी जानें : - कैंसर छूत की बीमारी नहीं है, जो मरीज को छूने, उसके पास जाने, उसका सामान इस्तेमाल करने, उसका खून या शरीर की कोई चोट या जख्म छूने से हो सकती है। कैंसर डायबीटीज और हाई बीपी की तरह शरीर में खुद ही पैदा होनेवाली बीमारी है। यह किसी इन्फेक्शन से नहीं होती, जिसका इलाज एंटीबायोटिक्स से हो सकता है। जल्दी पता लगने और इलाज कराने पर यह ठीक हो सकता है। कैंसर के बाद भी सामान्य जिंदगी जी जा सकती है। 

कैंसर दिनों या महीनों में नहीं होता। आमतौर पर इसकी गांठ बनने और किसी अंग में जमकर बैठने और विकसित होने में बरसों लगते है। लेकिन इसका पता हमें बहुत बाद में लगता है। ज्यादातर मामलों में कैंसर खानदानी बीमारी नहीं है। अनेक सहायक कारक मिलकर कैंसर की स्थितियां पैदा करते हैं। ज्यादातर मामलों में कैंसर की शुरुआत में दर्द बिल्कुल नहीं होता।

डॉक्टरों की गाइडलाइंस :
1. पेड़-पौधों से बनीं रेशेदार चीजें जैसे फल, सब्जियां व अनाज खाइए। 2. चर्बी वाले खानों से परहेज करें। मीट, तला हुआ खाना या ऊपर से घी-तेल लेने से बचना चाहिए। 3. शराब का सेवन करें तो सीमित मात्रा में। 4. खाना इस तरह पकाया और प्रीजर्व किया जाए कि उसमें कैंसरकारी तत्व, फफूंद व बैक्टीरिया आदि न पैदा हो सके। 5. खाना बनाते और खाते वक्त अतिरिक्त नमक डालने से बचें। 6. शरीर का वजन सामान्य से बहुत ज्यादा या कम न हो, इसके लिए कैलोरी खाने और खर्च करने में संतुलन हो। ज्यादा कैलोरी वाला खाना कम मात्रा में खाएं, नियमित कसरत करें। 7. विटामिंस और मिनरल्स की गोलियां संतुलित खाने का विकल्प कभी नहीं हो सकतीं। विटामिन और मिनरल की प्रचुरता वाली खाने की चीजें ही इस जरूरत को पूरा कर सकती हैं। 8. इन सबके साथ पर्यावरण से कैंसरकारी जहरीले पदार्थों को हटाने, कैंसर की जल्द पहचान, तंबाकू का सेवन किसी भी रूप में पूरी तरह खत्म करने, दर्द-निवारक और दूसरी दवाइयां खुद ही, बेवजह खाते रहने की आदत छोड़ें। 9. कैंसर की जल्दी पहचान और जल्द और पूरा इलाज ही इस बीमारी से छुटकारे की शर्तें हैं।

लाल, नीले, पीले और जामुनी रंग की फल-सब्जियां जैसे टमाटर, जामुन, काले अंगूर, अमरूद, पपीता, तरबूज आदि खाने से प्रोस्टेट कैंसर का खतरा कम हो जाता है। हल्दी ठीक सेल्स को छेड़े बिना ट्यूमर के बीमार सेल्स की बढ़ोतरी को धीमा करती है। हरी चाय स्किन, आंत ब्रेस्ट, पेट , लिवर और फेफड़ों के कैंसर को रोकने में मदद करती है। चाय की पत्ती अगर प्रोसेस की गई हो तो उसके ज्यादातर गुण गायब हो जाते हैं। सोया प्रॉडक्ट्स खाने से ब्रेस्ट और प्रोस्टेट कैंसर की आशंका घटती है। बादाम, किशमिश जैसे ड्राई फ्रूट्स खाने से कैंसर का फैलाव रुकता है। गोभी प्रजाति की सब्जियों जैसे कि पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली आदि में कैंसर को परे हटाने का गुण होता है। रोज लहसुन खाएं। इससे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है। रोज नींबू, संतरा या मौसमी में से कम-से-कम एक फल खाएं। इससे मुंह, गले और पेट के कैंसर की आशंका कम हो जाती है। जहां तक मुमकिन हो, ऑर्गेनिक फूड लें, यानी वे दालें, सब्जियां, फल जिन्हें उपजाने में पेस्टीसाइड और केमिकल खादें इस्तेमाल नहीं हुई हों। आलू चिप्स की जगह पॉप कॉर्न खाएं। पानी पर्याप्त मात्रा में पीएं। रोज 15 निट तक सूर्य की रोशनी में बैठें। रोज एक्सरसाइज करें।