रक्षाबंधन का पर्व
सावन
के रिमझिम मौसम के साथ ही भारत में त्योहारों की रंग-बिरंगी श्रृंखला आरंभ
हो जाती है। यह त्योहार रिश्तों की खूबसूरती को बनाए रखने का बहाना होते
हैं। यूं तो हर रिश्ते की अपनी एक महकती पहचान होती है। भाई-बहन का रिश्ता
एक भावभीना अहसास जगाता है। रक्षाबंधन का पर्व इसी रेशमी रिश्ते की
पवित्रता का प्रतीक है।
यह रिश्ता जीवन के विविध उतार-चढ़ाव से गुजरते हुए भी एक गहरे, बहुत गहरे अहसास के साथ हमेशा ताजातरीन और जीवंत बना रहता है। मन के किसी कच्चे कोने में बचपन से लेकर युवा होने तक की, स्कूल से लेकर बहन के बिदा होने तक की और एक-दूजे से लड़ने से लेकर एक-दूजे के लिए लड़ने तक की असंख्य स्मृतियाँ परत-दर-परत रखी होती है। बस, भाई-बहन के फुरसत में मिलने भर की देर है, यादों के शीतल छींटे पड़ते ही अतीत के केसरिया पन्नों से चंदन-बयार उठने लगती है। एक ऐसी सौंधी-सुगंधित सुवास जो मन के साथ-साथ पोर-पोर महका देती है।
सुहाना बचपन : सहज मनोविज्ञान
भाई का नन्हा-सा दिल पहली बार जब छोटी-सी गुलाबी-गुलाबी बहन को देखता है तब अनजानी, अजीब-सी अनुभूतियों से भर उठता है। थोड़ी-सी जिम्मेदारी, थोड़ी-सी चिंता, थोड़ा-सा प्यार, थोड़ी-सी खुशी, थोड़ी-सी जलन, थोड़ा-सा अधिकार ऐसी ही मिलीजुली भावनाओं के साथ भाई-बहन का बचपन गुलजार होता है।
मनोविज्ञान कहता है, अक्सर बड़े भाई-बहन अपने नवागत भाई या बहन को लेकर असुरक्षित महसूस करते हैं। वह मन ही मन खुद को उपेक्षित और अवांछित भी समझ सकते हैं। यहां परिवार और परवरिश दोनों की अहम भूमिका होती है। घर के बड़े हंसी-मजाक में भी कभी बच्चे को यह अहसास ना कराएं कि नए बच्चे के आगमन से उसकी अहमियत कम हो जाएगी। इस उम्र में बैठा उनका यह डर ग्रंथि बनकर रिश्तों की डोर कमजोर कर सकता है। भाई और बहन के बीच स्वस्थ रिश्ते की बुनियाद रखने की जिम्मेदारी माता-पिता की होती है।
खासकर भाई अगर बड़ा है तो उसे नई बहन के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए शिक्षा दें कि यह नन्ही जान उसके साथ खेलने और पढ़ने के लिए लाई गई है। उसके अकेलेपन को दूर करने के लिए उसे भेजा गया है। जैसे-जैसे वह बड़ी होगी उसकी खुशियों का सबब बनेगी।
अगर बहन बड़ी है तो उसे यह अहसास दिलाएं कि छोटा भाई आने से उसको मिलने वाले प्यार में कमी नहीं होगी ना व्यवहार में बदलाव आएगा। लड़कियां यूं भी मानसिक रूप से इस मामले में मजबूत होती है उन्हें बस इतना भर बताया जाना चाहिए कि इस छोटे प्राणी को अभी ज्यादा देखभाल की जरूरत है।
भाई-बहन के रिश्ते के मनोविज्ञान का बस इतना ही सच है कि उन्हें स्वस्थ वातावरण में बिना किसी भेदभाव के खिलने-खेलने-पनपने का अवसर दीजिए। प्यार की सौगात से तो ईश्वर ने स्वयं उन्हें नवाजा है आप उन्हें उस प्यार को महकाने की खुशनुमा भावनात्मक बगिया दीजिए।
नटखट बचपन : नन्ही शैतानियां
