कैंसर का नाम सुनते
ही कुछ बरसों पहले तक मन में एक डर सा पैदा हो जाता था। वजह, इस बीमारी का
लाइलाज होना। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब न सिर्फ कैंसर का इलाज मुमकिन है,
बल्कि ठीक होने के बाद सामान्य रुप से जिंदगी को जीना कोई मुश्किल बात
नहीं। शर्त यही है कि शुरुआती स्टेज पर बीमारी की पहचान हो जाए और फिर उसका
मुकम्मल इलाज कराया जाए। वैसे, अगर कुछ चीजों से बचें और लाइफस्टाइल को
सुधार लें तो कैंसर के शिकंजे में आने की आशंका भी काफी कम हो जाती है।
कैंसर से बचाव और जांच के विभिन्न पहलुओं पर पेश है अनुराधा की स्पेशल
रिपोर्ट-
हमारे देश में पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर सबसे आम है।
इसके बाद पेट और मुंह के कैंसर आते हैं। महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के
मामले सबसे ज्यादा हैं। इसके बाद बच्चेदानी के मुंह के (सर्वाइकल) कैंसर का
नंबर आता है।ब्रिटिश ऐक्ट्रिस जेड गुडी की सर्वाइकल कैंसर से मौत ने एक
बार फिर इस बीमारी को केंद्र में ला दिया है। कुछ बरसों पहले तक कैंसर सबसे
जानलेवा बीमारी माना जाता था, लेकिन अब कैंसर का इलाज मुमकिन है। हालांकि
इसके लिए वक्त पर बीमारी की जांच और सही इलाज जरूरी है।
कैसे होता है कैंसर हमारे
शरीर की सबसे छोटी यूनिट (इकाई) सेल (कोशिका) है। शरीर में 100 से 1000
खरब सेल्स होते हैं। हर वक्त ढेरों सेल पैदा होते रहते हैं और पुराने व
खराब सेल खत्म भी होते रहते हैं। शरीर के किसी भी नॉर्मल टिश्यू में जितने
नए सेल्स पैदा होते रहते हैं, उतने ही पुराने सेल्स भी खत्म होते जाते हैं।
इस तरह संतुलन बना रहता है। कैंसर में यह संतुलन बिगड़ जाता है। उनमें
सेल्स की बेलगाम बढ़ोतरी होती रहती है।गलत लाइफस्टाइल और तंबाकू, शराब जैसी
चीजें किसी सेल के जेनेटिक कोड में बदलाव लाकर कैंसर पैदा कर देती हैं।
आमतौर पर जब किसी सेल में किसी वजह से खराबी आ जाती है तो खराब सेल अपने
जैसे खराब सेल्स पैदा नहीं करता। वह खुद को मार देता है। कैंसर सेल खराब
होने के बावजूद खुद को नहीं मारता, बल्कि अपने जैसे सेल बेतरतीब तरीके से
पैदा करता जाता है। वे सही सेल्स के कामकाज में रुकावट डालने लगते हैं।
कैंसर सेल एक जगह टिककर नहीं रहते। अपने मूल अंग से निकल कर शरीर में किसी
दूसरी जगह जमकर वहां भी अपने तरह के बीमार सेल्स का ढेर बना डालते हैं और
उस अंग के कामकाज में भी रुकावट आने लगती है। इन अधूरे बीमार सेल्स का समूह
ही कैंसर है। ट्यूमर बनने में महीनों, बरसों, बल्कि कई बार तो दशकों लग
जाते हैं। कम-से-कम एक अरब सेल्स के जमा होने पर ही ट्यूमर पहचानने लायक
आकार में आता है।
कैसे बचें कैंसर से 1. तंबाकू से रहें दूर- हमारे
देश में पुरुषों में 48 फीसदी और महिलाओं में 20 फीसदी कैंसर की इकलौती
वजह तंबाकू है। स्मोकिंग करने वालों के अलावा उसका धुआं लेनेवालों (पैसिव
स्मोकर्स) और प्रदूषित हवा में रहनेवालों को भी कैंसर का खतरा कई गुना बढ़
जाता है। तंबाकू या पान मसाला चबाने वालों को मुंह का कैंसर ज्यादा होता
है। तंबाकू में 45 तरह के कैंसरकारी तत्व पाए जाते हैं। पान-मसाले में
स्वाद और सुगंध के लिए दूसरी चीजें मिलाई जाती हैं, जिससे उसमें
कार्सिनोजेन्स (कैंसर पैदा करनेवाले तत्व) की तादाद बढ़ जाती है। गुटखा
(पान मसाला) चाहे तंबाकू वाला हो या बिना तंबाकू वाला, दोनों नुकसान करता
है। हां, तंबाकू वाला गुटखा ज्यादा नुकसानदायक है। गुटखे में मौजूद सुपारी
और कत्था भी सेफ नहीं हैं।
2. शराब से करें परहेज- रोज
ज्यादा शराब पीना, खाने की नली, गले, लिवर और ब्रेस्ट कैंसर को खुला
न्योता है। ड्रिंक में अल्कोहल की ज्यादा मात्रा और साथ में तंबाकू का सेवन
कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ा देता है।
3. सही डाइट लें- अनुमान है कि कैंसर से होनेवाली 30 फीसदी मौतों को सही खानपान के जरिए रोका जा सकता है।
4.नॉन वेज खाने से बचें- इंटरनैशनल
यूनियन अगेंस्ट कैंसर (यूआईसीसी) ने स्टडी में पाया कि ज्यादा चर्बी
खानेवाले लोगों में ब्रेस्ट, प्रोस्टेट, कोलोन और मलाशय (रेक्टम) के कैंसर
ज्यादा होते हैं। जर्मनी में 11 साल तक चली स्टडी में पाया गया कि वेज खाना
खानेवाले लोगों को आम लोगों के मुकाबले कैंसर कम हुआ। कैंसर सबसे कम उन
लोगों में हुआ, जिन्होंने 20 साल से नॉन-वेज नहीं खाया था। मीट को हजम करने
में ज्यादा एंजाइम और ज्यादा वक्त लगता है। ज्यादा देर तक बिना पचा खाना
पेट में एसिड और दूसरे जहरीले रसायन बनाते हैं, जिनसे कैंसर को बढ़ावा
मिलता है। फलों और सब्जियों में काफी एंटी-ऑक्सिडेंट होते हैं, जो कैंसर
पैदा करनेवाले रसायनों को नष्ट करने में अहम भूमिका अदा करते हैं। शाकाहार
में मौजूद विविध विटामिन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और कैंसर
सेल्स फल-फूल कर बीमारी नहीं पैदा कर पाते। पेजवेर्टिव और प्रोसेस्ड फूड कम
खाएं। तेज आंच पर देर तक पकी चीजें कम खाएं।
5. एक्स-रे ज्यादा न कराएं- एक्स-रे,
रेडियोथेरपी आदि हमारे शरीर में पहुंच कर सेल्स की रासायनिक गतिविधियों की
रफ्तार बढ़ा देते हैं, जिससे स्किन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि
एक्स-रे और रेडियोथेरपी से काफी कम मात्रा में रेडिएशन निकलता है और नुकसान
के मुकाबले इसके फायदे ज्यादा हैं।
6. कुछ खास तरह के वायरस और बैक्टीरिया से बचाव करें- ह्यूमन
पैपिलोमा वायरस से सर्वाइकल कैंसर हो सकता है। इससे बचने के उपाय हैं - एक
ही पार्टनर से संबंध व सफाई का ध्यान रखना। पेट में अल्सर बनानेवाले
हेलिकोबैक्टर पाइलोरी से पेट का कैंसर भी हो सकता है, इसलिए अल्सर का इलाज
वक्त पर करवाना जरूरी है।
7. ह़र्मोन थेरपी जरूरी होने पर ही लें- महिलाओं
में मेनोपॉज़ के दौरान होनेवाली तकलीफों के लिए इस्ट्रोजन और प्रोजेस्टिन
हॉरमोन थेरपी दी जाती है। हाल की स्टडी से पता चला है कि मेनोपॉजल हॉरमोन
थेरपी से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। हॉरमोन थेरपी लेने के पहले
इसके खतरों पर जरूर गौर कर लेना चाहिए।
8. धूप में ज्यादा देर रहने से बचें- सूरज
से निकलने वाली अल्ट्रावॉयलेट किरणों से स्किन कैंसर होने की आशंका बढ़
जाती है। तेज धूप में कम कपड़ों में ज्यादा देर नहीं रहना चाहिए। धूप में
निकलना ही हो तो पूरी बाजू के कपड़े, हैट और अल्ट्रावॉयलेट किरणें रोकने
वाला चश्मा पहनना चाहिए। कम-से-कम 15 एसपीएफ वाला सनस्क्रीन भी लगाना
चाहिए। वैसे, हम भारतीयों की स्किन में मेलानिन पिग्मेंट ज्यादा होता है,
जो अल्ट्रावॉयलेट किरणों को रोकता है। इसी स्किन को कैंसर का खतरा कम होता
है, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं होता। भारत में पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर
सबसे आम है, जिसकी सबसे बड़ी वजह लंबे अरसे तक सिगरेट या बीड़ी पीना है।
पैसिव स्मोकर्स को भी इसका खतरा बढ़ जाता है। इसलिए स्मोकिंग करनेवालों को
साल में एक बार सीटी स्कैन करा लेना चाहिए ताकि बीमारी जल्द पकड़ में आ
जाए।अपने देश में महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले सबसे ज्यादा हैं। इसे
समय पर पकड़ने के लिए 40 साल की उम्र में पहली बार, 40 के बाद हर दो साल
में एक बार और 50 के बाद हर साल मेमोग्राफी टेस्ट कराते रहना चाहिए।
कैंसर के शुरुआती लक्षण 1.
