एक्यूप्रेशर और स्वस्थ जीवन
एक्यूप्रेशर एक सरल, प्रभावकारी एवं सुरक्षित चिकित्सा-पद्धति है। इसके
अंतर्गत शरीर को दर्द, तनाव, थकान, पीड़ा एवं रोग से मुक्ति प्रदान करने
के लिए उपकरण से कुछ विशेष प्रतिबिंब (रिफ्लेक्स) बिंदुओं पर दबाव डाला
जाता है। इस पद्धति का विशेष लाभ यह है कि इसका प्रयोग घर में किया जा
सकता है और इससे कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है, तथापि इसे सभी रोगों के
उपचार के लिए रामबाण न समझा जाए, क्योंकि कोई भी चिकित्सा-पद्धति सभी
रोगों में समान रूप से प्रभावकारी नहीं होती है। यही बात एक्सूप्रेशर पर
भी लागू होती है। किंतु जो रोग शरीर के विभिन्न अंगों के गलत ढंग से कार्य
करने के कारण उत्पन्न हुआ है, उसके निदान में यह पद्धति अत्यंत उपयोगी है।
यदि इसका समुचित प्रयोग किया जाए तो इससे कई पुराने रोगों का उपचार संभव
है, जो अन्यथा ठीक नहीं होते।
एक्यूप्रेशर में उन बिंदुओं का निर्धारण आसान है जिन पर दबाव डालने की आवश्यकता होती है। हालाँकि यह कार्य देखने में सरल लगता है, किंतु स्वयं प्रयोग करने में जोखिम भी है। हम इसे जोखिम इसलिए कहते हैं, क्योंकि कई बार उपचार में विंलब होने से रोग जटिल हो जाता है। इससे रोग दीर्घकालीन अवधि तक कायम रहता है अथवा समय पर जीवन-रक्षक उपचार नहीं हो पाता। हालाँकि ऐसी दुर्घटनाएँ यदा-कदा ही होती हैं, तथापि सावधानी के रूप में रोग की सही पहचान होने के उपरांत ही इस पुस्तक में सन्निहित दिशा-निर्देशों का प्रयोग किया जाना चाहिए, आपातकालीन स्थिति में जब रोगी चिकित्सक के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा हो अथवा जब उसे अस्पताल में भरती कराने ले जाया जा रहा हो, उस समय भी प्राथमिक चिकित्सा के रूप में प्रेशर दिया जा सकता है।
एक्यूप्रेशर में उन बिंदुओं का निर्धारण आसान है जिन पर दबाव डालने की आवश्यकता होती है। हालाँकि यह कार्य देखने में सरल लगता है, किंतु स्वयं प्रयोग करने में जोखिम भी है। हम इसे जोखिम इसलिए कहते हैं, क्योंकि कई बार उपचार में विंलब होने से रोग जटिल हो जाता है। इससे रोग दीर्घकालीन अवधि तक कायम रहता है अथवा समय पर जीवन-रक्षक उपचार नहीं हो पाता। हालाँकि ऐसी दुर्घटनाएँ यदा-कदा ही होती हैं, तथापि सावधानी के रूप में रोग की सही पहचान होने के उपरांत ही इस पुस्तक में सन्निहित दिशा-निर्देशों का प्रयोग किया जाना चाहिए, आपातकालीन स्थिति में जब रोगी चिकित्सक के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा हो अथवा जब उसे अस्पताल में भरती कराने ले जाया जा रहा हो, उस समय भी प्राथमिक चिकित्सा के रूप में प्रेशर दिया जा सकता है।
भूमिका
जब कोई व्यक्ति बीमार होता है तो वह रोग के उपचार हेतु चिकित्सा विज्ञान
की शरण में जाता है। व्यक्ति अपनी आवश्यकता एवं आस्था के अनुरूप एलोपैथी,
होम्योपैथी, आयुर्वैदिक, यूनानी अथवा अन्य किसी चिकित्सा-प्रणाली की शरण
में जाता है। इस संदर्भ में यह जानना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि किसी खास
चिकित्सा प्रणाली के प्रभाव अथवा उपयोगिता को दूसरे की तुलना में कम करके
आँकने से कोई लाभ नहीं। जैसा कि पहले स्पष्ट किया जा चुका है, व्यक्ति
अपनी आवश्यकता के अनुरूप चिकित्सा- पद्धति अपनाता है, अतः रोगी को रोग की
तीव्रता एवं प्रकृति के साथ-साथ अपनी आस्था के अनुरूप चिकित्सा-पद्धित का
चयन करना चाहिए।