याद कीजिए अपने बचपन की शरारतें। क्या भाई-बहन के बिना वे इतनी मोहक और मासूम हो सकती थी? नहीं ना? ठीक इसी तरह आज के बचपन को भी खुलकर जीने दीजिए। बचपन की मयूरपंखी स्मृतियां उनके भविष्य की भी मुस्कान बने इसलिए बहुत जरूरी है कि बड़ा भाई अपनी छुटकी बहन के उल्टे-सीधे नाम रखें, बहुत जरूरी है कि दोनों साथ-साथ उछले-कूदे, गिरे-पड़े, धमाधम धिंगामुश्ती करें। जरूरी है कि पेड़ पर चढ़े और मिट्टी में सने, जरूरी है कि एक दूसरे के खिलौनों को तोड़े-छुपाए।
यह रिश्ता जीवन के विविध उतार-चढ़ाव से गुजरते हुए भी एक गहरे, बहुत गहरे अहसास के साथ हमेशा ताजातरीन और जीवंत बना रहता है। मन के किसी कच्चे कोने में बचपन से लेकर युवा होने तक की, स्कूल से लेकर बहन के बिदा होने तक की और एक-दूजे से लड़ने से लेकर एक-दूजे के लिए लड़ने तक की असंख्य स्मृतियाँ परत-दर-परत रखी होती है। बस, भाई-बहन के फुरसत में मिलने भर की देर है, यादों के शीतल छींटे पड़ते ही अतीत के केसरिया पन्नों से चंदन-बयार उठने लगती है। एक ऐसी सौंधी-सुगंधित सुवास जो मन के साथ-साथ पोर-पोर महका देती है।
सुहाना बचपन : सहज मनोविज्ञान
भाई का नन्हा-सा दिल पहली बार जब छोटी-सी गुलाबी-गुलाबी बहन को देखता है तब अनजानी, अजीब-सी अनुभूतियों से भर उठता है। थोड़ी-सी जिम्मेदारी, थोड़ी-सी चिंता, थोड़ा-सा प्यार, थोड़ी-सी खुशी, थोड़ी-सी जलन, थोड़ा-सा अधिकार ऐसी ही मिलीजुली भावनाओं के साथ भाई-बहन का बचपन गुलजार होता है।
मनोविज्ञान कहता है, अक्सर बड़े भाई-बहन अपने नवागत भाई या बहन को लेकर असुरक्षित महसूस करते हैं। वह मन ही मन खुद को उपेक्षित और अवांछित भी समझ सकते हैं। यहां परिवार और परवरिश दोनों की अहम भूमिका होती है। घर के बड़े हंसी-मजाक में भी कभी बच्चे को यह अहसास ना कराएं कि नए बच्चे के आगमन से उसकी अहमियत कम हो जाएगी। इस उम्र में बैठा उनका यह डर ग्रंथि बनकर रिश्तों की डोर कमजोर कर सकता है। भाई और बहन के बीच स्वस्थ रिश्ते की बुनियाद रखने की जिम्मेदारी माता-पिता की होती है।
खासकर भाई अगर बड़ा है तो उसे नई बहन के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए शिक्षा दें कि यह नन्ही जान उसके साथ खेलने और पढ़ने के लिए लाई गई है। उसके अकेलेपन को दूर करने के लिए उसे भेजा गया है। जैसे-जैसे वह बड़ी होगी उसकी खुशियों का सबब बनेगी।
अगर बहन बड़ी है तो उसे यह अहसास दिलाएं कि छोटा भाई आने से उसको मिलने वाले प्यार में कमी नहीं होगी ना व्यवहार में बदलाव आएगा। लड़कियां यूं भी मानसिक रूप से इस मामले में मजबूत होती है उन्हें बस इतना भर बताया जाना चाहिए कि इस छोटे प्राणी को अभी ज्यादा देखभाल की जरूरत है।
भाई-बहन के रिश्ते के मनोविज्ञान का बस इतना ही सच है कि उन्हें स्वस्थ वातावरण में बिना किसी भेदभाव के खिलने-खेलने-पनपने का अवसर दीजिए। प्यार की सौगात से तो ईश्वर ने स्वयं उन्हें नवाजा है आप उन्हें उस प्यार को महकाने की खुशनुमा भावनात्मक बगिया दीजिए।
नटखट बचपन : नन्ही शैतानियां
याद कीजिए अपने बचपन की शरारतें। क्या भाई-बहन के बिना वे इतनी मोहक और मासूम हो सकती थी? नहीं ना? ठीक इसी तरह आज के बचपन को भी खुलकर जीने दीजिए। बचपन की मयूरपंखी स्मृतियां उनके भविष्य की भी मुस्कान बने इसलिए बहुत जरूरी है कि बड़ा भाई अपनी छुटकी बहन के उल्टे-सीधे नाम रखें, बहुत जरूरी है कि दोनों साथ-साथ उछले-कूदे, गिरे-पड़े, धमाधम धिंगामुश्ती करें। जरूरी है कि पेड़ पर चढ़े और मिट्टी में सने, जरूरी है कि एक दूसरे के खिलौनों को तोड़े-छुपाए।