भूख बेहद कम या बिल्कुल न लगना 2. याददाश्त में कमी, देखने-सुनने में
दिक्कत, सिर में भारी दर्द 3. लगातार खांसी जो ठीक नहीं हो रही हो, थूक में
खून आना या आवाज में खरखराहट 4. मुंह खोलने, चबाने, निगलने या खाना हजम
करने में परेशानी 5. पाखाने या पेशाब में खून आना 6. बिना वजह खून या वजन
में बेहद कमी 7. ब्रेस्ट या शरीर में किसी अन्य जगह स्थायी गांठ बनना या
सूजन 8. किसी जगह से अचानक खून, पानी या मवाद निकलना 9. तिल या मस्से में
बदलाव या किसी घाव का न भरना 10. कमर या पीठ में लगातार दर्द ।
खुद कैसे जांचें: अगर
हम सचेत हों तो कई बार डॉक्टर से पहले ही खुद भी कैंसर का पता लगा सकते
हैं। स्किन, ब्रेस्ट, मुंह और टेस्टिकुलर कैंसर का पता खुद अपनी जांच करके
लगाया जा सकता है। स्किन की जांच - रोशनी वाली जगह में मिरर के सामने अपने
पूरे शरीर की स्किन, नाखूनों के नीचे, खोपड़ी, हथेली, पैरों के तलवे जैसी
छुपी जगहों का मुआयना करें। देखें कि कोई नया तिल, मस्सा या रंगीन चकता तो
नहीं उभर रहा है। पुराने तिल/मस्से के आकार-प्रकार या रंग में बदलाव हो रहा
हो। किसी जगह कोई असामान्य गिल्टी या उभार तो नहीं है। स्किन पर ऐसा कोई
कट या घाव, जो ठीक होने के बजाय बढ़ रहा हो। मुंह की जांच - मुंह के कैंसर
के लक्षण कैंसर होने के काफी पहले ही (प्रीकैंसरस स्टेज पर) दिखने लगते
हैं।
मुंह की जांच हर दिन करनी चाहिए, खासतौर पर उन्हें जो किसी भी
रूप में तंबाकू का सेवन करते हों, परमानंट ब्रसेल्स लगाते हों या गाल
चबाने की आदत हो। हफ्ते में एक बार (वे जो तंबाकू का सेवन करते हों या
परमानंट ब्रसेल्स लगाते हों) सुबह दांत साफ करने के बाद आईने के सामने नीचे
दिए गए तरीके से मुंह का मुआयना करें :1. मुंह बंद रखकर उंगलियों के सिरों
से पकड़कर दोनों होंठों को बारी-बारी से उठाएं और देखें। 2. दोनों होंठों
को हटाकर दांतों को साथ रखकर मसूढ़ों को सावधानी से देखें। 3. मुंह को पूरा
खोलकर तालू, गले के पास और जीभ के नीचे मुआयना करें। 4. गालों के भीतरी
हिस्सों को भी ठीक से देखें। इन सभी जगहों पर देखें कि कहीं कोई घाव, छाला,
सफेद या लाल चकता, गांठ या सूजन तो नहीं? मसूढ़ों से खून तो नहीं निकल
रहा? क्या जीभ बाहर निकालने में कोई अड़चन महसूस होती है? इसके अलावा, आवाज
में बदलाव, लगातार खांसी, निगलने में तकलीफ और गले में खराश पर भी ध्यान
दें।
ब्रेस्ट कैंसर20 साल की उम्र से हर महिला को हर महीने पीरियड
शुरू होने के 5-7 दिन के बीच किसी दिन (बुजुर्ग महिलाएं कोई एक तारीख तय कर
लें) खुद ब्रेस्ट की जांच करनी चाहिए। ब्रेस्ट और निपल को आइने में देखिए।
नीचे ब्रालाइन से ऊपर कॉलर बोन यानी गले के निचले सिरे तक और बगलों में भी
अपनी तीन अंगुलियां मिलाकर थोड़ा दबाकर देखें। उंगलियों का चलना नियमित
स्पीड और दिशाओं में हो। (यह जांच शॉवर में या लेट कर भी कर सकती
हैं।)देखें कि ये बदलाव तो नहीं हैं।1. ब्रेस्ट या निपल के आकार में कोई
असामान्य बदलाव2. कहीं कोई गांठ, जिसमें अक्सर दर्द न रहता हो। 3. कहीं भी
स्किन में सूजन, लाली, खिंचाव या गड्ढे पड़ना, संतरे के छिलके की तरह
छोटे-छोटे छेद या दाने बनना 4. एक ब्रेस्ट पर खून की नलियां ज्यादा साफ
दिखना 5. निपल भीतर को खिंचना या उसमें से दूध के अलावा कोई भी लिक्विड
निकलना 6. ब्रेस्ट में कहीं भी लगातार दर्द(नोट : जरूरी नहीं है कि इनमें
से एक या अनेक लक्षण होने पर कैंसर हो ही। ऐसे में सलाह है कि डॉक्टर से
जरूर राय लें।)
मशीनी जांच (इमेजिंग
: फाइबर ऑप्टिक या मैटल की महीन लचीली नली को किसी खास अंग के भीतर डालकर
उसके अंदरूनी हिस्सों को मॉनिटर पर देखा जाता है। इस नई तकनीक ने कैंसर की
जांच को आसान बना दिया है। जांचे जाने वाले अंग के आकार-प्रकार के आधार पर
यह मशीन कई तरह की होती है।
एंजियोग्रफी में किसी डाई को खून में डालकर फिर धमनी तंत्र को एक्स-रे प्लेट पर देखा जाता है।
सीटी स्कैन (कंप्यूटर असिस्टेड टोमोग्रफी) एक विशेष एक्स-रे तकनीक है, जिसमें संबंधित अंग की पतली-पतली तहों के कई एक्सरे लिए जाते हैं।
एमआरआई (मैग्नेटिक
रेजोनेंस इमेजिंग) में कैंसर की पहचान और उसके आकार और फैलाव की जांच के
लिए विशेष ताकतवर चुंबक के जरिए शरीर के चित्र लिए जाते हैं और उन्हें
मिलाकर पूरी तस्वीर बनाई जाती है।
रेडियो न्यूक्लाइड स्कैन
में खून में रेडियो सक्रिय आइसोटॉप डाले जाते हैं। जिन जगहों पर ट्यूमर
होता है, वहां इन आइसोटॉप्स का जमाव ज्यादा होता है, जो कि स्कैन में साफ
दिखाई पड़ते हैं। हड्डियों, लिवर, किडनी, फेफड़ों आदि की जांच के लिए इसका
इस्तेमाल किया जाता है।
मेमोग्रफी से
ब्रेस्ट कैंसर की जांच की जाती है। आम महिलाओं को 40 साल की उम्र में पहली
बार, 40 के बाद हर दो साल में एक बार और 50 के बाद हर साल मेमोग्राफी
करवाने की सलाह दी जाती है।
पेट स्कैन अपेक्षाकृत
नई तकनीक है। इसमें शरीर के भीतर रेडियो सक्रिय डाई प्रविष्ट कराकर ज्यादा
बारीकी से शरीर के भीतरी अंगों को कंप्यूटर के जरिए जांचा जा सकता है।
लैब में जांच : बायोप्सी - ठोस
गांठों की जांच के लिए प्रभावित टिश्यू का एक टुकड़ा या कुछ सेल्स लेकर
माइक्रोस्कोप से देखा जाता है कि वहां कैंसर है या नहीं। सेल्स खुरचकर जांच
- मुंह, महिलाओं की प्रजनन नली, मूत्र नली आदि की जांच के लिए किसी चपटे
उपकरण से सेल्स खुरच कर उन्हें माइक्रोस्कोप से जांचा जाता है।
पेप स्मियर - बच्चेदानी
के कैंसर की पहचान और संभावना जांचने के लिए की जानेवाली यह सस्ती, सरल और
पक्की जांच है। इसमें गर्भाशय में चपटा स्पैचुला डालकर सेल्स खुरचकर
निकाले जाते हैं और उनकी जांच की जाती है। विवाह के तीन साल बाद से हर दो
साल में यह जांच हर महिला को करवानी चाहिए।
एफएनएसी - इसमें
बारीक सूई से गांठ की भीतरी तहों को बाहर निकाला जाता है और जांच की जाती
है। बेहद छोटी या अस्पष्ट गांठों के लिए अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन गाइडेड
एफएनएसी की जाती है।
खून की जांच - खून
में ट्यूमर द्वारा छोड़े गए सेल्स पर मौजूद कुछ खास प्रोटीन यानी ट्यूमर
मार्कर की रासायनिक जांच करके कैंसर की मौजूदगी शुरुआती स्टेज में ही जांची
जा सकती है। ओवरी के कैंसर के लिए सीए 125, प्रोस्टेट के लिए पीएसए,
पैंक्रियाटिक कैंसर के लिए सीए 19-9 आदि।
हालांकि कैंसर के अलावा
भी कई वजहों से शरीर में इन प्रोटीनों की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे इसे
कैंसर के लिए निश्चित जांच नहीं माना जा सकता।
ये भी जानें : -
कैंसर छूत की बीमारी नहीं है, जो मरीज को छूने, उसके पास जाने, उसका सामान
इस्तेमाल करने, उसका खून या शरीर की कोई चोट या जख्म छूने से हो सकती है।
कैंसर डायबीटीज और हाई बीपी की तरह शरीर में खुद ही पैदा होनेवाली बीमारी
है। यह किसी इन्फेक्शन से नहीं होती, जिसका इलाज एंटीबायोटिक्स से हो सकता
है। जल्दी पता लगने और इलाज कराने पर यह ठीक हो सकता है। कैंसर के बाद भी
सामान्य जिंदगी जी जा सकती है।
कैंसर दिनों या महीनों में नहीं
होता। आमतौर पर इसकी गांठ बनने और किसी अंग में जमकर बैठने और विकसित होने
में बरसों लगते है। लेकिन इसका पता हमें बहुत बाद में लगता है। ज्यादातर
मामलों में कैंसर खानदानी बीमारी नहीं है। अनेक सहायक कारक मिलकर कैंसर की
स्थितियां पैदा करते हैं। ज्यादातर मामलों में कैंसर की शुरुआत में दर्द
बिल्कुल नहीं होता।
डॉक्टरों की गाइडलाइंस : 1.