एक्यूप्रेशर प्राचीनतम प्रभावी चिकित्सा-पद्धतियों में से एक है। यह पूर्णतया प्राकृतिक उपचार पर आधारित है। चूँकि इस उपचार-पद्धति के अंतर्गत रोगी को कोई दवा नहीं दी जाती है, इसलिए इससे कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता है। इससे दूसरा लाभ यह है कि रोगी को कोई भी दवा नहीं दिए जाने के कारण इसका किसी अन्य चिकित्सा-पद्धति के प्रति विरोध भी नहीं है। उदाहरणस्वरूप, आंशिक रूप से स्वस्थ होने तक रोगी एक्यूप्रेशर के साथ-साथ किसी अन्य चिकित्सा पद्घति के द्वारा भी इलाज करवा सकता है, तत्पश्चात् जैसे-जैसे स्वास्थ्य-लाभ होता जाए, संबद्ध चिकित्सक के परामर्श से ओषधि की मात्रा कम की जा सकती है।
इस पद्धति को स्वीकार करने एवं लागू करने के पीछे सामान्य सिद्धांत यह है कि मनुष्य के शरीर में सभी रोगों के निवारण की जीवनी शक्ति स्वतः विद्यमान है। आवश्यकता केवल इस बात की है कि सम्पूर्ण उर्जा को सक्रिय करके उसे समुचित दिशा दी जाए। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक्यूप्रेशर के माध्यम से उपचार करते समय रिफ्लेक्सोलॉजी के सिद्धांत का उपयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि शरीर के अधिकांश महत्वपूर्ण अंगों के प्रतिबिंब केंद हथेलियों एवं तलवों में पाए जाते हैं। इन प्रतिबिंब केंद्रों को प्रतिक्रिया बिंदु’ भी कहा जाता है। जब कोई व्यक्ति किसी रोगी से पीड़ित रहता है तो प्रभावित अंग से संबंधित बिंदु संवेदनशील हो जाता है और उसे दबाने पर दर्द होता है।
इस पद्धति से उपचार के चमत्कारी परिणामों को देखते हुए चिकित्सा की अन्य पद्धतियों के नियमित अभ्यासकर्ताओं ने भी एक्यूप्रेशर में रुचि लेते हुए इसका प्रयोग शुरू कर दिया है। इस पद्धति का अनुसरण करने पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता, क्योंकि इसके अंतर्गत न तो ओषधि की आवश्यकता होती है और न ही किसी प्रकार की शल्य चिकित्सा की जाती है। एक्यूप्रेशर के माध्यम से उपचार का अन्य लाभ यह है कि यह न केवल रोग-निवारक है अपितु आरोग्यकर भी है। सप्ताह में दो दिन घर बैठे 20-25 मिनट प्रतिदिन विशिष्ट प्रतिबिंब केंद्रों पर प्रेशर देने से बिना पैसा खर्च किए रोग-निवारण हेतु आप संपूर्ण एक्यूप्रेशर प्रक्रिया अपना सकते हैं। प्रारंभ में यह उचित होगा कि किसी एक्यूप्रेशर चिकित्सक के मार्गदर्शन में कम-से-कम एक सप्ताह एक अभ्यास किया जाए, ताकि अभ्यासकर्ता प्रतिबिंब बिंदुओं की पहचान करना सीख सके। नए लोगों के लिए यह जानना आवश्यक है कि किन बिंदुओं पर दबाव दिया जाए, कितना दबाव दिया जाए और कितनी देर तक दबाव दिया जाए।
जब कोई व्यक्ति किसी रोग से पीड़ित होता है तो प्रभावित अंग से संबंधित प्रतिबिंब केंद्र अथवा उस मध्याहृ रेखा पर पड़ने वाला प्रतिबिंब बिंदु अत्यंत संवेदनशील हो जाता है। जब हम इन प्रतिबिंब बिंदुओं पर दबाव डालते हैं तो इनमें से कुछ बिंदु बहुत दर्द करने लगते हैँ। यहाँ तक कि इनसे स्पर्श होने पर भी रोगी को चुभन जैसा दर्द होता है। रोगी को यह अनुभूति होती है जैसे किसी ने वहाँ कोई कील अथवा काँच का टुकड़ा चुभों दिया हो।
इस प्रकार जिन बिंदुओं के स्पर्श मात्र से असामान्य रूप से दर्द होता है, दबाव डालने के लिए वही बिंदु उपयुक्त होता है। ऐसे बिंदुओं की पहचान तलवे एवं हथेली में करना श्रेयस्कर होगा। नवप्रशिक्षित लोगों के लिए दबाव डालने से पूर्व ऐसे बिंदुओं पर कलम से निशान लगाना उचित रहेगा। कुछ ही दिनों के अंदर ऐसा लगेगा कि दर्द की चुभन अब नहीं रही अथवा बहुत कम हो गई है। इसका तात्पर्य यह है कि संबंधित अंग ठीक से काम करने लगा है। यहाँ यह कहना उचित होगा कि एक्यूप्रेशर तकनीक न सिर्फ रोग-निवारक एवं आरोग्यकर है, अपितु एक सीमा तक रोग निदान करने वाली भी है। एक बार जब रोग की सही पहचान हो जाती है तो एक्यूप्रेशर पद्धति के अंतर्गत उसका उपचार सुचारु रूप से किया जा सकता है।