सोचिए अगर
आपने यह सब उन्हें नहीं करने दिया तो कल बड़े होकर वे क्या याद करेंगे? यह
कि मेरा बस्ता तुम्हारे बस्ते से ज्यादा भारी था, या यह कि मैंने तुमसे
ज्यादा कोचिंग ली, या यह कि कंप्यूटर का माउस तुमने तोड़ा था और मार मुझे
पड़ी थी। इन यादों में बचपन तो होगा लेकिन टूटते-बिखरते अनारों से ठहाके
नहीं होंगे, बेसाख्ता फूट पड़ती हंसी के फव्वारे नहीं होंगे, मीठी चुटकियां
नहीं होगी, चटपटी सुर्खियां नहीं होंगी।
इन बातों में वह बचपन होगा जो नटखट लम्हों और भोली नादानियों से जुदा होगा। इसलिए सभी नन्हे भाई-बहन को हर पल साथ में ही तीखी-मीठी नोकझोंक के साथ गुजारने दीजिए। उनके रिश्तों के अमलतास हमेशा खिले रहेंगे।
त्योहार के बहाने : रिश्ते नए-पुराने
आज सारे त्योहार तकनीक और आधुनिकता की भेंट चढ़ गए हैं। रक्षाबंधन का त्योहार भी अछूता नहीं रहा। लेकिन इसके बावजूद सबसे बड़ी बात यह है कि रिश्तों की गर्माहट, आंच, तपन या उष्मा कुछ भी कह लीजिए, वह बरकरार है। आज भी भाई का मन अपनी बहन के लिए उतना ही पिघलता है, आज भी बहन का प्यार भाई के लिए उतना ही मचलता है। यह बात और है कि तरीके बदल गए हैं, भावाभिव्यक्तियां बदल गई हैं, अंदाज बदल गए हैं मगर अहसास वही है।
चाहे इंटरनेट पर अदृश्य राखी पहुंचे या मोबाइल पर कोई भावुक-सा मैसेज चमके, चाहे हाथों में 'प्यारे भैया' का टैग लगी राखी हो या लिफाफे में पसीने की कमाई से भीगा शगुन हो। यह प्यारा रिश्ता अपनी गहराई और गंभीरता नहीं भूल सकता।
भावुकता की लहर में यही पंक्तियां उभरती है :
बहनें चिड़िया धूप की, दूर गगन से आए
हर आंगन मेहमान-सी, पकड़ो तो उड़ जाए।
इन बातों में वह बचपन होगा जो नटखट लम्हों और भोली नादानियों से जुदा होगा। इसलिए सभी नन्हे भाई-बहन को हर पल साथ में ही तीखी-मीठी नोकझोंक के साथ गुजारने दीजिए। उनके रिश्तों के अमलतास हमेशा खिले रहेंगे।
त्योहार के बहाने : रिश्ते नए-पुराने
आज सारे त्योहार तकनीक और आधुनिकता की भेंट चढ़ गए हैं। रक्षाबंधन का त्योहार भी अछूता नहीं रहा। लेकिन इसके बावजूद सबसे बड़ी बात यह है कि रिश्तों की गर्माहट, आंच, तपन या उष्मा कुछ भी कह लीजिए, वह बरकरार है। आज भी भाई का मन अपनी बहन के लिए उतना ही पिघलता है, आज भी बहन का प्यार भाई के लिए उतना ही मचलता है। यह बात और है कि तरीके बदल गए हैं, भावाभिव्यक्तियां बदल गई हैं, अंदाज बदल गए हैं मगर अहसास वही है।
चाहे इंटरनेट पर अदृश्य राखी पहुंचे या मोबाइल पर कोई भावुक-सा मैसेज चमके, चाहे हाथों में 'प्यारे भैया' का टैग लगी राखी हो या लिफाफे में पसीने की कमाई से भीगा शगुन हो। यह प्यारा रिश्ता अपनी गहराई और गंभीरता नहीं भूल सकता।
भावुकता की लहर में यही पंक्तियां उभरती है :
बहनें चिड़िया धूप की, दूर गगन से आए
हर आंगन मेहमान-सी, पकड़ो तो उड़ जाए।
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