पेड़-पौधों से बनीं रेशेदार चीजें जैसे फल, सब्जियां व अनाज खाइए। 2.
चर्बी वाले खानों से परहेज करें। मीट, तला हुआ खाना या ऊपर से घी-तेल लेने
से बचना चाहिए। 3. शराब का सेवन करें तो सीमित मात्रा में। 4. खाना इस तरह
पकाया और प्रीजर्व किया जाए कि उसमें कैंसरकारी तत्व, फफूंद व बैक्टीरिया
आदि न पैदा हो सके। 5. खाना बनाते और खाते वक्त अतिरिक्त नमक डालने से
बचें। 6. शरीर का वजन सामान्य से बहुत ज्यादा या कम न हो, इसके लिए कैलोरी
खाने और खर्च करने में संतुलन हो। ज्यादा कैलोरी वाला खाना कम मात्रा में
खाएं, नियमित कसरत करें। 7. विटामिंस और मिनरल्स की गोलियां संतुलित खाने
का विकल्प कभी नहीं हो सकतीं। विटामिन और मिनरल की प्रचुरता वाली खाने की
चीजें ही इस जरूरत को पूरा कर सकती हैं। 8. इन सबके साथ पर्यावरण से
कैंसरकारी जहरीले पदार्थों को हटाने, कैंसर की जल्द पहचान, तंबाकू का सेवन
किसी भी रूप में पूरी तरह खत्म करने, दर्द-निवारक और दूसरी दवाइयां खुद ही,
बेवजह खाते रहने की आदत छोड़ें। 9. कैंसर की जल्दी पहचान और जल्द और पूरा
इलाज ही इस बीमारी से छुटकारे की शर्तें हैं।
लाल, नीले, पीले और
जामुनी रंग की फल-सब्जियां जैसे टमाटर, जामुन, काले अंगूर, अमरूद, पपीता,
तरबूज आदि खाने से प्रोस्टेट कैंसर का खतरा कम हो जाता है। हल्दी ठीक सेल्स
को छेड़े बिना ट्यूमर के बीमार सेल्स की बढ़ोतरी को धीमा करती है। हरी चाय
स्किन, आंत ब्रेस्ट, पेट , लिवर और फेफड़ों के कैंसर को रोकने में मदद
करती है। चाय की पत्ती अगर प्रोसेस की गई हो तो उसके ज्यादातर गुण गायब हो
जाते हैं। सोया प्रॉडक्ट्स खाने से ब्रेस्ट और प्रोस्टेट कैंसर की आशंका
घटती है। बादाम, किशमिश जैसे ड्राई फ्रूट्स खाने से कैंसर का फैलाव रुकता
है। गोभी प्रजाति की सब्जियों जैसे कि पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली आदि में
कैंसर को परे हटाने का गुण होता है। रोज लहसुन खाएं। इससे शरीर की
प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है। रोज नींबू, संतरा या मौसमी में से
कम-से-कम एक फल खाएं। इससे मुंह, गले और पेट के कैंसर की आशंका कम हो जाती
है। जहां तक मुमकिन हो, ऑर्गेनिक फूड लें, यानी वे दालें, सब्जियां, फल
जिन्हें उपजाने में पेस्टीसाइड और केमिकल खादें इस्तेमाल नहीं हुई हों। आलू
चिप्स की जगह पॉप कॉर्न खाएं। पानी पर्याप्त मात्रा में पीएं। रोज 15 निट
तक सूर्य की रोशनी में बैठें। रोज एक्सरसाइज करें।
कैंसर का नाम सुनते
ही कुछ बरसों पहले तक मन में एक डर सा पैदा हो जाता था। वजह, इस बीमारी का
लाइलाज होना। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब न सिर्फ कैंसर का इलाज मुमकिन है,
बल्कि ठीक होने के बाद सामान्य रुप से जिंदगी को जीना कोई मुश्किल बात
नहीं। शर्त यही है कि शुरुआती स्टेज पर बीमारी की पहचान हो जाए और फिर उसका
मुकम्मल इलाज कराया जाए। वैसे, अगर कुछ चीजों से बचें और लाइफस्टाइल को
सुधार लें तो कैंसर के शिकंजे में आने की आशंका भी काफी कम हो जाती है।
कैंसर से बचाव और जांच के विभिन्न पहलुओं पर पेश है अनुराधा की स्पेशल
रिपोर्ट-
हमारे देश में पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर सबसे आम है।
इसके बाद पेट और मुंह के कैंसर आते हैं। महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के
मामले सबसे ज्यादा हैं। इसके बाद बच्चेदानी के मुंह के (सर्वाइकल) कैंसर का
नंबर आता है।ब्रिटिश ऐक्ट्रिस जेड गुडी की सर्वाइकल कैंसर से मौत ने एक
बार फिर इस बीमारी को केंद्र में ला दिया है। कुछ बरसों पहले तक कैंसर सबसे
जानलेवा बीमारी माना जाता था, लेकिन अब कैंसर का इलाज मुमकिन है। हालांकि
इसके लिए वक्त पर बीमारी की जांच और सही इलाज जरूरी है।
कैसे होता है कैंसर हमारे
शरीर की सबसे छोटी यूनिट (इकाई) सेल (कोशिका) है। शरीर में 100 से 1000
खरब सेल्स होते हैं। हर वक्त ढेरों सेल पैदा होते रहते हैं और पुराने व
खराब सेल खत्म भी होते रहते हैं। शरीर के किसी भी नॉर्मल टिश्यू में जितने
नए सेल्स पैदा होते रहते हैं, उतने ही पुराने सेल्स भी खत्म होते जाते हैं।
इस तरह संतुलन बना रहता है। कैंसर में यह संतुलन बिगड़ जाता है। उनमें
सेल्स की बेलगाम बढ़ोतरी होती रहती है।गलत लाइफस्टाइल और तंबाकू, शराब जैसी
चीजें किसी सेल के जेनेटिक कोड में बदलाव लाकर कैंसर पैदा कर देती हैं।
आमतौर पर जब किसी सेल में किसी वजह से खराबी आ जाती है तो खराब सेल अपने
जैसे खराब सेल्स पैदा नहीं करता। वह खुद को मार देता है। कैंसर सेल खराब
होने के बावजूद खुद को नहीं मारता, बल्कि अपने जैसे सेल बेतरतीब तरीके से
पैदा करता जाता है। वे सही सेल्स के कामकाज में रुकावट डालने लगते हैं।
कैंसर सेल एक जगह टिककर नहीं रहते। अपने मूल अंग से निकल कर शरीर में किसी
दूसरी जगह जमकर वहां भी अपने तरह के बीमार सेल्स का ढेर बना डालते हैं और