एक्यूप्रेशर प्राचीनतम प्रभावी चिकित्सा-पद्धतियों में से एक है। यह पूर्णतया प्राकृतिक उपचार पर आधारित है। चूँकि इस उपचार-पद्धति के अंतर्गत रोगी को कोई दवा नहीं दी जाती है, इसलिए इससे कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता है। इससे दूसरा लाभ यह है कि रोगी को कोई भी दवा नहीं दिए जाने के कारण इसका किसी अन्य चिकित्सा-पद्धति के प्रति विरोध भी नहीं है। उदाहरणस्वरूप, आंशिक रूप से स्वस्थ होने तक रोगी एक्यूप्रेशर के साथ-साथ किसी अन्य चिकित्सा पद्घति के द्वारा भी इलाज करवा सकता है, तत्पश्चात् जैसे-जैसे स्वास्थ्य-लाभ होता जाए, संबद्ध चिकित्सक के परामर्श से ओषधि की मात्रा कम की जा सकती है।
इस पद्धति को स्वीकार करने एवं लागू करने के पीछे सामान्य सिद्धांत यह है कि मनुष्य के शरीर में सभी रोगों के निवारण की जीवनी शक्ति स्वतः विद्यमान है। आवश्यकता केवल इस बात की है कि सम्पूर्ण उर्जा को सक्रिय करके उसे समुचित दिशा दी जाए। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक्यूप्रेशर के माध्यम से उपचार करते समय रिफ्लेक्सोलॉजी के सिद्धांत का उपयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि शरीर के अधिकांश महत्वपूर्ण अंगों के प्रतिबिंब केंद हथेलियों एवं तलवों में पाए जाते हैं। इन प्रतिबिंब केंद्रों को प्रतिक्रिया बिंदु’ भी कहा जाता है। जब कोई व्यक्ति किसी रोगी से पीड़ित रहता है तो प्रभावित अंग से संबंधित बिंदु संवेदनशील हो जाता है और उसे दबाने पर दर्द होता है।
इस पद्धति से उपचार के चमत्कारी परिणामों को देखते हुए चिकित्सा की अन्य पद्धतियों के नियमित अभ्यासकर्ताओं ने भी एक्यूप्रेशर में रुचि लेते हुए इसका प्रयोग शुरू कर दिया है। इस पद्धति का अनुसरण करने पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता, क्योंकि इसके अंतर्गत न तो ओषधि की आवश्यकता होती है और न ही किसी प्रकार की शल्य चिकित्सा की जाती है। एक्यूप्रेशर के माध्यम से उपचार का अन्य लाभ यह है कि यह न केवल रोग-निवारक है अपितु आरोग्यकर भी है। सप्ताह में दो दिन घर बैठे 20-25 मिनट प्रतिदिन विशिष्ट प्रतिबिंब केंद्रों पर प्रेशर देने से बिना पैसा खर्च किए रोग-निवारण हेतु आप संपूर्ण एक्यूप्रेशर प्रक्रिया अपना सकते हैं। प्रारंभ में यह उचित होगा कि किसी एक्यूप्रेशर चिकित्सक के मार्गदर्शन में कम-से-कम एक सप्ताह एक अभ्यास किया जाए, ताकि अभ्यासकर्ता प्रतिबिंब बिंदुओं की पहचान करना सीख सके। नए लोगों के लिए यह जानना आवश्यक है कि किन बिंदुओं पर दबाव दिया जाए, कितना दबाव दिया जाए और कितनी देर तक दबाव दिया जाए।
जब कोई व्यक्ति किसी रोग से पीड़ित होता है तो प्रभावित अंग से संबंधित प्रतिबिंब केंद्र अथवा उस मध्याहृ रेखा पर पड़ने वाला प्रतिबिंब बिंदु अत्यंत संवेदनशील हो जाता है। जब हम इन प्रतिबिंब बिंदुओं पर दबाव डालते हैं तो इनमें से कुछ बिंदु बहुत दर्द करने लगते हैँ। यहाँ तक कि इनसे स्पर्श होने पर भी रोगी को चुभन जैसा दर्द होता है। रोगी को यह अनुभूति होती है जैसे किसी ने वहाँ कोई कील अथवा काँच का टुकड़ा चुभों दिया हो।