उस अंग के कामकाज में भी रुकावट आने लगती है। इन अधूरे बीमार सेल्स का समूह
ही कैंसर है। ट्यूमर बनने में महीनों, बरसों, बल्कि कई बार तो दशकों लग
जाते हैं। कम-से-कम एक अरब सेल्स के जमा होने पर ही ट्यूमर पहचानने लायक
आकार में आता है।
कैसे बचें कैंसर से 1. तंबाकू से रहें दूर- हमारे
देश में पुरुषों में 48 फीसदी और महिलाओं में 20 फीसदी कैंसर की इकलौती
वजह तंबाकू है। स्मोकिंग करने वालों के अलावा उसका धुआं लेनेवालों (पैसिव
स्मोकर्स) और प्रदूषित हवा में रहनेवालों को भी कैंसर का खतरा कई गुना बढ़
जाता है। तंबाकू या पान मसाला चबाने वालों को मुंह का कैंसर ज्यादा होता
है। तंबाकू में 45 तरह के कैंसरकारी तत्व पाए जाते हैं। पान-मसाले में
स्वाद और सुगंध के लिए दूसरी चीजें मिलाई जाती हैं, जिससे उसमें
कार्सिनोजेन्स (कैंसर पैदा करनेवाले तत्व) की तादाद बढ़ जाती है। गुटखा
(पान मसाला) चाहे तंबाकू वाला हो या बिना तंबाकू वाला, दोनों नुकसान करता
है। हां, तंबाकू वाला गुटखा ज्यादा नुकसानदायक है। गुटखे में मौजूद सुपारी
और कत्था भी सेफ नहीं हैं।
2. शराब से करें परहेज- रोज
ज्यादा शराब पीना, खाने की नली, गले, लिवर और ब्रेस्ट कैंसर को खुला
न्योता है। ड्रिंक में अल्कोहल की ज्यादा मात्रा और साथ में तंबाकू का सेवन
कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ा देता है।
3. सही डाइट लें- अनुमान है कि कैंसर से होनेवाली 30 फीसदी मौतों को सही खानपान के जरिए रोका जा सकता है।
4.नॉन वेज खाने से बचें- इंटरनैशनल
यूनियन अगेंस्ट कैंसर (यूआईसीसी) ने स्टडी में पाया कि ज्यादा चर्बी
खानेवाले लोगों में ब्रेस्ट, प्रोस्टेट, कोलोन और मलाशय (रेक्टम) के कैंसर
ज्यादा होते हैं। जर्मनी में 11 साल तक चली स्टडी में पाया गया कि वेज खाना
खानेवाले लोगों को आम लोगों के मुकाबले कैंसर कम हुआ। कैंसर सबसे कम उन
लोगों में हुआ, जिन्होंने 20 साल से नॉन-वेज नहीं खाया था। मीट को हजम करने
में ज्यादा एंजाइम और ज्यादा वक्त लगता है। ज्यादा देर तक बिना पचा खाना
पेट में एसिड और दूसरे जहरीले रसायन बनाते हैं, जिनसे कैंसर को बढ़ावा
मिलता है। फलों और सब्जियों में काफी एंटी-ऑक्सिडेंट होते हैं, जो कैंसर
पैदा करनेवाले रसायनों को नष्ट करने में अहम भूमिका अदा करते हैं। शाकाहार
में मौजूद विविध विटामिन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और कैंसर
सेल्स फल-फूल कर बीमारी नहीं पैदा कर पाते। पेजवेर्टिव और प्रोसेस्ड फूड कम
खाएं। तेज आंच पर देर तक पकी चीजें कम खाएं।
5. एक्स-रे ज्यादा न कराएं- एक्स-रे,
रेडियोथेरपी आदि हमारे शरीर में पहुंच कर सेल्स की रासायनिक गतिविधियों की
रफ्तार बढ़ा देते हैं, जिससे स्किन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि
एक्स-रे और रेडियोथेरपी से काफी कम मात्रा में रेडिएशन निकलता है और नुकसान
के मुकाबले इसके फायदे ज्यादा हैं।
6. कुछ खास तरह के वायरस और बैक्टीरिया से बचाव करें- ह्यूमन
पैपिलोमा वायरस से सर्वाइकल कैंसर हो सकता है। इससे बचने के उपाय हैं - एक
ही पार्टनर से संबंध व सफाई का ध्यान रखना। पेट में अल्सर बनानेवाले
हेलिकोबैक्टर पाइलोरी से पेट का कैंसर भी हो सकता है, इसलिए अल्सर का इलाज
वक्त पर करवाना जरूरी है।
7. ह़र्मोन थेरपी जरूरी होने पर ही लें- महिलाओं
में मेनोपॉज़ के दौरान होनेवाली तकलीफों के लिए इस्ट्रोजन और प्रोजेस्टिन
हॉरमोन थेरपी दी जाती है। हाल की स्टडी से पता चला है कि मेनोपॉजल हॉरमोन
थेरपी से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। हॉरमोन थेरपी लेने के पहले
इसके खतरों पर जरूर गौर कर लेना चाहिए।
8. धूप में ज्यादा देर रहने से बचें- सूरज
से निकलने वाली अल्ट्रावॉयलेट किरणों से स्किन कैंसर होने की आशंका बढ़
जाती है। तेज धूप में कम कपड़ों में ज्यादा देर नहीं रहना चाहिए। धूप में
निकलना ही हो तो पूरी बाजू के कपड़े, हैट और अल्ट्रावॉयलेट किरणें रोकने
वाला चश्मा पहनना चाहिए। कम-से-कम 15 एसपीएफ वाला सनस्क्रीन भी लगाना
चाहिए। वैसे, हम भारतीयों की स्किन में मेलानिन पिग्मेंट ज्यादा होता है,
जो अल्ट्रावॉयलेट किरणों को रोकता है। इसी स्किन को कैंसर का खतरा कम होता
है, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं होता। भारत में पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर
सबसे आम है, जिसकी सबसे बड़ी वजह लंबे अरसे तक सिगरेट या बीड़ी पीना है।
पैसिव स्मोकर्स को भी इसका खतरा बढ़ जाता है। इसलिए स्मोकिंग करनेवालों को
साल में एक बार सीटी स्कैन करा लेना चाहिए ताकि बीमारी जल्द पकड़ में आ
जाए।अपने देश में महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले सबसे ज्यादा हैं। इसे
समय पर पकड़ने के लिए 40 साल की उम्र में पहली बार, 40 के बाद हर दो साल
में एक बार और 50 के बाद हर साल मेमोग्राफी टेस्ट कराते रहना चाहिए।
कैंसर के शुरुआती लक्षण 1.
भूख बेहद कम या बिल्कुल न लगना 2. याददाश्त में कमी, देखने-सुनने में
दिक्कत, सिर में भारी दर्द 3. लगातार खांसी जो ठीक नहीं हो रही हो, थूक में
खून आना या आवाज में खरखराहट 4. मुंह खोलने, चबाने, निगलने या खाना हजम
करने में परेशानी 5. पाखाने या पेशाब में खून आना 6. बिना वजह खून या वजन
में बेहद कमी 7. ब्रेस्ट या शरीर में किसी अन्य जगह स्थायी गांठ बनना या
सूजन 8. किसी जगह से अचानक खून, पानी या मवाद निकलना 9. तिल या मस्से में
बदलाव या किसी घाव का न भरना 10. कमर या पीठ में लगातार दर्द ।
खुद कैसे जांचें: अगर
हम सचेत हों तो कई बार डॉक्टर से पहले ही खुद भी कैंसर का पता लगा सकते
हैं। स्किन, ब्रेस्ट, मुंह और टेस्टिकुलर कैंसर का पता खुद अपनी जांच करके
लगाया जा सकता है। स्किन की जांच - रोशनी वाली जगह में मिरर के सामने अपने
पूरे शरीर की स्किन, नाखूनों के नीचे, खोपड़ी, हथेली, पैरों के तलवे जैसी
छुपी जगहों का मुआयना करें। देखें कि कोई नया तिल, मस्सा या रंगीन चकता तो
नहीं उभर रहा है। पुराने तिल/मस्से के आकार-प्रकार या रंग में बदलाव हो रहा
हो। किसी जगह कोई असामान्य गिल्टी या उभार तो नहीं है। स्किन पर ऐसा कोई
कट या घाव, जो ठीक होने के बजाय बढ़ रहा हो। मुंह की जांच - मुंह के कैंसर
के लक्षण कैंसर होने के काफी पहले ही (प्रीकैंसरस स्टेज पर) दिखने लगते
हैं।
मुंह की जांच हर दिन करनी चाहिए, खासतौर पर उन्हें जो किसी भी
रूप में तंबाकू का सेवन करते हों, परमानंट ब्रसेल्स लगाते हों या गाल
चबाने की आदत हो। हफ्ते में एक बार (वे जो तंबाकू का सेवन करते हों या
परमानंट ब्रसेल्स लगाते हों) सुबह दांत साफ करने के बाद आईने के सामने नीचे
दिए गए तरीके से मुंह का मुआयना करें :1. मुंह बंद रखकर उंगलियों के सिरों
से पकड़कर दोनों होंठों को बारी-बारी से उठाएं और देखें। 2. दोनों होंठों
को हटाकर दांतों को साथ रखकर मसूढ़ों को सावधानी से देखें। 3. मुंह को पूरा
खोलकर तालू, गले के पास और जीभ के नीचे मुआयना करें। 4. गालों के भीतरी
हिस्सों को भी ठीक से देखें। इन सभी जगहों पर देखें कि कहीं कोई घाव, छाला,
सफेद या लाल चकता, गांठ या सूजन तो नहीं? मसूढ़ों से खून तो नहीं निकल
रहा? क्या जीभ बाहर निकालने में कोई अड़चन महसूस होती है? इसके अलावा, आवाज
में बदलाव, लगातार खांसी, निगलने में तकलीफ और गले में खराश पर भी ध्यान
दें।
ब्रेस्ट कैंसर20 साल की उम्र से हर महिला को हर महीने पीरियड
शुरू होने के 5-7 दिन के बीच किसी दिन (बुजुर्ग महिलाएं कोई एक तारीख तय कर
लें) खुद ब्रेस्ट की जांच करनी चाहिए। ब्रेस्ट और निपल को आइने में देखिए।
नीचे ब्रालाइन से ऊपर कॉलर बोन यानी गले के निचले सिरे तक और बगलों में भी
अपनी तीन अंगुलियां मिलाकर थोड़ा दबाकर देखें। उंगलियों का चलना नियमित
स्पीड और दिशाओं में हो। (यह जांच शॉवर में या लेट कर भी कर सकती
हैं।)देखें कि ये बदलाव तो नहीं हैं।1. ब्रेस्ट या निपल के आकार में कोई
असामान्य बदलाव2. कहीं कोई गांठ, जिसमें अक्सर दर्द न रहता हो। 3. कहीं भी
स्किन में सूजन, लाली, खिंचाव या गड्ढे पड़ना, संतरे के छिलके की तरह
छोटे-छोटे छेद या दाने बनना 4. एक ब्रेस्ट पर खून की नलियां ज्यादा साफ
दिखना 5. निपल भीतर को खिंचना या उसमें से दूध के अलावा कोई भी लिक्विड
निकलना 6. ब्रेस्ट में कहीं भी लगातार दर्द(नोट : जरूरी नहीं है कि इनमें
से एक या अनेक लक्षण होने पर कैंसर हो ही। ऐसे में सलाह है कि डॉक्टर से
जरूर राय लें।)
मशीनी जांच (इमेजिंग
: फाइबर ऑप्टिक या मैटल की महीन लचीली नली को किसी खास अंग के भीतर डालकर
उसके अंदरूनी हिस्सों को मॉनिटर पर देखा जाता है। इस नई तकनीक ने कैंसर की
जांच को आसान बना दिया है। जांचे जाने वाले अंग के आकार-प्रकार के आधार पर
यह मशीन कई तरह की होती है।
एंजियोग्रफी में किसी डाई को खून में डालकर फिर धमनी तंत्र को एक्स-रे प्लेट पर देखा जाता है।
सीटी स्कैन (कंप्यूटर असिस्टेड टोमोग्रफी) एक विशेष एक्स-रे तकनीक है, जिसमें संबंधित अंग की पतली-पतली तहों के कई एक्सरे लिए जाते हैं।
एमआरआई (मैग्नेटिक
रेजोनेंस इमेजिंग) में कैंसर की पहचान और उसके आकार और फैलाव की जांच के
लिए विशेष ताकतवर चुंबक के जरिए शरीर के चित्र लिए जाते हैं और उन्हें
मिलाकर पूरी तस्वीर बनाई जाती है।
रेडियो न्यूक्लाइड स्कैन
में खून में रेडियो सक्रिय आइसोटॉप डाले जाते हैं। जिन जगहों पर ट्यूमर
होता है, वहां इन आइसोटॉप्स का जमाव ज्यादा होता है, जो कि स्कैन में साफ
दिखाई पड़ते हैं। हड्डियों, लिवर, किडनी, फेफड़ों आदि की जांच के लिए इसका
इस्तेमाल किया जाता है।
मेमोग्रफी से
ब्रेस्ट कैंसर की जांच की जाती है। आम महिलाओं को 40 साल की उम्र में पहली
बार, 40 के बाद हर दो साल में एक बार और 50 के बाद हर साल मेमोग्राफी
करवाने की सलाह दी जाती है।
पेट स्कैन अपेक्षाकृत
नई तकनीक है। इसमें शरीर के भीतर रेडियो सक्रिय डाई प्रविष्ट कराकर ज्यादा
बारीकी से शरीर के भीतरी अंगों को कंप्यूटर के जरिए जांचा जा सकता है।
लैब में जांच : बायोप्सी - ठोस
गांठों की जांच के लिए प्रभावित टिश्यू का एक टुकड़ा या कुछ सेल्स लेकर
माइक्रोस्कोप से देखा जाता है कि वहां कैंसर है या नहीं। सेल्स खुरचकर जांच
- मुंह, महिलाओं की प्रजनन नली, मूत्र नली आदि की जांच के लिए किसी चपटे
उपकरण से सेल्स खुरच कर उन्हें माइक्रोस्कोप से जांचा जाता है।
पेप स्मियर - बच्चेदानी
के कैंसर की पहचान और संभावना जांचने के लिए की जानेवाली यह सस्ती, सरल और
पक्की जांच है। इसमें गर्भाशय में चपटा स्पैचुला डालकर सेल्स खुरचकर
निकाले जाते हैं और उनकी जांच की जाती है। विवाह के तीन साल बाद से हर दो
साल में यह जांच हर महिला को करवानी चाहिए।
एफएनएसी - इसमें
बारीक सूई से गांठ की भीतरी तहों को बाहर निकाला जाता है और जांच की जाती
है। बेहद छोटी या अस्पष्ट गांठों के लिए अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन गाइडेड
एफएनएसी की जाती है।
खून की जांच - खून
में ट्यूमर द्वारा छोड़े गए सेल्स पर मौजूद कुछ खास प्रोटीन यानी ट्यूमर
मार्कर की रासायनिक जांच करके कैंसर की मौजूदगी शुरुआती स्टेज में ही जांची
जा सकती है। ओवरी के कैंसर के लिए सीए 125, प्रोस्टेट के लिए पीएसए,
पैंक्रियाटिक कैंसर के लिए सीए 19-9 आदि।
हालांकि कैंसर के अलावा
भी कई वजहों से शरीर में इन प्रोटीनों की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे इसे
कैंसर के लिए निश्चित जांच नहीं माना जा सकता।
ये भी जानें : -
कैंसर छूत की बीमारी नहीं है, जो मरीज को छूने, उसके पास जाने, उसका सामान
इस्तेमाल करने, उसका खून या शरीर की कोई चोट या जख्म छूने से हो सकती है।
कैंसर डायबीटीज और हाई बीपी की तरह शरीर में खुद ही पैदा होनेवाली बीमारी
है। यह किसी इन्फेक्शन से नहीं होती, जिसका इलाज एंटीबायोटिक्स से हो सकता
है। जल्दी पता लगने और इलाज कराने पर यह ठीक हो सकता है। कैंसर के बाद भी
सामान्य जिंदगी जी जा सकती है।
कैंसर दिनों या महीनों में नहीं
होता। आमतौर पर इसकी गांठ बनने और किसी अंग में जमकर बैठने और विकसित होने
में बरसों लगते है। लेकिन इसका पता हमें बहुत बाद में लगता है। ज्यादातर
मामलों में कैंसर खानदानी बीमारी नहीं है। अनेक सहायक कारक मिलकर कैंसर की
स्थितियां पैदा करते हैं। ज्यादातर मामलों में कैंसर की शुरुआत में दर्द
बिल्कुल नहीं होता।
डॉक्टरों की गाइडलाइंस : 1.
पेड़-पौधों से बनीं रेशेदार चीजें जैसे फल, सब्जियां व अनाज खाइए। 2.