इस प्रकार जिन बिंदुओं के स्पर्श मात्र से असामान्य रूप से दर्द होता है, दबाव डालने के लिए वही बिंदु उपयुक्त होता है। ऐसे बिंदुओं की पहचान तलवे एवं हथेली में करना श्रेयस्कर होगा। नवप्रशिक्षित लोगों के लिए दबाव डालने से पूर्व ऐसे बिंदुओं पर कलम से निशान लगाना उचित रहेगा। कुछ ही दिनों के अंदर ऐसा लगेगा कि दर्द की चुभन अब नहीं रही अथवा बहुत कम हो गई है। इसका तात्पर्य यह है कि संबंधित अंग ठीक से काम करने लगा है। यहाँ यह कहना उचित होगा कि एक्यूप्रेशर तकनीक न सिर्फ रोग-निवारक एवं आरोग्यकर है, अपितु एक सीमा तक रोग निदान करने वाली भी है। एक बार जब रोग की सही पहचान हो जाती है तो एक्यूप्रेशर पद्धति के अंतर्गत उसका उपचार सुचारु रूप से किया जा सकता है।
भाग-1
एक्यूप्रेशर एवं एक्यूपंक्चर में अंतर
ऐसा कहा जाता है कि एक्यूप्रेशर एवं एक्यूपंक्चर दोनों चिकित्सा-पद्धतियाँ
चीनी तकनीक पर आधारित हैं। दोनों प्रतिबिंब-शास्त्र (रिफ्लेक्सोलॉजी) का
अनुसरण करती हैं, किंतु इन दोनों के बीच मूल अंतर उपचार की विधि का है।
एक्यूप्रेशर में दबाव उँगली अथवा अँगूठे, कठोर रबर, प्लास्टिक या लड़की से
बने उपकरण जिसे प्रायः जिमि’ कहते हैं अथवा रोलर की सहायता से
दिया
जाता है। इसके अंतर्गत प्रभावित क्षेत्र जहाँ प्रतिबिंब बिंदु स्थित हैं
वहाँ रोलिंग द्वारा उत्तेजना प्रदान की जाती है। एक्यूपंक्चर में विभिन्न
बिंदुओं पर सुई चुभोई जाती है और निम्न शक्ति-युक्त विद्युत तरंगों को
प्रवाहित कर अथवा अन्य उन्नत पद्धतियों का उपयोग कर उत्तेजना प्रदान की
जाती है।
ऐसा महसूस किया गया है कि अधिकांश लोग एक्यूपंक्चर की तुलना में एक्यूप्रेशर के माध्यम से उपचार कराना अधिक पसंद करते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि एक्यूप्रेशर की तुलना में एक्यूपंक्चर महँगी एवं क्लिष्ठ चिकित्सा-पद्धति है। इस बात का हमेशा ध्यान रखना पड़ता हैकि प्रशिक्षित एक्यूपंक्चर विशेषज्ञ से ही उपचार कराया जाए। चूँकि सुई चुभोने की प्रक्रिया में बहुत ही सावधानी रखनी पड़ती है। दूसरी ओर, एक्यूप्रेशर बहुत ही सरल प्रक्रिया है। लोग घर बैठे इसे अपना सकते हैं। अतः आर्थिक रूप से भी यह एक सस्ती पद्घति है। सामान्य समझ-बूझवाला व्यक्ति भी घर बैठे इसे अपना सकता है, हालाँकि प्रारंभ में किसी के मार्गदर्शन में ही इस पद्धति को अपनाना चाहिए। इसमें न तो सुई चुभोई जाती है और न ही विद्युत तरंग प्रवाहित की जाती है और न ही कोई दवाई दी जाती है।...
ऐसा महसूस किया गया है कि अधिकांश लोग एक्यूपंक्चर की तुलना में एक्यूप्रेशर के माध्यम से उपचार कराना अधिक पसंद करते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि एक्यूप्रेशर की तुलना में एक्यूपंक्चर महँगी एवं क्लिष्ठ चिकित्सा-पद्धति है। इस बात का हमेशा ध्यान रखना पड़ता हैकि प्रशिक्षित एक्यूपंक्चर विशेषज्ञ से ही उपचार कराया जाए। चूँकि सुई चुभोने की प्रक्रिया में बहुत ही सावधानी रखनी पड़ती है। दूसरी ओर, एक्यूप्रेशर बहुत ही सरल प्रक्रिया है। लोग घर बैठे इसे अपना सकते हैं। अतः आर्थिक रूप से भी यह एक सस्ती पद्घति है। सामान्य समझ-बूझवाला व्यक्ति भी घर बैठे इसे अपना सकता है, हालाँकि प्रारंभ में किसी के मार्गदर्शन में ही इस पद्धति को अपनाना चाहिए। इसमें न तो सुई चुभोई जाती है और न ही विद्युत तरंग प्रवाहित की जाती है और न ही कोई दवाई दी जाती है।...
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