चर्बी वाले खानों से परहेज करें। मीट, तला हुआ खाना या ऊपर से घी-तेल लेने
से बचना चाहिए। 3. शराब का सेवन करें तो सीमित मात्रा में। 4. खाना इस तरह
पकाया और प्रीजर्व किया जाए कि उसमें कैंसरकारी तत्व, फफूंद व बैक्टीरिया
आदि न पैदा हो सके। 5. खाना बनाते और खाते वक्त अतिरिक्त नमक डालने से
बचें। 6. शरीर का वजन सामान्य से बहुत ज्यादा या कम न हो, इसके लिए कैलोरी
खाने और खर्च करने में संतुलन हो। ज्यादा कैलोरी वाला खाना कम मात्रा में
खाएं, नियमित कसरत करें। 7. विटामिंस और मिनरल्स की गोलियां संतुलित खाने
का विकल्प कभी नहीं हो सकतीं। विटामिन और मिनरल की प्रचुरता वाली खाने की
चीजें ही इस जरूरत को पूरा कर सकती हैं। 8. इन सबके साथ पर्यावरण से
कैंसरकारी जहरीले पदार्थों को हटाने, कैंसर की जल्द पहचान, तंबाकू का सेवन
किसी भी रूप में पूरी तरह खत्म करने, दर्द-निवारक और दूसरी दवाइयां खुद ही,
बेवजह खाते रहने की आदत छोड़ें। 9. कैंसर की जल्दी पहचान और जल्द और पूरा
इलाज ही इस बीमारी से छुटकारे की शर्तें हैं।
लाल, नीले, पीले और
जामुनी रंग की फल-सब्जियां जैसे टमाटर, जामुन, काले अंगूर, अमरूद, पपीता,
तरबूज आदि खाने से प्रोस्टेट कैंसर का खतरा कम हो जाता है। हल्दी ठीक सेल्स
को छेड़े बिना ट्यूमर के बीमार सेल्स की बढ़ोतरी को धीमा करती है। हरी चाय
स्किन, आंत ब्रेस्ट, पेट , लिवर और फेफड़ों के कैंसर को रोकने में मदद
करती है। चाय की पत्ती अगर प्रोसेस की गई हो तो उसके ज्यादातर गुण गायब हो
जाते हैं। सोया प्रॉडक्ट्स खाने से ब्रेस्ट और प्रोस्टेट कैंसर की आशंका
घटती है। बादाम, किशमिश जैसे ड्राई फ्रूट्स खाने से कैंसर का फैलाव रुकता
है। गोभी प्रजाति की सब्जियों जैसे कि पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली आदि में
कैंसर को परे हटाने का गुण होता है। रोज लहसुन खाएं। इससे शरीर की
प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है। रोज नींबू, संतरा या मौसमी में से
कम-से-कम एक फल खाएं। इससे मुंह, गले और पेट के कैंसर की आशंका कम हो जाती
है। जहां तक मुमकिन हो, ऑर्गेनिक फूड लें, यानी वे दालें, सब्जियां, फल
जिन्हें उपजाने में पेस्टीसाइड और केमिकल खादें इस्तेमाल नहीं हुई हों। आलू
चिप्स की जगह पॉप कॉर्न खाएं। पानी पर्याप्त मात्रा में पीएं। रोज 15 निट
तक सूर्य की रोशनी में बैठें। रोज एक्सरसाइज करें।
कैंसर का नाम सुनते
ही कुछ बरसों पहले तक मन में एक डर सा पैदा हो जाता था। वजह, इस बीमारी का
लाइलाज होना। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब न सिर्फ कैंसर का इलाज मुमकिन है,
बल्कि ठीक होने के बाद सामान्य रुप से जिंदगी को जीना कोई मुश्किल बात
नहीं। शर्त यही है कि शुरुआती स्टेज पर बीमारी की पहचान हो जाए और फिर उसका
मुकम्मल इलाज कराया जाए। वैसे, अगर कुछ चीजों से बचें और लाइफस्टाइल को
सुधार लें तो कैंसर के शिकंजे में आने की आशंका भी काफी कम हो जाती है।
कैंसर से बचाव और जांच के विभिन्न पहलुओं पर पेश है अनुराधा की स्पेशल
रिपोर्ट-
हमारे देश में पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर सबसे आम है।
इसके बाद पेट और मुंह के कैंसर आते हैं। महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के
मामले सबसे ज्यादा हैं। इसके बाद बच्चेदानी के मुंह के (सर्वाइकल) कैंसर का
नंबर आता है।ब्रिटिश ऐक्ट्रिस जेड गुडी की सर्वाइकल कैंसर से मौत ने एक
बार फिर इस बीमारी को केंद्र में ला दिया है। कुछ बरसों पहले तक कैंसर सबसे
जानलेवा बीमारी माना जाता था, लेकिन अब कैंसर का इलाज मुमकिन है। हालांकि
इसके लिए वक्त पर बीमारी की जांच और सही इलाज जरूरी है।
कैसे होता है कैंसर हमारे
शरीर की सबसे छोटी यूनिट (इकाई) सेल (कोशिका) है। शरीर में 100 से 1000
खरब सेल्स होते हैं। हर वक्त ढेरों सेल पैदा होते रहते हैं और पुराने व
खराब सेल खत्म भी होते रहते हैं। शरीर के किसी भी नॉर्मल टिश्यू में जितने
नए सेल्स पैदा होते रहते हैं, उतने ही पुराने सेल्स भी खत्म होते जाते हैं।
इस तरह संतुलन बना रहता है। कैंसर में यह संतुलन बिगड़ जाता है। उनमें
सेल्स की बेलगाम बढ़ोतरी होती रहती है।गलत लाइफस्टाइल और तंबाकू, शराब जैसी
चीजें किसी सेल के जेनेटिक कोड में बदलाव लाकर कैंसर पैदा कर देती हैं।
आमतौर पर जब किसी सेल में किसी वजह से खराबी आ जाती है तो खराब सेल अपने
जैसे खराब सेल्स पैदा नहीं करता। वह खुद को मार देता है। कैंसर सेल खराब
होने के बावजूद खुद को नहीं मारता, बल्कि अपने जैसे सेल बेतरतीब तरीके से
पैदा करता जाता है। वे सही सेल्स के कामकाज में रुकावट डालने लगते हैं।
कैंसर सेल एक जगह टिककर नहीं रहते। अपने मूल अंग से निकल कर शरीर में किसी
दूसरी जगह जमकर वहां भी अपने तरह के बीमार सेल्स का ढेर बना डालते हैं और
उस अंग के कामकाज में भी रुकावट आने लगती है। इन अधूरे बीमार सेल्स का समूह
ही कैंसर है। ट्यूमर बनने में महीनों, बरसों, बल्कि कई बार तो दशकों लग
जाते हैं। कम-से-कम एक अरब सेल्स के जमा होने पर ही ट्यूमर पहचानने लायक
आकार में आता है।
कैसे बचें कैंसर से 1. तंबाकू से रहें दूर- हमारे
देश में पुरुषों में 48 फीसदी और महिलाओं में 20 फीसदी कैंसर की इकलौती
वजह तंबाकू है। स्मोकिंग करने वालों के अलावा उसका धुआं लेनेवालों (पैसिव
स्मोकर्स) और प्रदूषित हवा में रहनेवालों को भी कैंसर का खतरा कई गुना बढ़
जाता है। तंबाकू या पान मसाला चबाने वालों को मुंह का कैंसर ज्यादा होता
है। तंबाकू में 45 तरह के कैंसरकारी तत्व पाए जाते हैं। पान-मसाले में
स्वाद और सुगंध के लिए दूसरी चीजें मिलाई जाती हैं, जिससे उसमें
कार्सिनोजेन्स (कैंसर पैदा करनेवाले तत्व) की तादाद बढ़ जाती है। गुटखा
(पान मसाला) चाहे तंबाकू वाला हो या बिना तंबाकू वाला, दोनों नुकसान करता
है। हां, तंबाकू वाला गुटखा ज्यादा नुकसानदायक है। गुटखे में मौजूद सुपारी
और कत्था भी सेफ नहीं हैं।
2. शराब से करें परहेज- रोज
ज्यादा शराब पीना, खाने की नली, गले, लिवर और ब्रेस्ट कैंसर को खुला
न्योता है। ड्रिंक में अल्कोहल की ज्यादा मात्रा और साथ में तंबाकू का सेवन
कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ा देता है।
3. सही डाइट लें- अनुमान है कि कैंसर से होनेवाली 30 फीसदी मौतों को सही खानपान के जरिए रोका जा सकता है।
4.नॉन वेज खाने से बचें- इंटरनैशनल
यूनियन अगेंस्ट कैंसर (यूआईसीसी) ने स्टडी में पाया कि ज्यादा चर्बी
खानेवाले लोगों में ब्रेस्ट, प्रोस्टेट, कोलोन और मलाशय (रेक्टम) के कैंसर
ज्यादा होते हैं। जर्मनी में 11 साल तक चली स्टडी में पाया गया कि वेज खाना
खानेवाले लोगों को आम लोगों के मुकाबले कैंसर कम हुआ। कैंसर सबसे कम उन
लोगों में हुआ, जिन्होंने 20 साल से नॉन-वेज नहीं खाया था। मीट को हजम करने
में ज्यादा एंजाइम और ज्यादा वक्त लगता है। ज्यादा देर तक बिना पचा खाना
पेट में एसिड और दूसरे जहरीले रसायन बनाते हैं, जिनसे कैंसर को बढ़ावा
मिलता है। फलों और सब्जियों में काफी एंटी-ऑक्सिडेंट होते हैं, जो कैंसर
पैदा करनेवाले रसायनों को नष्ट करने में अहम भूमिका अदा करते हैं। शाकाहार
में मौजूद विविध विटामिन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और कैंसर
सेल्स फल-फूल कर बीमारी नहीं पैदा कर पाते। पेजवेर्टिव और प्रोसेस्ड फूड कम
खाएं। तेज आंच पर देर तक पकी चीजें कम खाएं।
5. एक्स-रे ज्यादा न कराएं- एक्स-रे,
रेडियोथेरपी आदि हमारे शरीर में पहुंच कर सेल्स की रासायनिक गतिविधियों की
रफ्तार बढ़ा देते हैं, जिससे स्किन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि
एक्स-रे और रेडियोथेरपी से काफी कम मात्रा में रेडिएशन निकलता है और नुकसान
के मुकाबले इसके फायदे ज्यादा हैं।
6. कुछ खास तरह के वायरस और बैक्टीरिया से बचाव करें- ह्यूमन
पैपिलोमा वायरस से सर्वाइकल कैंसर हो सकता है। इससे बचने के उपाय हैं - एक
ही पार्टनर से संबंध व सफाई का ध्यान रखना। पेट में अल्सर बनानेवाले
हेलिकोबैक्टर पाइलोरी से पेट का कैंसर भी हो सकता है, इसलिए अल्सर का इलाज
वक्त पर करवाना जरूरी है।
7. ह़र्मोन थेरपी जरूरी होने पर ही लें- महिलाओं
में मेनोपॉज़ के दौरान होनेवाली तकलीफों के लिए इस्ट्रोजन और प्रोजेस्टिन
हॉरमोन थेरपी दी जाती है। हाल की स्टडी से पता चला है कि मेनोपॉजल हॉरमोन
थेरपी से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। हॉरमोन थेरपी लेने के पहले
इसके खतरों पर जरूर गौर कर लेना चाहिए।
8. धूप में ज्यादा देर रहने से बचें- सूरज
से निकलने वाली अल्ट्रावॉयलेट किरणों से स्किन कैंसर होने की आशंका बढ़
जाती है। तेज धूप में कम कपड़ों में ज्यादा देर नहीं रहना चाहिए। धूप में
निकलना ही हो तो पूरी बाजू के कपड़े, हैट और अल्ट्रावॉयलेट किरणें रोकने
वाला चश्मा पहनना चाहिए। कम-से-कम 15 एसपीएफ वाला सनस्क्रीन भी लगाना
चाहिए। वैसे, हम भारतीयों की स्किन में मेलानिन पिग्मेंट ज्यादा होता है,
जो अल्ट्रावॉयलेट किरणों को रोकता है। इसी स्किन को कैंसर का खतरा कम होता
है, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं होता। भारत में पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर
सबसे आम है, जिसकी सबसे बड़ी वजह लंबे अरसे तक सिगरेट या बीड़ी पीना है।
पैसिव स्मोकर्स को भी इसका खतरा बढ़ जाता है। इसलिए स्मोकिंग करनेवालों को
साल में एक बार सीटी स्कैन करा लेना चाहिए ताकि बीमारी जल्द पकड़ में आ
जाए।अपने देश में महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले सबसे ज्यादा हैं। इसे
समय पर पकड़ने के लिए 40 साल की उम्र में पहली बार, 40 के बाद हर दो साल
में एक बार और 50 के बाद हर साल मेमोग्राफी टेस्ट कराते रहना चाहिए।
कैंसर के शुरुआती लक्षण 1.
भूख बेहद कम या बिल्कुल न लगना 2. याददाश्त में कमी, देखने-सुनने में
दिक्कत, सिर में भारी दर्द 3. लगातार खांसी जो ठीक नहीं हो रही हो, थूक में
खून आना या आवाज में खरखराहट 4. मुंह खोलने, चबाने, निगलने या खाना हजम
करने में परेशानी 5. पाखाने या पेशाब में खून आना 6. बिना वजह खून या वजन
में बेहद कमी 7. ब्रेस्ट या शरीर में किसी अन्य जगह स्थायी गांठ बनना या
सूजन 8. किसी जगह से अचानक खून, पानी या मवाद निकलना 9. तिल या मस्से में
बदलाव या किसी घाव का न भरना 10. कमर या पीठ में लगातार दर्द ।
खुद कैसे जांचें: अगर
हम सचेत हों तो कई बार डॉक्टर से पहले ही खुद भी कैंसर का पता लगा सकते
हैं। स्किन, ब्रेस्ट, मुंह और टेस्टिकुलर कैंसर का पता खुद अपनी जांच करके
लगाया जा सकता है। स्किन की जांच - रोशनी वाली जगह में मिरर के सामने अपने
पूरे शरीर की स्किन, नाखूनों के नीचे, खोपड़ी, हथेली, पैरों के तलवे जैसी
छुपी जगहों का मुआयना करें। देखें कि कोई नया तिल, मस्सा या रंगीन चकता तो
नहीं उभर रहा है। पुराने तिल/मस्से के आकार-प्रकार या रंग में बदलाव हो रहा
हो। किसी जगह कोई असामान्य गिल्टी या उभार तो नहीं है। स्किन पर ऐसा कोई
कट या घाव, जो ठीक होने के बजाय बढ़ रहा हो। मुंह की जांच - मुंह के कैंसर
के लक्षण कैंसर होने के काफी पहले ही (प्रीकैंसरस स्टेज पर) दिखने लगते
हैं।
मुंह की जांच हर दिन करनी चाहिए, खासतौर पर उन्हें जो किसी भी
रूप में तंबाकू का सेवन करते हों, परमानंट ब्रसेल्स लगाते हों या गाल
चबाने की आदत हो। हफ्ते में एक बार (वे जो तंबाकू का सेवन करते हों या
परमानंट ब्रसेल्स लगाते हों) सुबह दांत साफ करने के बाद आईने के सामने नीचे
दिए गए तरीके से मुंह का मुआयना करें :1. मुंह बंद रखकर उंगलियों के सिरों
से पकड़कर दोनों होंठों को बारी-बारी से उठाएं और देखें। 2. दोनों होंठों
को हटाकर दांतों को साथ रखकर मसूढ़ों को सावधानी से देखें। 3. मुंह को पूरा
खोलकर तालू, गले के पास और जीभ के नीचे मुआयना करें। 4. गालों के भीतरी
हिस्सों को भी ठीक से देखें। इन सभी जगहों पर देखें कि कहीं कोई घाव, छाला,
सफेद या लाल चकता, गांठ या सूजन तो नहीं? मसूढ़ों से खून तो नहीं निकल
रहा? क्या जीभ बाहर निकालने में कोई अड़चन महसूस होती है? इसके अलावा, आवाज
में बदलाव, लगातार खांसी, निगलने में तकलीफ और गले में खराश पर भी ध्यान
दें।
ब्रेस्ट कैंसर20 साल की उम्र से हर महिला को हर महीने पीरियड
शुरू होने के 5-7 दिन के बीच किसी दिन (बुजुर्ग महिलाएं कोई एक तारीख तय कर
लें) खुद ब्रेस्ट की जांच करनी चाहिए। ब्रेस्ट और निपल को आइने में देखिए।
नीचे ब्रालाइन से ऊपर कॉलर बोन यानी गले के निचले सिरे तक और बगलों में भी
अपनी तीन अंगुलियां मिलाकर थोड़ा दबाकर देखें। उंगलियों का चलना नियमित
स्पीड और दिशाओं में हो। (यह जांच शॉवर में या लेट कर भी कर सकती
हैं।)देखें कि ये बदलाव तो नहीं हैं।1. ब्रेस्ट या निपल के आकार में कोई
असामान्य बदलाव2. कहीं कोई गांठ, जिसमें अक्सर दर्द न रहता हो। 3. कहीं भी
स्किन में सूजन, लाली, खिंचाव या गड्ढे पड़ना, संतरे के छिलके की तरह
छोटे-छोटे छेद या दाने बनना 4. एक ब्रेस्ट पर खून की नलियां ज्यादा साफ
दिखना 5. निपल भीतर को खिंचना या उसमें से दूध के अलावा कोई भी लिक्विड
निकलना 6. ब्रेस्ट में कहीं भी लगातार दर्द(नोट : जरूरी नहीं है कि इनमें
से एक या अनेक लक्षण होने पर कैंसर हो ही। ऐसे में सलाह है कि डॉक्टर से
जरूर राय लें।)
मशीनी जांच (इमेजिंग
: फाइबर ऑप्टिक या मैटल की महीन लचीली नली को किसी खास अंग के भीतर डालकर
उसके अंदरूनी हिस्सों को मॉनिटर पर देखा जाता है। इस नई तकनीक ने कैंसर की
जांच को आसान बना दिया है। जांचे जाने वाले अंग के आकार-प्रकार के आधार पर
यह मशीन कई तरह की होती है।
एंजियोग्रफी में किसी डाई को खून में डालकर फिर धमनी तंत्र को एक्स-रे प्लेट पर देखा जाता है।
सीटी स्कैन (कंप्यूटर असिस्टेड टोमोग्रफी) एक विशेष एक्स-रे तकनीक है, जिसमें संबंधित अंग की पतली-पतली तहों के कई एक्सरे लिए जाते हैं।
एमआरआई (मैग्नेटिक
रेजोनेंस इमेजिंग) में कैंसर की पहचान और उसके आकार और फैलाव की जांच के
लिए विशेष ताकतवर चुंबक के जरिए शरीर के चित्र लिए जाते हैं और उन्हें
मिलाकर पूरी तस्वीर बनाई जाती है।
रेडियो न्यूक्लाइड स्कैन
में खून में रेडियो सक्रिय आइसोटॉप डाले जाते हैं। जिन जगहों पर ट्यूमर
होता है, वहां इन आइसोटॉप्स का जमाव ज्यादा होता है, जो कि स्कैन में साफ
दिखाई पड़ते हैं। हड्डियों, लिवर, किडनी, फेफड़ों आदि की जांच के लिए इसका
इस्तेमाल किया जाता है।
मेमोग्रफी से
ब्रेस्ट कैंसर की जांच की जाती है। आम महिलाओं को 40 साल की उम्र में पहली
बार, 40 के बाद हर दो साल में एक बार और 50 के बाद हर साल मेमोग्राफी
करवाने की सलाह दी जाती है।
पेट स्कैन अपेक्षाकृत नई तकनीक
है। इसमें शरीर के भीतर रेडियो सक्रिय डाई प्रविष्ट कराकर ज्यादा बारीकी से
शरीर के भीतरी अंगों को कंप्यूटर के जरिए जांचा जा सकता है।
लैब में जांच : बायोप्सी - ठोस
गांठों की जांच के लिए प्रभावित टिश्यू का एक टुकड़ा या कुछ सेल्स लेकर
माइक्रोस्कोप से देखा जाता है कि वहां कैंसर है या नहीं। सेल्स खुरचकर जांच
- मुंह, महिलाओं की प्रजनन नली, मूत्र नली आदि की जांच के लिए किसी चपटे
उपकरण से सेल्स खुरच कर उन्हें माइक्रोस्कोप से जांचा जाता है।
पेप स्मियर - बच्चेदानी
के कैंसर की पहचान और संभावना जांचने के लिए की जानेवाली यह सस्ती, सरल और
पक्की जांच है। इसमें गर्भाशय में चपटा स्पैचुला डालकर सेल्स खुरचकर
निकाले जाते हैं और उनकी जांच की जाती है। विवाह के तीन साल बाद से हर दो
साल में यह जांच हर महिला को करवानी चाहिए।
एफएनएसी - इसमें
बारीक सूई से गांठ की भीतरी तहों को बाहर निकाला जाता है और जांच की जाती
है। बेहद छोटी या अस्पष्ट गांठों के लिए अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन गाइडेड
एफएनएसी की जाती है।
खून की जांच - खून
में ट्यूमर द्वारा छोड़े गए सेल्स पर मौजूद कुछ खास प्रोटीन यानी ट्यूमर
मार्कर की रासायनिक जांच करके कैंसर की मौजूदगी शुरुआती स्टेज में ही जांची
जा सकती है। ओवरी के कैंसर के लिए सीए 125, प्रोस्टेट के लिए पीएसए,
पैंक्रियाटिक कैंसर के लिए सीए 19-9 आदि।
हालांकि कैंसर के अलावा
भी कई वजहों से शरीर में इन प्रोटीनों की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे इसे
कैंसर के लिए निश्चित जांच नहीं माना जा सकता।
ये भी जानें : -
कैंसर छूत की बीमारी नहीं है, जो मरीज को छूने, उसके पास जाने, उसका सामान
इस्तेमाल करने, उसका खून या शरीर की कोई चोट या जख्म छूने से हो सकती है।
कैंसर डायबीटीज और हाई बीपी की तरह शरीर में खुद ही पैदा होनेवाली बीमारी
है। यह किसी इन्फेक्शन से नहीं होती, जिसका इलाज एंटीबायोटिक्स से हो सकता
है। जल्दी पता लगने और इलाज कराने पर यह ठीक हो सकता है। कैंसर के बाद भी
सामान्य जिंदगी जी जा सकती है।
कैंसर दिनों या महीनों में नहीं होता। आमतौर पर इसकी गांठ बनने और किसी
अंग में जमकर बैठने और विकसित होने में बरसों लगते है। लेकिन इसका पता
हमें बहुत बाद में लगता है। ज्यादातर मामलों में कैंसर खानदानी बीमारी नहीं
है। अनेक सहायक कारक मिलकर कैंसर की स्थितियां पैदा करते हैं। ज्यादातर
मामलों में कैंसर की शुरुआत में दर्द बिल्कुल नहीं होता।
डॉक्टरों की गाइडलाइंस : 1.
पेड़-पौधों से बनीं रेशेदार चीजें जैसे फल, सब्जियां व अनाज खाइए। 2.
चर्बी वाले खानों से परहेज करें। मीट, तला हुआ खाना या ऊपर से घी-तेल लेने
से बचना चाहिए। 3. शराब का सेवन करें तो सीमित मात्रा में। 4. खाना इस तरह
पकाया और प्रीजर्व किया जाए कि उसमें कैंसरकारी तत्व, फफूंद व बैक्टीरिया
आदि न पैदा हो सके। 5. खाना बनाते और खाते वक्त अतिरिक्त नमक डालने से
बचें। 6. शरीर का वजन सामान्य से बहुत ज्यादा या कम न हो, इसके लिए कैलोरी
खाने और खर्च करने में संतुलन हो। ज्यादा कैलोरी वाला खाना कम मात्रा में
खाएं, नियमित कसरत करें। 7. विटामिंस और मिनरल्स की गोलियां संतुलित खाने
का विकल्प कभी नहीं हो सकतीं। विटामिन और मिनरल की प्रचुरता वाली खाने की
चीजें ही इस जरूरत को पूरा कर सकती हैं। 8. इन सबके साथ पर्यावरण से
कैंसरकारी जहरीले पदार्थों को हटाने, कैंसर की जल्द पहचान, तंबाकू का सेवन
किसी भी रूप में पूरी तरह खत्म करने, दर्द-निवारक और दूसरी दवाइयां खुद ही,
बेवजह खाते रहने की आदत छोड़ें। 9. कैंसर की जल्दी पहचान और जल्द और पूरा
इलाज ही इस बीमारी से छुटकारे की शर्तें हैं।
लाल, नीले, पीले और
जामुनी रंग की फल-सब्जियां जैसे टमाटर, जामुन, काले अंगूर, अमरूद, पपीता,
तरबूज आदि खाने से प्रोस्टेट कैंसर का खतरा कम हो जाता है। हल्दी ठीक सेल्स
को छेड़े बिना ट्यूमर के बीमार सेल्स की बढ़ोतरी को धीमा करती है। हरी चाय
स्किन, आंत ब्रेस्ट, पेट , लिवर और फेफड़ों के कैंसर को रोकने में मदद
करती है। चाय की पत्ती अगर प्रोसेस की गई हो तो उसके ज्यादातर गुण गायब हो
जाते हैं। सोया प्रॉडक्ट्स खाने से ब्रेस्ट और प्रोस्टेट कैंसर की आशंका
घटती है। बादाम, किशमिश जैसे ड्राई फ्रूट्स खाने से कैंसर का फैलाव रुकता
है। गोभी प्रजाति की सब्जियों जैसे कि पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली आदि में
कैंसर को परे हटाने का गुण होता है। रोज लहसुन खाएं। इससे शरीर की
प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है। रोज नींबू, संतरा या मौसमी में से
कम-से-कम एक फल खाएं। इससे मुंह, गले और पेट के कैंसर की आशंका कम हो जाती
है। जहां तक मुमकिन हो, ऑर्गेनिक फूड लें, यानी वे दालें, सब्जियां, फल
जिन्हें उपजाने में पेस्टीसाइड और केमिकल खादें इस्तेमाल नहीं हुई हों। आलू
चिप्स की जगह पॉप कॉर्न खाएं। पानी पर्याप्त मात्रा में पीएं। रोज 15 निट
तक सूर्य की रोशनी में बैठें। रोज एक्सरसाइज करें।